वर्ष 2022-23 से 2024-25 तक, देश भर की विभिन्न लोक अदालतों में 23.5 करोड़ से अधिक मामलों का निपटान किया जा चुका है।
लोक अदालत ढांचा
- स्थापना: लोक अदालत एक वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र है। इसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित किया गया है। इसकी स्थापना त्वरित और वहनीय न्याय प्रदान करने के लिए की गई है।
- उद्देश्य: लंबित मामलों को कम करना; सहमति से समझौतों को बढ़ावा देना और न्याय तक पहुंच को मजबूत करना।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) के अनुसार 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
- प्राधिकरण: लोक अदालत को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा आयोजित किया जाता है। भारत का मुख्य न्यायाधीश (CJI) NALSA का मुख्य संरक्षक (Patron-in-Chief) होता है।
- प्रवर्तन: इसके पंचाट/फैसले अंतिम और बाध्यकारी होते हैं तथा दीवानी न्यायालय की डिक्री के समतुल्य होते हैं। इसके निर्णयों के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है।
- दायरा: लोक अदालत में दीवानी या फौजदारी लंबित मामलों या मुकदमा शुरू होने से पहले मामलों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा या समझौता किया जाता है। हालांकि, गैर-शमनीय अपराधों (non-compoundable offences) और तलाक के मामलों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
लोक अदालतों के प्रकार
- राष्ट्रीय लोक अदालत (NLA): इसमें न्यायपालिका के सभी स्तरों पर (उच्चतम न्यायालय से लेकर तालुका स्तरों तक) एक ही दिन राष्ट्रव्यापी व एक साथ आदालतें आयोजित की जाती हैं। इसका उद्देश्य बड़ी संख्या में मामलों का निपटारा करना होता है।
- स्थायी लोक अदालत (PLA): यह सार्वजनिक जन-उपयोगिता सेवाओं (जैसे- परिवहन, डाक, तार, बिजली, जल आपूर्ति आदि) से संबंधित ₹ 1 करोड़ तक के मामलों के लिए आयोजित की जाती है।
- ई-लोक अदालत और मोबाइल या सचल लोक अदालत:
- ई-लोक अदालतें डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से वर्चुअल भागीदारी की अनुमति देती हैं और न्याय को सुलभ बनाती हैं।
- मोबाइल लोक अदालतें विवादों को निपटाने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा करने हेतु आयोजित की जाती हैं।
