जैव-सुरक्षा से तात्पर्य उन प्रथाओं व प्रणालियों के समूह से है, जिन्हें जैविक अभिकारकों, विषाक्त पदार्थों या प्रौद्योगिकियों के जानबूझकर दुरुपयोग को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
भारत को जैव-सुरक्षा की आवश्यकता क्यों है?
- कृषि और खाद्य सुरक्षा जोखिम: कृषि एवं पशुधन पर निर्भरता भारत को कृषि-आतंकवाद (Agro-terrorism) तथा बायो-सेबोटेज (Bio-sabotage) के प्रति सुभेद्य बनाती है।
- बायो-सेबोटेज: यह जानबूझकर किसी देश की कृषि, पशुधन या खाद्य आपूर्ति को नुकसान पहुंचाने या नष्ट करने का कृत्य है।
- भौगोलिक कारक: छिद्रिल (Porous) और समुद्री सीमाएं रोगजनकों एवं आक्रामक प्रजातियों के सीमा-पार आवागमन का जोखिम पैदा करती हैं।
- गैर-राज्य अभिकर्ताओं से खतरा: कम लागत वाले विषाक्त पदार्थों (जैसे- राइसिन/ Ricin) तक पहुंच असममित जैविक युद्ध के जोखिम को बढ़ाती है।
- आतंकवाद के इस दौर में असममित जैविक युद्ध (Asymmetric biological warfare) बहुत उपयुक्त रणनीति मानी जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जैविक हथियारों को बनाने की लागत कम होती है, लेकिन अधिक संक्रामक होने के कारण इनका प्रभाव अधिक खतरनाक हो सकता है।
- जैव प्रौद्योगिकी का प्रसार: नए युग के जैव-प्रौद्योगिकी उपकरण दुरुपयोग और आकस्मिक रिसाव के जोखिम को बढ़ाते हैं।
- यहां आकस्मिक रिसाव का तात्पर्य अनजाने में या सुरक्षा नियमों के उल्लंघन के कारण किसी रोगजनक का प्रयोगशाला से बाहर निकलना है।
- लोक स्वास्थ्य: जैव-सुरक्षा संबंधी घटनाएं स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को पंगु बना सकती हैं। उदाहरण के लिए- पशुजन्य (Zoonotic) बीमारियों का फैलना।
आगे की राह:
- विधायी और विनियामक ढांचा:
- भारत को आधुनिक खतरों (उदाहरण के लिए- प्रौद्योगिकी के दोहरे-उपयोग की दुविधा) से निपटने वाले एक समर्पित जैवसुरक्षा कानून की आवश्यकता है।
- वैश्विक आदर्श कानून स्वास्थ्य, रक्षा और जैव-प्रौद्योगिकी निरीक्षण को एकीकृत करते हैं। उदाहरण के लिए- संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय जैव-सुरक्षा रणनीति, ऑस्ट्रेलिया का जैव-सुरक्षा अधिनियम आदि।
- नोडल जैव-सुरक्षा एजेंसी: स्वास्थ्य, कृषि और रक्षा मंत्रालयों में अंतर-एजेंसी समन्वय को सुव्यवस्थित करना चाहिए।
- अनुसंधान एवं विकास: विषाणु (वायरस) संक्रमण से बचाव के लिए रक्षा-तंत्र और टीकों के विकास तथा जैव-खतरे के शमन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- नए युग की जैव रक्षा प्रौद्योगिकियां: उदाहरण के लिए- माइक्रोबियल फोरेंसिक, सोशल मीडिया निगरानी आदि।
जैव-सुरक्षा से संबंधित पहलें:वैश्विक स्तर पर आरंभ की गई पहलें:
भारत द्वारा आरंभ की गई पहलें:
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