भारत में मीथेन उत्सर्जन के बेहतर प्रबंधन से “अपशिष्ट-मुक्त शहर” बनाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है | Current Affairs | Vision IAS
News Today Logo

    भारत में मीथेन उत्सर्जन के बेहतर प्रबंधन से “अपशिष्ट-मुक्त शहर” बनाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है

    Posted 15 Dec 2025

    1 min read

    Article Summary

    Article Summary

    भारत अपने मीथेन उत्सर्जन का 15% कचरे से उत्पन्न करता है, लेकिन निगरानी, ​​कचरा पृथक्करण और जैव ऊर्जा जैसे लक्षित हस्तक्षेप उत्सर्जन को तेजी से कम कर सकते हैं, जिससे जलवायु लक्ष्यों और शहरी स्वच्छता में सहायता मिलेगी।

    भारत, विश्व में तीसरा सबसे बड़ा मीथेन उत्सर्जक है। भारत, विश्व में कुल मीथेन उत्सर्जन के लगभग 9% के लिए जिम्मेदार है। भारत के कुल मीथेन उत्सर्जन में से लगभग 15% उत्सर्जन अपशिष्ट (वेस्ट) क्षेत्र से होता है। 

    • मीथेन उत्सर्जन के अन्य प्रमुख स्रोतों में शामिल हैं:
      • कृषि क्षेत्रक: जुगाली करने वाले पशुओं में आंत्र किण्वन (Enteric fermentation), पशुओं के गोबर और मूत्र जैसे अपशिष्टों का प्रबंधन, धान की खेती;
      • ऊर्जा क्षेत्रक: जीवाश्म ईंधनों का उपयोग, कोयला खदानें, प्राकृतिक गैस एवं तेल उत्पादन प्रणालियों से रिसाव।
    • कृषि और ऊर्जा क्षेत्रकों में सुधार के लिए जटिल एवं दीर्घकालिक सुधारों की आवश्यकता होती है, जबकि अपशिष्ट प्रबंधन में लक्षित उपायों से मीथेन उत्सर्जन में त्वरित कटौती संभव है। 

    अपशिष्ट से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करने हेतु उपाय

    • उत्सर्जन के स्रोतों का सही से निगरानी: उपग्रहों के उपयोग से वास्तव में क्षेत्रीय स्तर पर मीथेन उत्सर्जन के रुझानों का पता लगाया जा सकता है। इससे हाई-रिज़ॉल्यूशन उपग्रह डेटा के माध्यम से उच्च उत्सर्जन (हॉटस्पॉट) वाले स्थानों की सटीक पहचान करने में मदद मिल सकती है।
      • वर्ष 2023 में उपग्रह डेटा आधारित इसरो के अध्ययन ने पिराना (गुजरात); देवनार और कांजुरमार्ग (महाराष्ट्र) तथा गाजीपुर (दिल्ली) जैसे मीथेन उत्सर्जक प्रमुख स्थलों की पहचान की। 
    • स्वच्छ भारत मिशन (शहरी एवं ग्रामीण) के तहत अपशिष्ट उत्पादन के स्रोत पर कचरे को अलग-अलग करना: गीले, सूखे और खतरनाक अपशिष्टों को उनके उत्पादन स्रोत पर सख्ती से अलग-अलग करके मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
    • गोबरधन (GOBARdhan) योजना के तहत अपशिष्ट से ऊर्जा एवं बायो-CNG को प्रोत्साहन देना: गीले अपशिष्ट से मीथेन प्राप्ति (कैप्चर) हेतु बायोगैस एवं बायो-CNG संयंत्रों की स्थापना को बढ़ावा देना चाहिए।
    • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत वैज्ञानिक तरीके से लैंडफिल प्रबंधन: खुले डंपिंग स्थलों की जगह गैस संग्रहण एवं लीचेट प्रबंधन प्रणालियों से युक्त इंजीनियर्ड लैंडफिल को बढ़ावा देना चाहिए।
    • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के अंतर्गत कार्य-योजना की पहचान करना: अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों में भारत की NDCs के तहत जलवायु कार्य-योजना लक्ष्यों के अनुरूप सुधार करना चाहिए।

    मीथेन के बारे में

    • मीथेन में, 20 वर्षों की अवधि में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 84 गुना अधिक वैश्विक तापवृद्धि क्षमता है। यह कार्बन डाइऑक्साइड के बाद मानवजनित-तापवृद्धि का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण है।
      • वायुमंडलीय तापवृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के लिए मीथेन उत्सर्जन में अधिकतम संभव कटौती आवश्यक है।
    • मीथेन अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक (SLCP) है। इसका वायुमंडलीय जीवनकाल लगभग 12 वर्ष होता है। यह धरातलीय ओजोन प्रदूषण का एक प्रमुख अग्रदूत (Precursor) भी है।
    • Tags :
    • Methane
    Watch News Today
    Subscribe for Premium Features