राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति (NATIONAL POLICY ON GEOTHERMAL ENERGY) | Current Affairs | Vision IAS
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    राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति (NATIONAL POLICY ON GEOTHERMAL ENERGY)

    Posted 04 Oct 2025

    Updated 10 Oct 2025

    1 min read

    Article Summary

    Article Summary

    नीति का उद्देश्य भारत में भू-तापीय ऊर्जा को एक प्रमुख नवीकरणीय स्रोत के रूप में स्थापित करना है, तथा 2070 तक सतत विकास और कार्बन-मुक्ति को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान, नवीन प्रौद्योगिकियों, वित्तीय सहायता और हितधारक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना है।

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    हाल ही में केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE)) ने राष्ट्रीय भूतापीय ऊर्जा नीति (2025) अधिसूचित की है। यह स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के प्रयासों को बढ़ावा देने वाली भारत की पहली ऐसी नीति है।

    भू-तापीय ऊर्जा के बारे में

    • इस ऊर्जा का स्रोत भूपर्पटी  (क्रस्ट) में संग्रहित ऊष्मा है।
    • प्रमुख स्रोत और उपयोग –
      • हाई-एन्थैल्पी (लगभग 200°C) संसाधन: ज्वालामुखीय क्षेत्र, गीजर और हॉट स्प्रिंग्स। ये बिजली उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं।
      • निम्न से सामान्य एन्थैल्पी (100–180°C) संसाधन: गर्म चट्टानें और उथली भूमिगत परतें। ये हीटिंग और कूलिंग, कृषि-खाद्य, जलीय कृषि तथा भू-तापीय हीट पंप जैसे प्रत्यक्ष उपयोगों के लिए उपयुक्त हैं।
    • भारत में अनुमानित क्षमता: 10,600 मेगावाट (जियोथर्मल एटलस ऑफ इंडिया, 2022)
      • GSI ने 381 हॉट स्प्रिंग्स और 10 भू-तापीय प्रॉविन्सेस की पहचान की है (इन्फोग्राफिक देखिए)।

    भारत में भू-तापीय ऊर्जा के विकास से संबंधित चुनौतियां

    • शुरुआत में अधिक लागत:  भू-तापीय ऊर्जा स्रोत की खोज और ड्रिलिंग में बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।
    • निवेश डूबने का खतरा: व्यावसायिक रूप से लाभकारी भू-तापीय-जलाशयों को लेकर अनिश्चितता के कारण निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित रहती है।
    • भू-तापीय ऊर्जा स्रोत की खोज एवं इससे जुड़े उपयोगी डेटा की कमी: डीप ड्रिलिंग आकलन और आंकड़ों की सीमित उपलब्धता, साथ ही भूवैज्ञानिक जटिलता (जैसे हिमालय और ज्वालामुखीय क्षेत्र) भू-तापीय संसाधन के आकलन को कठिन बनाती है।
    • व्यावसायिक परियोजनाओं की कमी: 20 किलोवाट की केवल एक पायलट परियोजना (तेलंगाना के मणुगुरु में) चालू है, जबकि अभी तक कोई बड़ी यूटिलिटी परियोजना स्थापित नहीं हुई है।
    • प्रौद्योगिकी और कौशल की कमी: भारत में स्वदेशी ड्रिलिंग और भू-तापीय जलाशय प्रबंधन से संबंधित तकनीक तथा विशेषज्ञता का अभाव है।
    • पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताएँ: यदि पुनः-इंजेक्शन को सही ढंग से प्रबंधित न किया जाए तो भू-धंसाव, भूकंपीय गतिविधियां और जल प्रदूषण जैसे खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।

    राष्ट्रीय भूतापीय ऊर्जा नीति (NPGE) 2025 के बारे में

    • विज़न: भूतापीय ऊर्जा को भारत के नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण (स्रोत) के अहम् हिस्सा के रूप में स्थापित करना और 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना।
    • भूतापीय ऊर्जा आधारित परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए नोडल मंत्रालय: MNRE
    • NPGE  2025 के लक्ष्य 
      • भूतापीय ऊर्जा विकास और उपयोग, अत्याधुनिक अन्वेषण व ड्रिलिंग तकनीक, जलाशय प्रबंधन और किफायती विद्युत उत्पादन पर अनुसंधान में सुधार करना;
      • भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व की सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाने के लिए मंत्रालयों, अंतर्राष्ट्रीय भूतापीय विकास संस्थाओं और राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग करना;
      • भवनों, कृषि, उद्योगों आदि को कार्बन मुक्त बनाने के लिए भूतापीय हीटिंग और कूलिंग तकनीकों, और इसके अन्य प्रत्यक्ष-उपयोग से जुड़े समाधानों को लागू करना।
      • सार्वजनिक-निजी भागीदारी, क्षमता निर्माण और इससे जुड़े ज्ञान को साझा करने हेतु अनुकूल परिस्थितियां बनाना।

