मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य वाद में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी लिखित रूप में नहीं दी जाती, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
निर्णय के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- गिरफ्तारी के कारणों को जानने का अधिकार: यह संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत एक मूल और अनिवार्य सुरक्षा उपाय है। यह भारतीय न्याय संहिता (BNS) में वर्णित अपराधों सहित सभी अपराधों पर लागू होता है।
- इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि यह संवैधानिक सुरक्षा केवल विशेष कानूनों जैसे गैर-कानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) या धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी कानूनों के मामलों में लागू है।
- अपवाद वाली परिस्थितियां: यदि किसी स्थिति में तुरंत लिखित आधार देना संभव नहीं है, तो आरोपी को मौखिक रूप से बताया जा सकता है।
- हालांकि, लिखित आधार दो घंटे के भीतर आरोपी को रिमांड कार्यवाही के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से पहले जरूर प्रदान करना होगा।
- इससे गिरफ्तार व्यक्ति के अनुच्छेद 22(1) के तहत संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा और आपराधिक जांच की परिचालन संबंधी निरंतरता को बनाए रखने के बीच एक न्यायसंगत संतुलन सुनिश्चित होगा।
- हालांकि, लिखित आधार दो घंटे के भीतर आरोपी को रिमांड कार्यवाही के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से पहले जरूर प्रदान करना होगा।
- संचार का तरीका: संचार लिखित में होना चाहिए और गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा समझी जाने वाली भाषा में होना चाहिए।
संबंधित अनुच्छेद
|