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रेबीज: भारत के सबसे गरीब तबकों की क्रूर और महंगी बीमारी

26 Dec 2025
1 min

भारत में रेबीज: एक अवलोकन

भारत में रेबीज की समस्या गंभीर है, जहां प्रतिवर्ष अनुमानित 20,000 लोगों की रेबीज से मृत्यु होती है, जो विश्व भर में होने वाली रेबीज से होने वाली मौतों का एक-तिहाई है। इस वायरस का मुख्य स्रोत कुत्ते हैं, और यह बीमारी मुख्य रूप से समाज के सबसे गरीब तबकों को प्रभावित करती है।

अस्पतालों में वर्तमान स्थिति

  • रेबीज के मरीजों को अक्सर हाइड्रोफोबिया और मतिभ्रम जैसे गंभीर लक्षणों के कारण अलग-थलग वार्डों में भर्ती कराया जाता है।
  • ये मामले मुख्य रूप से दिहाड़ी मजदूरों और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच सामने आ रहे हैं।

निवारक उपाय और चुनौतियाँ

  • संक्रमण के बाद रोगनिरोधक (PEP) अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसमें घाव को धोना, रेबीज रोधी टीकाकरण (ARV) और रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन (RIG) देना शामिल है।
  • RIG की भारी कमी और उच्च लागत है, जिसकी कीमत ₹5,000 से लेकर ₹20,000 तक है, जिससे यह कई लोगों की पहुंच से बाहर हो जाता है।
  • एक अध्ययन में पाया गया कि कुत्ते के काटने से पीड़ित 20.5% लोगों को एआरवी (RV) नहीं मिला, और लगभग आधे लोगों ने टीकाकरण का पूरा कोर्स पूरा नहीं किया।

सामाजिक-आर्थिक कारक और उपचार तक पहुंच

  • आर्थिक तंगी के कारण कई लोग अपने कुत्तों का टीकाकरण नहीं करवा पाते हैं, जिससे रेबीज का खतरा बढ़ जाता है।
  • चिकित्सा संबंधी उच्च लागत और उचित स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की कमी के कारण परिवार अक्सर स्थानीय झोलाछाप डॉक्टरों का सहारा लेते हैं।
  • स्वास्थ्य पर जेब से होने वाला खर्च परिवारों को गरीबी की ओर धकेल रहा है।

नियामक और सामुदायिक पहल

  • नवंबर 2025 में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को आदेश दिया कि वे आवारा कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद आश्रयों में रखें।
  • पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस निर्देश की "अव्यावहारिक" और "क्रूर" कहकर आलोचना की है।

प्रस्तावित समाधान

  • सामुदायिक कार्रवाई को प्रोत्साहित किया जाता है, और कुत्ते प्रेमियों से आग्रह किया जाता है कि वे आवारा कुत्तों का समर्थन करें, उनकी नसबंदी कराएं और उन्हें टीका लगवाएं।
  • देशभर में PEP और ARV की उपलब्धता में सुधार करना आवश्यक है।
  • रेबीज मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (RMABs) जैसी सस्ती, स्वदेशी दवाओं का विकास कार्य चल रहा है, लेकिन अभी तक इन्हें राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों में शामिल नहीं किया गया है।

निष्कर्ष

भारत में रेबीज से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें बेहतर स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता, सामुदायिक भागीदारी में वृद्धि और मनुष्यों और कुत्तों दोनों के लिए व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम शामिल हैं। मानव स्वास्थ्य और पशु कल्याण की रक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिसका उद्देश्य रोके जा सकने वाली रेबीज से होने वाली मौतों को समाप्त करना है।

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