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    मुफ्त सुविधाएं (Freebies)

    Posted 10 Apr 2025

    Updated 14 Apr 2025

    41 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रश्न उठाया कि क्या मुफ्त सुविधाएं (फ्रीबीज़) गरीबों में परजीवी मानसिकता को बढ़ावा दे रही हैं और उनमें काम करने की इच्छा को हतोत्साहित कर रही हैं।

    मुफ्त सुविधाओं (Freebies) का अर्थ क्या है?

    परिभाषा: फ्रीबीज़ की कोई सटीक परिभाषा नहीं है। फ्रीबीज़ (यानी मुफ्त सुविधा/ वस्तु/ उपहार आदि) आमतौर पर अल्पकालिक लाभ प्रदान करती हैं, जैसे- मुफ्त में लैपटॉप, टीवी, साइकिल, बिजली, पानी आदि। इन्हें अक्सर चुनावी प्रलोभन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 

    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) फ्रीबीज़ को इस प्रकार से परिभाषित करता है: "ये ऐसी सार्वजनिक कल्याणकारी सेवाएं होती हैं, जिनके लिए नागरिकों को कोई शुल्क नहीं देना होता है।"
      • आमतौर पर राजनीतिक दल चुनावों के दौरान ऐसी सेवाओं का वादा करते हैं। इस प्रकार, अब ये भारत की राजनीति का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं।

    लोक कल्याण बनाम मुफ्त सुविधाएं

    • लोक कल्याण: यह संविधान में "राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों" में निहित है। इसमें लोगों को खाद्य सुरक्षा (जैसे- PDS), नौकरियां (जैसे- मनरेगा), और शिक्षा/ स्वास्थ्य सहायता जैसी जरूरी सेवाएं प्रदान करने की दिशा में निरंतर प्रयास शामिल हैं। इससे मानव पूंजी का निर्माण होता है।
    • मुफ्त सुविधाएं: सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अल्पकालिक मुफ्त वादों में स्थिरता का अभाव होता है। मुफ्त बिजली, पानी या ऋण माफी जैसी योजनाएं बाज़ारों को विकृत करती हैं, ऋण चुकाने की प्रवृत्ति को कमज़ोर करती हैं, और लोगों को काम करने के प्रति उदासीन बना सकती हैं।

     

    लोक कल्याण के विभिन्न दृष्टिकोण

    दान आधारित दृष्टिकोण

     

    आवश्यकता आधारित दृष्टिकोण

    अधिकार-आधारित दृष्टिकोण

     

    इसमें इनपुट पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, न कि परिणाम पर।इसके तहत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इनपुट और परिणाम, दोनों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रिया और परिणाम, दोनों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। 
    गरीबों के प्रति संपन्न वर्गों की नैतिक जिम्मेदारी की पहचान करता है।आवश्यकताओं को वैध दावों के रूप में मान्यता दी जाती है।अधिकारों को ऐसे दावों के रूप में देखा जाता है, जिनकी पूर्ति कानूनी और नैतिक रूप से जिम्मेदार व्यक्तियों को करनी चाहिए। 
    व्यक्तियों को पीड़ित के रूप में देखा जाता है।व्यक्तियों को विकास संबंधी हस्तक्षेप के लिए एक साधन माना जाता है। व्यक्तियों और समूहों को अपने अधिकारों का दावा करने का अधिकार दिया जाता है। 
    यह समस्याओं की अभिव्यक्ति पर ध्यान केंद्रित करता है।इसके तहत समस्याओं के तात्कालिक कारणों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह उन मूलभूत संरचनात्मक कारणों और उनके प्रत्यक्ष प्रभावों की पड़ताल करता है जो अधिकारों को प्रभावित करते हैं। 

    संवैधानिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य

    • राज्य की नीति के निदेशक तत्व (DPSPs): संविधान के अनुच्छेद 38, 39, 41 आदि राज्य को निम्नलिखित कार्यों के लिए निर्देश देते हैं:
      • जनकल्याण को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करना;
      • पुरुषों और महिलाओं को आजीविका के पर्याप्त साधन उपलब्ध कराना;
      • धन के असमान वितरण को रोकना;
      • कुछ विशेष परिस्थितियों में कार्य, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार प्रदान करना, आदि।
    • सुप्रीम कोर्ट के निर्णय:
      • सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य (2013) वाद: दो-न्यायाधीशों की पीठ ने इस वाद में यह निर्णय दिया कि पात्र लाभार्थियों को "रंगीन टीवी, लैपटॉप जैसी नागरिक सुविधाओं का वितरण DPSPs के तहत किया जा सकता है," और इस पर न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है।
      • अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ (विचाराधीन वाद): सुप्रीम कोर्ट चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त सुविधाएं देने और इससे जुड़े वादे करने की परंपरा को चुनौती देने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
    • चुनाव आयोग की भूमिका: चुनाव आयोग ने चुनावी वादों में पारदर्शिता लाने की मांग की है और राजनीतिक दलों से यह स्पष्ट करने को कहा है कि वे इन मुफ्त सुविधाओं के लिए वित्तीय संसाधन कहां से जुटाते हैं। 