    नीति की मुख्य विशेषताएँ

    • नीति का दायरा:
      • भू-तापीय संसाधन का आकलन, बिजली उत्पादन प्रणालियाँ, प्रत्यक्ष उपयोग, ग्राउंड (भू-तापीय) सोर्स हीटिंग पंप (GSHP), आदि।
      • उभरती हुई नवीन प्रौद्योगिकियाँ जैसे अत्याधुनिक भू-तापीय प्रणालियां (EGS), अत्याधुनिक भू-तापीय प्रणालियाँ (AGS), भू-तापीय ऊर्जा भंडारण, अपतटीय भू-तापीय कूप आदि।
      • परित्यक्त तेल और गैस कूपों से भू-तापीय ऊर्जा की प्राप्ति।
      • सिलिका, बोरेक्स, सीज़ियम, लिथियम जैसे खनिज उप-उत्पाद।  हालांकि इन पर खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (MMDR एक्ट) के तहत नियम और रॉयल्टी का भुगतान लागू होगा।
    • भू-तापीय संसाधन डेटा रिपॉजिटरी का निर्माण: सरकारी संस्थाओं और एजेंसियों के बीच सहयोग से इस रिपॉजिटरी का निर्माण किया जाएगा। जैसे कि केंद्रीय खान मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के बीच सहयोग; भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), नेशनल डेटा रिपॉजिटरी (NDR), जैसे संस्थानों के बीच सहयोग।
      • ऑपरेटर्स/डेवलपर्स को अनुसंधान एवं विकास, आकलन आदि के लिए भू-तापीय संसाधन आकलन सर्वेक्षण करने की अनुमति होगी।  
    • विकास मॉडल
      • स्वदेशी भू-तापीय प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता दी जाएगी और स्थानीय इनोवेशन को बढ़ावा दिया जाएगा।
      • आर्थिक रूप से लाभकारी मॉडल: जैसे राजस्व साझा करना, उपलब्धि आधारित भुगतान आदि।
      • केंद्रीय वित्तीय सहायता: पूर्वोत्तर क्षेत्र और विशेष श्रेणी के राज्यों को दी जाएगी।
      • संयुक्त उद्यम: तेल और गैस कंपनियों, खनिज कंपनियों और भू-तापीय डेवलपर्स के बीच।
      • तेल और गैस उत्पादन केंद्रों का फिर से उपयोग: जैसे कि पाइपलाइन का उपयोग, आदि।
      • अनुसंधान एवं विकास और प्रशिक्षण के लिए पायलट परियोजनाएं और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (CoEs)।
    • संधारणीयता 
      • भू-तापीय तरल पदार्थों या उप-उत्पादों के सुरक्षित और प्रदूषण-रहित उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी के अपनाने को बढ़ावा देना।
      • भू-तापीय परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव आकलन दिशानिर्देश तैयार करना।
    • वित्तपोषण (फाइनेंसिंग) व्यवस्था
      • नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम (Renewable Energy Research and Technology Development Programme: RE-RTD) सरकारी/गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठनों को 100% तक तथा उद्योग जगत, स्टार्टअप, निजी संस्थानों, उद्यमियों और विनिर्माण इकाइयों को 70% तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। 
      • लंबे समय के लिए रियायती ऋण, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) की सुविधाएँ, आदि।
    • राजकोषीय प्रोत्साहन: उपकरणों, सेवाओं पर जीएसटी/आयात शुल्क में छूट; कर छूट आदि।
    • समर्थन तंत्र: इस क्षेत्र की योजनाओं को भारतीय कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम में शामिल किया जाएगा; राज्यों के बीच ग्रिड की सुविधा, ओपन एक्सेस शुल्क में छूट; नवीकरणीय ऊर्जा खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligation: RPO) के लिए पात्र होना, आदि।  
    • राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए दिशा-निर्देश
      • भूतापीय ऊर्जा स्रोत की खोज /विकास परमिट देने और भूमि-पट्टे प्रदान करने की जिम्मेदारी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर  होगी। 
        • भूतापीय ऊर्जा स्रोत की खोज (अन्वेषण) संबंधी पट्टे 3 से 5 वर्षों के लिए दिए जा सकते हैं।
        • भूतापीय ऊर्जा से बिजली उत्पादन या भूतापीय ऊर्जा के प्रत्यक्ष-उपयोग वाले समाधानों  के विकास हेतु 30 वर्षों तक के लिए पट्टे दिए जा सकते हैं।
      • नामित राज्य नोडल एजेंसियों द्वारा प्रबंधित सिंगल विंडो क्लीयरेंस व्यवस्था शुरू करनी होगी।
      • विशेष रूप से आदिवासी और सुदूर क्षेत्रों में, भूतापीय ऊर्जा के विकास से पहले हितधारकों से परामर्श करना और पर्याप्त क्षतिपूर्ति उपाय सुनिश्चित करना

    निष्कर्ष

    राष्ट्रीय भू-तापीय नीति, 2025  मंजूरी और अन्य प्रक्रियाओं को सरल बनाकर, अनुसंधान एवं विकास (R&D) और साझेदारियों को बढ़ावा देकर, तथा वित्तीय प्रोत्साहन व सहायता प्रदान करके इस क्षेत्रक की चुनौतियों को दूर करने प्रयास करती है। स्थानीय इनोवेशन को बढ़ावा देकर, इस क्षेत्र से जुड़े या प्रभावित व्यक्तियों या संस्थाओं से परामर्श करके और विशेष पायलट परियोजनाओं  के माध्यम से यह नीति भू-तापीय ऊर्जा के सतत और भरोसेमंद विकास के लिए मजबूत आधार तैयार करती है।

    • Tags :
    • Geothermal Energy
    • National Policy on Geothermal Energy
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