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करुणा को एकीकृत करना, उपशामक देखभाल को प्राथमिकता देना

03 Jul 2025
17 min

भारत में प्रशामक देखभाल (Palliative Care) का एकीकरण

भारत में लाखों लोग अनावश्यक पीड़ा सहते हैं क्योंकि उन्हें समय पर और सुलभ प्रशामक देखभाल (दया आधारित देखभाल) नहीं मिल पाती। यह देखभाल गंभीर और असाध्य बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को आराम और गरिमा प्रदान करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके महत्व के बावजूद, देश में उपशामक देखभाल को पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिलती और इसका प्रयोग भी बहुत सीमित है। 

महत्व एवं वर्तमान परिदृश्य

  • प्रशामक देखभाल की परिभाषा: शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं को संबोधित करने वाली ऐसी विशेष देखभाल, जो रोगों को ठीक करने के बजाय दर्द को कम करने पर केंद्रित होती है।  
  • वैश्विक आवश्यकता: विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि हर साल 40 मिलियन लोगों को उपशामक देखभाल की आवश्यकता होती है। इनमें से 78% निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होते हैं। केवल 14% को ही यह देखभाल मिल पाती है। 
  • भारत का संदर्भ: प्रतिवर्ष 7-10 मिलियन लोगों को उपशामक देखभाल की आवश्यकता होती है; फिर भी, केवल 1-2% ही इस तक पहुंच पाते हैं। 

प्रशामक देखभाल प्रदान करने में चुनौतियाँ

  • स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव: बढ़ती गैर-संचारी बीमारियों के कारण उपशामक देखभाल की मांग बढ़ रही है। इससे भारत की पहले से ही दबावग्रस्त स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर दबाव बढ़ रहा है।
  • पहुंच और समानता: 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में शामिल होने के बावजूद, खासकर ग्रामीण और आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में इसकी पहुंच असमान बनी हुई है।
  • प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी: विशेष प्रशिक्षण की कमी डॉक्टरों की व्यापक देखभाल प्रदान करने की क्षमता को सीमित करती है। भारत में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:834 है, लेकिन उपशामक देखभाल में विशेषज्ञ कम हैं। 
  • बुनियादी ढांचा और वित्तपोषण: सीमित वित्तपोषण और बुनियादी ढांचा तृतीयक देखभाल में एकीकरण में बाधा डालते हैं। 
  • जन जागरूकता: उपशामक देखभाल के बारे में लोगों की सीमित समझ के कारण गलत धारणाएं और देर से पहुंच देखने को मिलती है।

सुधार के लिए सिफारिशें 

  • शिक्षा और प्रशिक्षण: MBBS पाठ्यक्रम में प्रशामक देखभाल को एकीकृत करना तथा लक्षित प्रशिक्षण के माध्यम से नर्सिंग और संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों को लाभान्वित करना।
  • कार्य-स्थानांतरण: देखभाल वितरण से संबंधित कमियों को दूर करने के लिए भारत के पंजीकृत नर्सिंग कर्मियों और संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों के बड़े आधार का उपयोग करना। 
  • नीति और वित्तपोषण: समर्पित वित्तपोषण आवंटित करना, बीमा कवरेज का विस्तार करना (जैसे, आयुष्मान भारत) और गैर सरकारी संगठनों और निजी संस्थानों के साथ साझेदारी करना।
  • जन जागरूकता अभियान: शीघ्र पहुंच और नीतिगत समर्थन को प्रोत्साहित करने के लिए उपशामक देखभाल के लाभों के बारे में समुदायों को शिक्षित करना। 

वैश्विक प्रथाएं और अनुकूलन

  • अमेरिकी मॉडल मजबूत वित्तपोषण, बीमा कवरेज और हॉस्पिस देखभाल पर जोर देने के साथ-साथ रोगी-केंद्रित देखभाल पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
  • भारत अपने विशिष्ट सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए इन प्रथाओं को अपना सकता है। 

कुल मिलाकर, भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में उपशामक देखभाल को एकीकृत करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें क्षमता निर्माण, शिक्षा, पेशेवर सशक्तिकरण और प्रणालीगत सुधार पर जोर दिया जाना चाहिए। इससे जीवन के अंतिम चरण की देखभाल में बदलाव आ सकता है और लाखों भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

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