भारत का सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम (India’s Semiconductor Ecosystem) | Current Affairs | Vision IAS
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    भारत का सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम (India’s Semiconductor Ecosystem)

    Posted 04 Oct 2025

    Updated 09 Oct 2025

    1 min read

    Article Summary

    Article Summary

    भारत अपनी पहली 2nm चिप डिज़ाइन करेगा। आपूर्ति श्रृंखलाएँ कुछ ही भौगोलिक क्षेत्रों तक सीमित होने के कारण, भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM), कौशल एवं प्रतिभा विकास कार्यक्रमों के माध्यम से वैश्विक विनिर्माण में विविधता लाने और वैश्विक सहयोग आकर्षित करने में खुद को एक विश्वसनीय और भरोसेमंद भागीदार के रूप में स्थापित कर रहा है। हालाँकि, भारत को अपने उद्योग को मज़बूत करने के लिए अभी भी सीमित बौद्धिक संपदा, आपूर्ति श्रृंखला में कमियों और उच्च अनुसंधान एवं विकास लागत जैसी चुनौतियों का समाधान करना होगा।

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    बेंगलुरु में ARM के नए सेमीकंडक्टर डिज़ाइन कार्यालय के उद्घाटन के बाद, भारत में पहली बार 2nm चिप डिज़ाइन की जा रही है।

    2 nm चिप्स का महत्व

    • सेमीकंडक्टर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मूलभूत घटक हैं।
    • सेमीकंडक्टर पदार्थों का उपयोग माइक्रोचिप बनाने में किया जाता है जो सुचना को संग्रहित, संसाधित और संप्रेषित करते हैं।
    • प्रत्येक चिप में लाखों सूक्ष्म-स्तरीय स्विच होते हैं जिन्हें ट्रांजिस्टर कहा जाता है, जो विद्युत संकेतों को उसी तरह नियंत्रित करते हैं जैसे मस्तिष्क की कोशिकाएं संदेशों को नियंत्रित करती हैं।
    • पतली चिप्स का अर्थ कम स्थान में अधिक प्रोसेसिंग क्षमता — अर्थात हल्के और अधिक सक्षम उत्पाद है।
    • छोटे ट्रांजिस्टर अधिक दक्षता और कम ऊर्जा खपत को संभव बनाते हैं।
    • इनका राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरिक्ष अनुसंधान और रक्षा अनुप्रयोगों में रणनीतिक महत्व है।

    वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग के वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। यह उद्योग मुख्य रूप से ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान, चीन और अमेरिका द्वारा नियंत्रित है। ताइवान विश्व के 60% से अधिक सेमीकंडक्टर और लगभग 90% अत्याधुनिक चिप्स का उत्पादन करता है।

    चूँकि आपूर्ति शृंखलाएँ कुछ ही भौगोलिक क्षेत्रों में केंद्रित हैं, इसलिए भारत स्वयं को वैश्विक विनिर्माण को विविधीकृत करने में एक विश्वसनीय और भरोसेमंद भागीदार के रूप में स्थापित कर रहा है।

    भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए चल रही प्रमुख पहलें

    • इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM): इसे 2021 में निम्नलिखित योजनाओं सहित शुरू किया गया था-
      • सेमीकंडक्टर फैब्स योजना: 28 nm या उससे अधिक उन्नत तकनीक वाली फैब्रिकेशन (Fab) इकाइयों की स्थापना को लक्षित करती है। साथ ही,यह भारत में सेमीकंडक्टर वेफर फैब यूनिट स्थापित करने हेतु 50% तक वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
      • डिस्प्ले फैब्स योजना: यह भारत में डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट स्थापित करने के लिए परियोजना लागत का 50% तक की वित्तीय सहायता प्रदान करता है तथा AMOLED और LCD डिस्प्ले जैसी प्रौद्योगिकियों को शामिल करता है।
      • कंपाउंड सेमीकंडक्टर एवं ATMP/OSAT योजना: कंपाउंड सेमीकंडक्टर, सिलिकॉन फोटोनिक्स, MEMS/सेंसर, और डिस्क्रीट सेमीकंडक्टर के निर्माण का समर्थन करती है।
      • डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना: यह डिज़ाइन स्टार्टअप्स और MSMEs को प्रोत्साहित करती है तथा प्रति कंपनी ₹15 करोड़ तक की प्रोत्साहन राशि प्रदान करती है।
    • सेमिकॉन इंडिया: यह विश्व भर में आयोजित किए गए आठ प्रमुख सेमिकॉन प्रदर्शनों में से एक है, जो वैश्विक सेमीकंडक्टर डिजाइन और विनिर्माण पारितंत्र के शीर्ष विशेषज्ञों एवं अधिकारियों को एक मंच पर लाता है।
      • सेमिकॉन इंडिया, 2025 (चौथा संस्करण) को इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) ने  SEMI (सेमीकंडक्टर इक्विपमेंट एंड मटेरियल्स इंटरनेशनल) के साथ साझेदारी में आयोजित किया। इस सम्मेलन का थीम 'अगली सेमीकंडक्टर महाशक्ति का निर्माण' था।
    • कौशल एवं प्रतिभा विकास कार्यक्रम:
      • AICTE VLSI पाठ्यक्रम: पाठ्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकता अनुसार अद्यतन किया गया है।
      • स्किल्ड मैनपावर एडवांस्ड रिसर्च एंड ट्रेनिंग (SMART) लैब (NIELIT, कालीकट): इसका उद्देश्य 1 लाख इंजीनियरों को प्रशिक्षित करना है।
      • चिप्स टू स्टार्टअप (C2S) कार्यक्रम: इसे वेरी लार्ज-स्केल इंटीग्रेशन (VLSI) और एम्बेडेड सिस्टम डिजाइन क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त संसाधन विकसित करने के लिए शुरू किया गया है।
      • फ्यूचर स्किल्स प्रोग्राम: मध्य प्रदेश में 20,000 इंजीनियरों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
    • वैश्विक सहयोग: भारत और अमेरिका के बीच महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (iCET) के माध्यम से सेमीकंडक्टर सहित प्रमुख प्रौद्योगिकीय क्षेत्रों में रणनीतिक सहयोग को मजबूत करने पर बल दिया गया है।
    • डिजाइन तथा अनुसंधान एवं विकास (R&D) को प्रोत्साहन:
      • 2025 में, नोएडा और बेंगलुरु में 3 nm चिप डिजाइन केंद्रों का उद्घाटन किया गया है।
      • सिलिकॉन कार्बाइड (SiC) और 3D ग्लास पैकेजिंग की दिशा में प्रगति हो रही है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों में उपयोगी होगी।
      • विक्रम 32-बिट प्रोसेसर, भारत का पहला पूर्णतः स्वदेशी रूप से विकसित 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर है, जिसे लॉन्च व्हीकल (रॉकेट) जैसी कठोर परिस्थितियों में उपयोग के लिए प्रमाणित किया गया है

    सेमीकंडक्टर पारितंत्र के समक्ष चुनौतियां:

