वैश्विक जलवायु वित्त और COP30 में प्रमुख मुद्दे
भारत ने वैश्विक जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाने में एक बड़ी बाधा के रूप में पर्याप्त जलवायु वित्त पोषण की कमी को उजागर किया है। ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित COP30 जलवायु बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की गई, जहाँ भारत ने BASIC देशों (ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) और समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (LMDCs) के समूह का प्रतिनिधित्व किया।
जलवायु वित्त की परिभाषा और कार्यान्वयन
- भारत ने जलवायु वित्त की स्पष्ट एवं सर्वमान्य परिभाषा का आह्वान किया।
- अनुकूलन प्रयासों के लिए वित्तीय प्रवाह बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के पूर्ण कार्यान्वयन की मांग की, जो विकसित देशों को विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन प्रदान करने के लिए बाध्य करता है।
अनुच्छेद 9.1 और चुनौतियाँ
- विकासशील देशों ने अनुच्छेद 9.1 के क्रियान्वयन के महत्व पर बल दिया, जिसे पिछले वर्ष बाकू, अजरबैजान में हुए एक वित्त समझौते में नजरअंदाज कर दिया गया था।
- पेरिस समझौते में यह प्रावधान है कि अनुच्छेद 9.1 और अनुच्छेद 9.3 के अनुसार विकसित देशों को जलवायु वित्त उपलब्ध कराना और जुटाना होगा।
- बाकू समझौते के तहत विकसित देशों ने 2035 से प्रतिवर्ष 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने पर सहमति व्यक्त की, जबकि विकासशील देशों ने प्रतिवर्ष 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग की।
एजेंडा और अनंतिम चुनौतियाँ
- संभावित गतिरोध को रोकने के लिए ब्राजील के हस्तक्षेप के कारण भारत और अन्य देश आधिकारिक COP30 एजेंडे में अनुच्छेद 9.1 पर चर्चा को शामिल करने में विफल रहे।
- ब्राजील ने सम्मेलन के अन्य मंचों पर इन मुद्दों को संबोधित करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें एक विशेष समीक्षा सत्र भी शामिल था।
व्यापार प्रतिबंध और अंतर्राष्ट्रीय कानून
- भारत ने यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र जैसे एकतरफा व्यापार प्रतिबंधों पर चर्चा करने में रुचि व्यक्त की।
- भारत, चीन और अन्य राष्ट्र ऐसे व्यापार उपायों को भेदभावपूर्ण और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानूनों के विपरीत मानते हैं।