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    उपराष्ट्रपति ने कहा कि, “किसी देश की संप्रभुता सैन्य आक्रमणों से नहीं, बल्कि विदेशी डिजिटल अवसंरचना पर निर्भरता से कमजोर और समाप्त होगी”

    Posted 14 Jul 2025

    12 min read

    उपराष्ट्रपति ने यह भी चेतावनी दी कि आज राष्ट्र एक नए प्रकार के औपनिवेशीकरण का सामना कर रहे हैं। यह औपनिवेशीकरण सेनाओं द्वारा नहीं, बल्कि एल्गोरिदम द्वारा किया जा रहा है। इससे डिजिटल उपनिवेशवाद के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं।

    डिजिटल उपनिवेशवाद (Digital Colonialism)

    • परिभाषा: यह एक ऐसी प्रक्रिया को दर्शाता है, जिसमें विकसित देश और उनकी बड़ी टेक कंपनियां डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके विकासशील देशों पर नियंत्रण स्थापित करती हैं और उनसे लाभ कमाती हैं। 
      • यह मुख्य रूप से ग्लोबल साउथ के नव-उपनिवेशवाद से संबंधित है, अर्थात् ग्लोबल नॉर्थ किस प्रकार ग्लोबल साउथ के डिजिटल क्षेत्र पर नियंत्रण रखता है।
    • उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका की कंपनियां जैसे गूगल और अमेजन विकासशील देशों से डेटा एकत्र करती हैं तथा विविध उद्योगों को पुनः आकार देती हैं (इन्फोग्राफिक देखें)।

    इससे संबंधित मुख्य चिंताएं कौन-सी हैं?

    • डिजिटल संप्रभुता का ह्रास: विकसित देश और बड़ी टेक कंपनियां वैश्विक डिजिटल नियम तय करते हैं। उदाहरण के लिए- 2024 में WhatsApp ने भारत छोड़ने की धमकी दी, क्योंकि वह 2021 के आई.टी. नियमों में ‘ट्रेसेबिलिटी क्लॉज़’ का विरोध कर रहा था।
    • सांस्कृतिक साम्राज्यवाद: सोशल मीडिया और सर्च इंजन प्रायः विकसित देशों का वैश्विक दृष्टिकोण थोपते हैं तथा स्थानीय संस्कृतियों को हाशिए पर डाल देते हैं।
    • निगरानी पूंजीवाद: कंपनियां बिना सहमति के उपयोगकर्ताओं का विशाल डेटा एकत्र करती हैं। इससे निजता और नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।

    डिजिटल उपनिवेशवाद से निपटने के उपाय

    • डिजिटल संप्रभुता को मजबूत करना: स्वदेशी डिजिटल प्रणालियों के विकास पर फोकस करना चाहिए, जैसे- ONDC (ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स), इंडिया स्टैक आदि।
    • डेटा स्थानीयकरण को लागू करना: इस संबंध में भारत ने अग्रलिखित कदम उठाए हैं- डेटा प्रसार पर ओसाका ट्रैक पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना; डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDP Act), 2023 को लागू करना आदि।
    • आयात पर निर्भरता कम करना: रक्षा, अंतरिक्ष और विज्ञान जैसे प्रमुख क्षेत्रकों में स्थानीय उत्पादन को प्राथमिकता देना। उदाहरण के लिए- मेक इन इंडिया पहल, चिप्स टू स्टार्ट-अप ('C2S') कार्यक्रम आदि।
    • नीतियों को अपडेट करना: संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास की 2021 की रिपोर्ट में देशों को डेटा प्रवाह नीतियों की समय-समय पर समीक्षा करने का सुझाव दिया गया है। इससे आर्थिक संवृद्धि, जनहित और कनेक्टेड वैश्विक डिजिटल इकोसिस्टम के बीच संतुलन बना रहेगा।
    • Tags :
    • ग्लोबल साउथ
    • नव-उपनिवेशवाद
    • डिजिटल उपनिवेशवाद
    • संप्रभुता
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