POCSO अधिनियम की लिंग-तटस्थ के रूप में व्याख्या
भारत का सर्वोच्च न्यायालय यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की लिंग-विशिष्ट व्याख्या से संबंधित याचिका की समीक्षा कर रहा है। यह मामला एक महिला से संबंधित है, जिस पर एक नाबालिग लड़के के खिलाफ 'यौन हमले' का आरोप है, जिससे इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या POCSO अधिनियम महिला अपराधियों पर लागू होता है।
लिंग-तटस्थ व्याख्या के लिए तर्क
- वैधानिक व्याख्या:
- यह तर्क दिया जाता है कि POCSO अधिनियम अपराधियों और पीड़ितों दोनों के संबंध में लिंग-तटस्थ है।
- 1897 के अधिनियम में यह निर्दिष्ट किया गया है कि 'वह' जैसे सर्वनामों में 'महिला' भी शामिल है, जो कानून की लिंग-तटस्थ व्याख्या का समर्थन करता है।
- पोक्सो अधिनियम की धारा 3 में लिंग प्रवेश से परे के कृत्य शामिल हैं, जिससे महिला द्वारा अपराध संभव हो जाता है।
- विधायी आशय:
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पुष्टि की है कि पोक्सो अधिनियम लिंग-तटस्थ है।
- अधिनियम की लिंग-तटस्थता पीड़ितों और अपराधियों दोनों पर लागू होती है, जो भारतीय दंड संहिता की पूर्व धारा 375 जैसे लिंग-विशिष्ट कानूनों के विपरीत है।
- मानक कारण:
- साक्षी बनाम भारत संघ (2004) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बाल संरक्षण कानूनों में शामिल दुर्व्यवहार की व्यापक श्रेणी पर जोर दिया था।
- दुर्व्यवहार में शक्ति असंतुलन शामिल होता है, तथा इसमें शामिल व्यक्तियों के लिंग के आधार पर पैटर्न भिन्न हो सकते हैं।
- महिला अपराधियों की अनदेखी करने से पीड़ितों का अनुभव अस्पष्ट हो सकता है और न्याय से वंचित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य अपराधी की लैंगिक पहचान की बाध्यता के बिना बच्चों को यौन शोषण से बचाना है। लैंगिक-तटस्थ व्याख्या विधायी मंशा के अनुरूप है और विविध दुर्व्यवहार परिदृश्यों का समाधान करते हुए सभी पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करती है।