    फ्रीबीज़/ मुफ्त सुविधाओं के प्रभाव

    सकारात्मक प्रभावनकारात्मक प्रभाव
    बुनियादी जरूरतों की पूर्ति: भोजन एवं पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, आवास, शिक्षा आदि का प्रावधान गरीबों पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को कम करता है।वित्तीय बोझ: इससे सरकारी बजट पर दबाव बढ़ता है, राजकोषीय घाटे में वृद्धि होती है, तथा अवसंरचना विकास व रोजगार सृजन पर खर्च में कमी आती है, आदि।
    सामाजिक और लैंगिक असमानताओं को कम करते हैं: मध्याह्न भोजन, मुफ्त साइकिल आदि ने स्कूलों में नामांकन दर को बढ़ावा दिया है।निर्भरता की संस्कृति: इससे काम-काज से संबंधित  प्रेरणा और उत्पादकता में कमी आ सकती है।

    समावेशन और सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देते हैं: विविध सेवाओं के माध्यम से वित्तीय बाधाओं को हटाने से बेहतर समावेशी विकास हो सुनिश्चित होता है।

     

    सतत विकास और अंतर-पीढ़ीगत समानता पर प्रभाव: उदाहरण के लिए- मुफ्त बिजली व पानी से भू-जल स्तर में कमी आ सकती है। इससे संसाधनों की बर्बादी हो सकती है और भविष्य की पीढ़ियों पर बोझ बढ़ सकता है।
    राजनीतिक भागीदारी: मुफ्त सुविधाएं असंतुष्ट मतदाताओं को आकर्षित कर सकती हैं, चुनावी भागीदारी बढ़ा सकती हैं और अधिक प्रतिनिधिक लोकतंत्र को बढ़ावा देती हैं।मुफ्त सुविधाओं की राजनीति: इनका इस्तेमाल सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने की बजाय वोट हासिल करने के लिए लोकलुभावन उपायों के रूप में किया जा सकता है।
    बाजार की विफलता में कमी: फ्रीबीज़ आर्थिक सुधारों के नकारात्मक प्रभावों (जैसे- कम रोजगार और अंतर-पीढ़ीगत मोबिलिटी में कमी) से निपटने में मदद करती हैं।बाजार को कमजोर करना: फ्रीबीज़ के कारण निवेश के लिए उपलब्ध संसाधनों का अन्य जगहों पर इस्तेमाल होता है। इस प्रकार विनिर्माण क्षेत्रक की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

    कई विशेषज्ञों के अनुसार, हाल के वर्षों में कल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त सुविधाओं को समान मान लिया गया है, जिससे दोनों के बीच का वास्तविक अंतर धुंधला हो गया है।

    मुफ्त सुविधाओं की परिपाटी से निटपने के लिए किए जा सकने योग्य आवश्यक उपाय

    • नीतिगत सुधार:
      • वित्तीय अनुशासन और ऋण प्रबंधन: राजकोषीय अनुशासन एवं सार्वजनिक ऋण को संधारणीय बनाए रखने हेतु ऐसी सतत कल्याणकारी योजनाएं बनानी चाहिए, जो एक निश्चित अवधि के बाद स्वतः समाप्त हो जाएं।  
      • लीकेज और भ्रष्टाचार को रोकना: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाएं लाभार्थियों तक पारदर्शी तरीके से पहुंचे।
      • बीमा कवरेज का विस्तार: यह कोविड-19 जैसी आपात स्थितियों के दौरान आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य कर सकता है।
      • राजनीतिक सहमति बनाना: केंद्र और राज्यों को मिलकर मुफ्त सुविधाओं के नाम पर कल्याणकारी योजनाओं के दुरुपयोग को रोकने हेतु प्रयास करने चाहिए।
    • चुनाव आयोग की भूमिका: यह चुनावी घोषणा-पत्रों को विनियमित करके पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता है।
      • मुफ्त सुविधाएं वास्तव में 'मुफ्त' नहीं होती। इसलिए, 'प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद' को रोकने के लिए, राजनीतिक दलों को इन योजनाओं के वित्तपोषण और दीर्घकालिक परिणामों के बारे में स्पष्ट रूप से बताना चाहिए।
    • कौशल विकास और आत्मनिर्भरता: व्यक्तिगत सशक्तीकरण से लोगों की मुफ्त सुविधाओं पर निर्भरता को कम किया जा सकता है।
    • मतदाता जागरूकता: मुफ्त सुविधाओं के दीर्घकालिक परिणामों के प्रति मतदाताओं को शिक्षित करना आवश्यक है, ताकि तर्कहीन मुफ्त सुविधाओं के प्रति उनकी मांग कम की जा सके।
    • न्यायिक निगरानी और हस्तक्षेप: नीति आयोग, RBI एवं वित्त आयोग के विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जा सकती है, जो मुफ्त सुविधाओं के प्रभाव का आकलन करे।
    • वैश्विक उदाहरणों से सीखना:
      • श्रीलंका (2019): चुनावी वादे के तहत की गई कर कटौती से राजस्व का भारी नुकसान हुआ था, जिससे आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था। 
      • वेनेजुएला: मुफ्त सुविधाओं के रूप में लोकलुभावन नीतियों और ऋण माफी योजनाओं ने अर्थव्यवस्था को गंभीर संकट में डाल दिया था। उसके बाद सुधार में लंबा समय लग गया था। 

    निष्कर्ष

    अमर्त्य सेन की "कैपेबिलिटी एप्रोच" का अनुसरण करते हुए सरकारों को अल्पकालिक मुफ्त सुविधाओं की बजाय मानव कौशल को बढ़ावा देने वाली दीर्घकालिक योजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। इससे बढ़-चढ़कर घोषणाएं करने की होड़ और वित्तीय संकट (जैसा कि 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन. के. सिंह ने चेतावनी दी थी) को रोका जा सकता है।

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