यह विधेयक बीमा अधिनियम 1938, भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956 और भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) अधिनियम 1999 में संशोधन करता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य बीमा क्षेत्रक की संवृद्धि एवं विकास को गति देना और पॉलिसीधारकों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
विधेयक की मुख्य विशेषताओं पर एक नजर
- 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): विधेयक में भारतीय बीमा कंपनियों में FDI की सीमा को चुकता इक्विटी पूंजी (paid-up equity capital) के 74% से बढ़ाकर 100% किया गया है।
- चुकता पूंजी से तात्पर्य उस इक्विटी पूंजी से है, जिसका शेयरधारकों द्वारा स्वामित्व हितों के बदले पूरी तरह से भुगतान किया जा चुका होता है।
- पॉलिसीधारक शिक्षा और संरक्षण कोष की स्थापना: इस कोष का उपयोग पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करने और उन्हें जागरूक बनाने के लिए किया जाएगा।
- इस कोष का प्रशासन IRDAI द्वारा किया जाएगा।
- विदेशी पुनर्बीमाकर्ताओं (Re-insurers) के लिए निवल-स्वाधिकृत निधि (Net-owned fund) की आवश्यकता में कटौती: विदेशी पुनर्बीमा कंपनियों के लिए 'निवल-स्वाधिकृत निधि' की आवश्यकता को 5,000 करोड़ रुपये से घटाकर 1,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इससे अधिक पुनर्बीमा कंपनियां बाजार में प्रवेश कर सकेंगी।
- निवल-स्वाधिकृत निधि: यह किसी कंपनी की वास्तविक वित्तीय स्थिति को दर्शाता है। इसमें कंपनी की चुकता पूंजी आदि शामिल होते हैं।
- अन्य महत्वपूर्ण:
- IRDAI के पास अब गलत तरीके से प्राप्त लाभों (wrongful gains) की वसूली के लिए SEBI के समान प्रवर्तन शक्तियां होंगी।
- भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को अधिक परिचालनात्मक स्वतंत्रता दी जाएगी। इसमें सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नए क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित करना भी शामिल है।