भारत में सड़क की धूल को नियंत्रित करने के प्रयास
भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत सड़क की धूल के प्रबंधन के प्रयासों को प्राथमिकता दी गई है, जिसका लक्ष्य 2025-2026 तक पीएम₁₀ में 40% की कमी लाना है। अध्ययनों से पता चलता है कि सड़क की धूल PM 10 (20-52%) और PM 2.5 (8-25%) प्रदूषकों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
क्षेत्रीय गाद भार भिन्नताएँ
- शोध से पता चलता है कि विभिन्न राज्यों में सड़कों पर गाद का भार व्यापक रूप से भिन्न होता है।
- दिल्ली में औसत गाद भार 14.47 ग्राम/वर्ग मीटर है, तथा उत्तर भारतीय शहरों में आमतौर पर दक्षिण के शहरों की तुलना में अधिक धूल होती है।
सरकारी निवेश और पहल
- वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए 2019 से 2025 तक 131 शहरों को ₹19,711 करोड़ आवंटित किए गए।
- नवंबर 2023 तक NCAP निधि का 64% सड़क धूल नियंत्रण पर खर्च किया जाएगा।
- धूल से निपटने के लिए CAQM ने 68 'धूल नियंत्रण एवं प्रबंधन प्रकोष्ठ' स्थापित किए।
- CAQM के 2025 के अध्ययन में बताया गया कि मूल्यांकित सड़कों में से 24% खराब स्थिति में हैं, जिससे आगे सुधार की आवश्यकता का संकेत मिलता है।
नियामक और परिचालन चुनौतियां
- सड़क धूल नियंत्रण के लिए विशिष्ट राष्ट्रीय विनियमों का अभाव।
- सड़क रखरखाव में कई एजेंसियों के शामिल होने से खंडित क्षेत्राधिकार।
- शहरों में सड़क सफाई के लिए पर्याप्त मशीनीकृत मशीनें नहीं हैं, उदाहरण के लिए, दिल्ली को 200 मशीनों की आवश्यकता है, लेकिन वहां केवल 85 मशीनें ही हैं।
प्रभावी धूल प्रबंधन के लिए सिफारिशें
- पुनः निलंबन को रोकने के लिए धूल निपटान हेतु मानक संचालन प्रक्रियाएं स्थापित करना।
- उचित सफाई और रखरखाव मशीनरी के लिए दिशा-निर्देश विकसित करना।
- वास्तविक समय निगरानी और शिकायत समाधान के लिए GIS आधारित प्लेटफॉर्म लागू करना।
- धूल को दबाने वाले पदार्थों और उचित निपटान तंत्रों सहित वैज्ञानिक रूप से सूचित शमन रणनीतियों को अपनाना।
निष्कर्ष
सड़क की धूल से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए, टिकाऊ शहरी नियोजन में अंतर्निहित एक समग्र, विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण आवश्यक है। समन्वित प्रयासों से वायु गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है, जिससे शहरी क्षेत्र अधिक लचीले और रहने योग्य बन सकते हैं।