उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका सुपर संसद के रूप में कार्य नहीं कर सकती | Current Affairs | Vision IAS
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    उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका सुपर संसद के रूप में कार्य नहीं कर सकती

    Posted 19 Apr 2025

    10 min read

    उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की आलोचना करते हुए कहा कि वह अपनी संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है तथा एक “सुपर संसद” के रूप में कार्य करने का प्रयास कर रही है।

    • उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की आलोचना की है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति हेतु तीन महीने की समय-सीमा निर्धारित की थी और संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए 10 लंबित विधेयकों को स्वीकृति प्राप्त मान लिया था।
    • उन्होंने अनुच्छेद 142 की भी आलोचना करते हुए कहा कि यह एक ऐसी परमाणु मिसाइल बन गई है, जो लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ न्यायपालिका के पास चौबीसों घंटे मौजूद रहती है।

    अनुच्छेद 142 के बारे में

    • अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को 'उसके समक्ष लंबित किसी भी हित या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री पारित करने या कोई भी आदेश देने' में सक्षम बनाता है।
    • यह मूल रूप से एक असाधारण उपाय के रूप में परिकल्पित है। इसका अर्थ है कानून में मौजूद कमियों को दूर करना और आवश्यकता पड़ने पर कानूनी प्रावधानों की उपेक्षा करके न्याय सुनिश्चित करना।
      • उदाहरण: भंवरी देवी और अन्य बनाम राजस्थान राज्य (2002), सुप्रीम कोर्ट ने 'विशाखा दिशा-निर्देश' जारी किए थे।

    अनुच्छेद 142 से जुड़ी हुई चिंताएं

    • व्यक्तिपरक व्याख्या: अनुच्छेद 142 के तहत "पूर्ण न्याय" की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। इससे न्यायिक विवेकाधिकार एवं इस अनुच्छेद के संभावित दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है।
    • न्यायिक अतिक्रमण: यह न्यायपालिका को पारंपरिक रूप से विधायिका या कार्यपालिका के लिए आरक्षित क्षेत्रों में हस्तक्षेप करने में सक्षम बनाता है।
    • शक्तियों के पृथक्करण के विरुद्ध: यह न्यायिक सक्रियता और न्यायिक विधान के बीच की रेखा को अस्पष्ट करता है। इससे ‘शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत’ के उल्लंघन को लेकर चिंता पैदा होती है।
    • Tags :
    • अनुच्छेद 142
    • पूर्ण न्याय
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    • न्यायिक सक्रियता
    • सुपर संसद
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