    • सीमित कोर IP और स्वदेशी उत्पाद का विकास: देश में स्वदेशी शोध और नवाचार की स्थिति अभी भी कमजोर बनी हुई है, तथा उन्नत चिप प्रौद्योगिकियों, AI चिप्स, या क्वांटम कंप्यूटिंग में मूल पेटेंट की संख्या भी बहुत कम है।
    • भूराजनीतिक जोखिम: प्रमुख शक्तियों (विशेषकर अमेरिका) की निर्यात नियंत्रण जैसी नीतियां भारत की महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और चिप निर्माण उपकरणों तक पहुंच को सीमित कर सकती हैं।
    • उन्नत फैब सुविधाओं पर कम ध्यान: भारत की अधिकांश फैब इकाइयां पुरानी तकनीकी नोड (>28nm) पर केंद्रित हैं, जबकि वैश्विक बाजार 3nm, 5nm और AI व क्वांटम कंप्यूटिंग के लिए विशेष चिप्स की ओर बढ़ रहा है।
    • अविकसित आपूर्ति श्रृंखला: भारत के पास सिलिकॉन वेफर, विशेष रसायन, और अल्ट्रा-शुद्ध गैसों जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियों के घरेलू स्रोतों का अभाव है, जो उन्नत चिप विनिर्माण के लिए आवश्यक हैं।
    • उच्च पूंजी तथा अनुसंधान एवं विकास की लागत: सेमीकंडक्टर फैब्स के लिए अरबों डॉलर के निवेश की आवश्यकता होती है, और डिजाइन की लागत इतनी अधिक है कि कई स्टार्टअप इसे वहन नहीं कर सकते हैं ।
    • अन्य समस्याएं:
      • विनिर्माताओं, डिजाइन हाउस, फैब्स और अनुसंधान इकाइयों के बीच सहयोग तथा पारितंत्र का खंडित विकास देखा जाता है।
      • इसके लिए विशेषीकृत विनिर्माण प्रतिभा की कमी है।
      • परियोजना कार्यान्वयन में देरी और विनियामक स्वीकृतियों की धीमी गति।
      • लॉजिस्टिक्स और परिवहन अवसंरचना का अपर्याप्त विकास।
      • पर्यावरण संबंधी चिंताएं, क्योंकि सेमीकंडक्टर फैब्स में अत्यधिक जल और ऊर्जा की खपत होती है।

    आगे की राह

    • स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास और बौद्धिक संपदा सृजन को बढ़ावा देना: सेमीकंडक्टर अनुसंधान एवं विकास के लिए सार्वजनिक और निजी वित्तपोषण को बढ़ाया जाना चाहिए; एक स्वदेशी बौद्धिक संपदा आधार विकसित करने के लिए बौद्धिक संपदा पंजीकरण और प्रवर्तन को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
    • भू-राजनीतिक परिवर्तनों का लाभ उठाना: आपूर्ति श्रृंखला के पुनर्गठन के बीच भारत को एक सुरक्षित और पारदर्शी निवेश स्थल के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए।
      • उदाहरण: भारत "चिप 4" गठबंधन जैसे संघों में शामिल होने का प्रयास कर सकता है।
    • उन्नत नोड्स के लिए प्रोत्साहन और अनुसंधान एवं विकास बढ़ाना: वैश्विक अग्रणी देशों के साथ संयुक्त उद्यम और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से। उदाहरण: सेमिकॉन इंडिया 2023 के दौरान 12 समझौता ज्ञापनों की घोषणा की गई थी।
    • विनिर्माण अवसंरचना में सुधार करना: प्रशिक्षण और गठन हेतु एक प्रारंभिक रिफर्बिश्ड फैब स्थापित किया जाना चाहिए; साथ ही कर छूट और अवसंरचना समर्थन के साथ निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    • कच्चे माल के उत्पादन को बढ़ाना: विशेष रासायनिक उत्पादों आदि के लिए स्थानीय विनिर्माण संयंत्र स्थापित किए जाने चाहिए; साथ ही कच्चे माल उद्योगों की स्थापना के लिए विनियामक अनुमोदनों में तेजी लाई जानी चाहिए।
    • सहयोग को बढ़ावा देना: एक संपूर्ण सेमीकंडक्टर मूल्य श्रृंखला के निर्माण के लिए मूल उपकरण निर्माता (OEM), डिजाइन हाउस, फैब और परीक्षण इकाइयों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
    • कुशल कार्यबल का विकास करना: व्यावहारिक सेमीकंडक्टर प्रशिक्षण के साथ शैक्षिक पाठ्यक्रमों को अद्यतन किया जाना चाहिए; व्यावहारिक अनुभव के लिए नवीकरणीय फैब सहित समर्पित प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए।
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