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भारत के विद्युत क्षेत्र में आवश्यक सुधार

23 Jul 2025
12 min

कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों के लिए SO2 मानदंडों का कार्यान्वयन

पृष्ठभूमि और चिंताएँ 

  • 2015 में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों के लिए SO2 मानदंड पेश किए। 
  • भारत में 600 से अधिक बिजली संयंत्रों के लिए फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGDs) प्रणालियों की इंस्टालेशन अनिवार्य थी। 

वित्तीय और तकनीकी निहितार्थ

  • FGDs पर अनुमानित पूंजीगत व्यय से टैरिफ में 0.25-0.30 रुपये प्रति किलोवाट घंटा की वृद्धि होने की उम्मीद थी।
  • वित्तीय बोझ बिजली उत्पादकों, वितरण कंपनियों और उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।
  • विशेषज्ञों ने भारतीय कोयले में सल्फर की कम मात्रा को देखते हुए FGDs की तकनीकी आवश्यकता पर सवाल उठाया, जिससे आगे अनुसंधान की आवश्यकता उत्पन्न होती है।  

अनुसंधान और विश्लेषण 

  • IIT दिल्ली द्वारा किए गए एक अध्ययन में SO2 उत्सर्जन के अधिक व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • नीती आयोग द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि कई संयंत्रों में FGDs के बिना भी, परिवेशी SO2 का स्तर निर्धारित मानदंडों से नीचे था। 
  • सिफारिशों में भारत के अद्वितीय सौर विकिरण और वायुमंडलीय स्थितियों को ध्यान में रखते हुए SO2 उत्सर्जन मानदंडों पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया गया। 

पर्यावरणीय और आर्थिक पक्ष 

  • FGDs प्रणालियों के लिए चूना पत्थर और पानी की आवश्यकता होती है, जिससे चूना पत्थर के खनन और परिवहन के कारण कार्बन फुटप्रिंट में काफ़ी वृद्धि होती है। 
  • CO2 का वायुमंडलीय जीवनकाल SO2 से अधिक है, जो जलवायु संबंधी चिंता का विषय है।

संशोधित अधिसूचना और भविष्य के निहितार्थ 

  • संशोधित अधिसूचना में बड़े शहरों से निकटता और प्रदूषण के स्तर के आधार पर विद्युत संयंत्रों का वर्गीकरण किया गया है।
  • लगभग 78% विद्युत संयंत्रों को FGDs प्रणालियों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा विकास के लिए पूंजीगत व्यय में काफ़ी बचत होती है। 
  • यह अधिसूचना उपभोक्ताओं पर टैरिफ का बोझ कम करती है तथा घरेलू कोयला आधारित बिजली की योजना में स्पष्टता लाती है।

निष्कर्ष

  • भारत के दीर्घकालिक ऊर्जा ट्रांजीशन में नवीकरणीय ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, लेकिन ऊर्जा सुरक्षा के लिए कोयला महत्वपूर्ण बना रहेगा। 
  • ये परिवर्तन उपभोक्ताओं और योजनाकारों को भविष्य में ऊर्जा अवसंरचना विकास के लिए राहत और स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

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