बहुपक्षवाद का भविष्य- उभरती वैश्विक व्यवस्था | Current Affairs | Vision IAS
Weekly Focus Logo

    बहुपक्षवाद का भविष्य- उभरती वैश्विक व्यवस्था

    Posted 25 Sep 2025

    Updated 26 Sep 2025

    10 min read

    भूमिका (Introduction)

    भूमिका (Introduction)

    21वीं सदी की एक प्रमुख विशेषता पारस्परिक निर्भरता (interdependence) है। जलवायु परिवर्तन से लेकर महामारियों तक, आतंकवाद से लेकर डिजिटल प्रशासन तक, कोई भी राष्ट्र अकेले इन चुनौतियों का सामना कर पाने में सक्षम नहीं है। वैश्वीकरण का तर्क ही बहुपक्षीय सहयोग को अनिवार्य बनाता है, जहां तीन या तीन से अधिक राष्ट्र एक समान नियमों और साझा सिद्धांतों के आधार पर सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक साथ आते हैं।

    फिर भी, ऐसे समय में जब मानवता सबसे गंभीर वैश्विक संकटों का सामना कर रही है, बहुपक्षवाद पर भारी दबाव देखने को मिल रहा है। COVID-19 महामारी ने वैक्सीन राष्ट्रवाद को उजागर किया; रूस-यूक्रेन युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को खंडित कर दिया; और व्यापार युद्धों के कारण विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थिति कमजोर हो गई। बढ़ते राष्ट्रवाद और महाशक्तियों के मध्य प्रतिद्वंद्विता ने इस बहस को जन्म दिया है कि क्या बहुपक्षवाद अप्रासंगिक हो गया है या इसमें कुछ सुधार किए जाने की आवश्यकता है।

    इस प्रकार, बहुपक्षवाद का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वैश्विक संस्थाएं शक्ति संतुलन की उभरती वास्तविकताओं के अनुरूप स्वयं को कैसे ढालती हैं, सामूहिक कार्रवाई के समक्ष चुनौतियों का प्रबंधन कैसे करती हैं एवं राष्ट्रों और नागरिकों दोनों की नजरों में अपनी वैधता को कैसे बहाल करती हैं।

    You are reading a premium article. Please log in and subscribe to continue. Login/Register
    • Tags :
    • बहुपक्षवाद का भविष्य
    • उभरती वैश्विक व्यवस्था
    • बहुपक्षवाद का इतिहास
    • बहुपक्षवाद का दर्शन
    • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता
    • संरक्षणवाद का उदय
    • ग्लोबल साउथ का कम प्रतिनिधित्व
    • सुधारित बहुपक्षवाद
    Subscribe for Premium Features