सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का समय आ गया है | Current Affairs | Vision IAS
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    सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का समय आ गया है

    Posted 23 Sep 2025

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    सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने, दुरुपयोग को रोकने तथा व्यक्तिगत अधिकारों के साथ प्रतिष्ठा को संतुलित करने के लिए मानहानि को अपराधमुक्त करने का सुझाव दिया है तथा लोकतंत्र और असहमति पर इसके प्रभाव को रेखांकित किया है।

    हाल ही में हुई एक सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब मानहानि को अपराध नहीं माना जाना चाहिए। 

    मानहानि (Defamation) क्या है?

    • मानहानि का मतलब है- झूठे और दुर्भावनापूर्ण बयानों को बोलकर, लिखकर या प्रकाशित करके किसी व्यक्ति, समूह या किसी के करीबी रिश्तेदार की साख/ प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना।
    • आमतौर पर मानहानि के दो रूप हैं- लिखित/ अपमानजनक लेख से मानहानि और मौखिक/ बदनाम करने से संबंधित मानहानि। 
      • लिखित/ अपमानजनक लेख (Written or Libel) से मानहानि: लिखित शब्दों, चित्रों या प्रकाशित सामग्री के जरिए की गई मानहानि।
      • मौखिक/ बदनाम करने से संबंधित (Oral or Slander) मानहानि: यह गलत बोला गया बयान होता है, जो मौखिक रूप से किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है।
    • भारत में प्रावधान/स्थिति
      • भारतीय कानून के तहत, पीड़ित व्यक्ति मानहानि के लिए क्रिमिनल अपराध और/या सिविल अपराध दोनों तरह से मुकदमा दायर कर सकता है।
      • वर्तमान में, भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 में मानहानि को अपराध घोषित किया गया है। यह पहले IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 499 के अंतर्गत थी। 

    मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की आवश्यकता क्यों है?

    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन: आपराधिक मानहानि के नियम संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अधिकारों को प्रतिबंधित कर सकते हैं, क्योंकि कानूनी दंड का डर सार्वजनिक रूप से विचारों की अभिव्यक्ति को रोक सकता है।
    • असहमति को दबाना: निजी व्यक्तियों द्वारा आलोचकों को डराने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • अन्य: प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरा, आदि।

    मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के पक्ष में सिफारिशें और निर्णय

    • विधि आयोग की रिपोर्ट (285वीं रिपोर्ट): इसमें कहा गया था कि प्रतिष्ठा (Reputation) अनुच्छेद 21 का एक अहम हिस्सा है। दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाकर किसी और की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिष्ठा के साथ समझौता नहीं किया जा सकता।
    • सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016) मामले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा की रक्षा के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करते हुए आपराधिक मानहानि को बरकरार रखा।
    • गुजरात राज्य बनाम गुजरात हाई कोर्ट (1998): कोर्ट ने कहा कि जो सम्मान खो गया है या जो जीवन समाप्त हो गया है, उसकी भरपाई नहीं की जा सकती।
    • Tags :
    • Defamation
    • Article 19(1)(a)
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