भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने एक कृषि-पारिस्थितिक आधार मानचित्र विकसित किया है। इसका उर्वरकों के उपयोग, फसल प्रणालियों और अन्य कारकों के मृदा जैविक कार्बन (Soil Organic Carbon: SOC) पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए उपयोग किया जाएगा।
अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- तापमान: SOC का तापमान के साथ नकारात्मक संबंध होता है, अर्थात् जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, SOC कम होता जाता है।
- असंतुलित उर्वरक उपयोग: इसके कारण SOC में गिरावट आती है।
- हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में, उर्वरकों में यूरिया व फास्फोरस का अधिक उपयोग किया जाता है। इसने SOC को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
- फसल प्रतिरूप (Cropping Pattern): चावल और दलहन आधारित फसल प्रणालियां, गेहूं या मोटा अनाज आधारित फसल प्रणालियों की तुलना में मृदा में अधिक जैविक कार्बन के संचय में योगदान करती हैं।
- सूक्ष्म पोषक तत्व: जिन मृदाओं में SOC की मात्रा कम होती है, उनमें अक्सर सूक्ष्म पोषक तत्वों की अधिक कमी पाई जाती है। इसके विपरीत, यदि SOC की अधिक मात्रा होती है, तो पोषक तत्वों की भी कम कमी पाई जाती है।
- ऊंचाई: भूमि की अधिक ऊंचाई आमतौर पर SOC की उच्च मात्रा से जुड़ी होती है। इसके विपरीत, भूमि की कम ऊंचाई SOC की कम मात्रा से संबद्ध होती है।
सिफारिशें
- वृक्षारोपण को बढ़ावा देना: लगभग सभी प्रकार की मृदाओं पर वनस्पति उगानी चाहिए और बड़ी संख्या में पौधरोपण को बढ़ावा देना चाहिए।
- कार्बन क्रेडिट को सुगम बनाना: उन किसानों को प्रोत्साहन देना चाहिए, जो मृदा से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को प्राप्त कर उसे SOC में बदलने में सक्षम होते हैं।
- कार्बन प्रच्छादन (Carbon sequestration) को प्रोत्साहित करना: कार्बन की बहुत कम मात्रा वाली मृदा के लिए, सरकारों को फसल प्रतिरूप में बदलाव लाकर कार्बन प्रच्छादन को बढ़ावा देना चाहिए।
- कार्बन प्रच्छादन- इसके तहत कार्बन को वातावरण से हटा कर उसे ठोस अथवा द्रव रूप में संग्रहित किया जाता है।
मृदा जैविक कार्बन (SOC)
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