यह निर्णय ‘पारा पर मिनामाता अभिसमय (Mercury)’ के पक्षकारों के छठे सम्मेलन (COP-6) में जेनेवा में लिया गया। इस निर्णय का उद्देश्य पारे से होने वाले प्रदूषण को कम करना है।
- इसके साथ ही, त्वचा को निखारने वाले पारा-मिश्रित उत्पादों का उपयोग समाप्त करने के लिए वैश्विक प्रयासों को भी तेज करने पर सहमति बनी।
पारा (Mercury) के बारे में
- गुण:
- पारा (Hg) भारी और चांदी जैसा सफेद रंग का संक्रमण-धातु (Transition metal) है। यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसका परमाणु क्रमांक 80 है।
- यह तन्य (ductile) और लचीला (malleable) होता है। साथ ही, यह ऊष्मा और विद्युत का सुचालक है।
- यह एकमात्र आम धातु है जो सामान्य तापमान पर द्रव अवस्था में प्राप्त होता है।
- पारा के स्रोत:
- प्राकृतिक स्रोत: ज्वालामुखी उद्गार, महासागरीय उत्सर्जन आदि।
- मानव-जनित स्रोत: खनन (विशेषकर सोने की खानों में), जीवाश्म ईंधन का दहन, धातु व सीमेंट उत्पादन आदि।
- उपयोग: पारे का उपयोग थर्मामीटर, बैरोमीटर, फ्लोरोसेंट लाइट, कुछ बैटरियों, और दंत अमलगम यानी दांतों में कैविटी भरने में किया जाता रहा है।
- विषाक्तता:
- वायुमंडल में उत्सर्जित पारा अंततः पानी में या जमीन पर संचित होता रहता है। एक बार संचित हो जाने पर कुछ सूक्ष्मजीव इसे मिथाइलमर्करी में बदल देते हैं।
- मिथाइलमर्करी अत्यंत विषाक्त होता है। यह मछलियों, शंख-घोंघों तथा मछलियां खाने वाले जीवों में संचित होता रहता है।
- पारे की बहुत कम मात्रा के भी संपर्क से तंत्रिका तंत्र, किडनी, त्वचा, आंखें, पाचन तंत्र और प्रतिरक्षा तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- वायुमंडल में उत्सर्जित पारा अंततः पानी में या जमीन पर संचित होता रहता है। एक बार संचित हो जाने पर कुछ सूक्ष्मजीव इसे मिथाइलमर्करी में बदल देते हैं।
‘पारा पर मिनामाता अभिसमय’ के बारे में
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