भारत-जर्मनी संबंध (INDIA-GERMANY RELATIONS) | Current Affairs | Vision IAS
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    भारत-जर्मनी संबंध (INDIA-GERMANY RELATIONS)

    Posted 26 Dec 2024

    Updated 31 Dec 2024

    26 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    हाल ही में, जर्मनी के चांसलर ने भारत की आधिकारिक यात्रा की। उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत एवं जर्मनी के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करना था।

    जर्मनी के चांसलर की भारत यात्रा के मुख्य बिंदु

    • वर्ष 2024 को भारत और जर्मनी के बीच सामरिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ के रूप में मनाया गया।  
      • दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी पर वर्ष 2000 में हस्ताक्षर किए गए थे। 
    • दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित 'वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी विकास में सहयोग पर अंतर-सरकारी समझौता' की 50वीं वर्षगांठ भी 2024 में मनाई गई।
    • जर्मन चांसलर की भारत यात्रा के दौरान 7वें अंतर-सरकारी परामर्श (Inter-Governmental Consultations: IGC) का आयोजन किया गया। इस दौरान नवीकरणीय ऊर्जा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में सहयोग के लिए 'भारत-जर्मनी नवाचार और प्रौद्योगिकी साझेदारी रोडमैप' की शुरुआत की गई।

    भारत-जर्मनी साझेदारी का महत्त्व

    • व्यापार और निवेश:
      • यूरोपीय देशों में जर्मनी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वर्ष 2023 में भारत और जर्मनी के बीच द्विपक्षीय व्यापार 33.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
      • जर्मनी, भारत में FDI का 9वां सबसे बड़ा स्रोत है। अप्रैल, 2000 से दिसंबर, 2023 के बीच जर्मनी ने भारत में कुल 14.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया था।
      • जर्मनी को भारत के विशाल और बढ़ते उपभोक्ता बाजार का लाभ मिल रहा है। इसके अतिरिक्त, भारत जर्मनी को बड़ी संख्या में कुशल श्रम उपलब्ध करा रहा है। भारत में डिजिटल प्रौद्योगिकियों को तेजी से अपनाया जा रहा है, जो जर्मनी के लिए भी लाभप्रद है।
    • जलवायु और संधारणीयता:
      • 2022 की हरित एवं सतत विकास साझेदारी के अंतर्गत, जर्मनी ने भारत को सौर ऊर्जा  और एग्रो-इकोलॉजी जैसी परियोजनाओं के लिए 10 बिलियन यूरो की सहायता देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
      • भारत के नेतृत्व में शुरू की गई आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में जर्मनी भी शामिल है।
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार: भारत-जर्मन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र (IGSTC)) प्राथमिकता प्राप्त 49 परियोजनाओं को सहायता प्रदान करता है। इनमें विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान में महिलाएं (WISER) जैसी पहल भी शामिल हैं।
    • रक्षा एवं सुरक्षा: 2006 के रक्षा सहयोग समझौते के परिणामस्वरूप आतंकवाद-रोधी, साइबर सुरक्षा और डिफेंस के क्षेत्र में संयुक्त कार्य समूह का गठन हुआ, जिससे द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा मिला है।
      • इसके अतिरिक्त, हाल ही में जर्मनी ने छह परंपरागत पनडुब्बियों के निर्माण के लिए भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट-75I कार्यक्रम में भाग लेने में अत्यधिक रुचि दिखाई है।
      • संयुक्त अभ्यास: दोनों देश मिलन, पासेक्स (PASSEX) और तरंग शक्ति-1 अभ्यास में भाग लेते हैं।
    • व्यापारिक साझेदारी में वृद्धि: ई.यू.-चीन व्यापार तनाव के बाद कई यूरोपीय कंपनियां चीन प्लस वन रणनीति के तहत चीन पर निर्भरता को कम करते हुए भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने पर जोर दे रही हैं।
      • जून, 2024 में यूरोपीय संघ ने अनुचित व्यापार गतिविधियों में शामिल होने के कारण चीन में विनिर्मित इलेक्ट्रिक वाहनों पर 38.1% तक का प्रशुल्क लगाया था।

    द्विपक्षीय संबंधों में चुनौतियां 

    • व्यापार और निवेश संबंधी बाधाएं: भारतीय कंपनियों को यूरोप में अपने उत्पादों पर कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकेनिज्म (CBAM) जैसी गैर-प्रशुल्क बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
      • इसी प्रकार, नौकरशाही संबंधी बाधाएं और जटिल कर प्रणाली की  वजह से भारत में जर्मनी से होने वाले निवेश में कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2022 में यह निवेश 25 बिलियन यूरो (27 बिलियन डॉलर) था। भारत में जर्मनी का निवेश, चीन में उसके निवेश का केवल 20% है।
    • सामरिक और भू-राजनीतिक मतभेद: रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का रुख तटस्थ रहा है जबकि जर्मनी ने रूसी आक्रामकता का कड़ा विरोध किया है।
    • चीन की भूमिका: जर्मनी की चीन पर आर्थिक निर्भरता बनी हुई है। इसलिए, भारत और चीन विवाद में भारत के पक्ष में जर्मनी का उतना समर्थन नहीं मिलता जितना कि क्वाड देशों, जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान का मिलता है।
    • भारत में मानवाधिकार की आलोचना: भारत की आंतरिक नीतियों (जैसे- कश्मीर मुद्दा, प्रेस की स्वतंत्रता, आदि) की आलोचना के क्रम में जर्मनी, भारत की कूटनीतिक भावनाओं का उतना ख्याल नहीं रखता है।

    आगे की राह

    • मुक्त व्यापार समझौता (FTA): चीन और जर्मनी के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 300 बिलियन यूरो का है। इस मामले में भारत को चीन से प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत-यूरोपीय संघ FTA को शीघ्र पूरा किया जाना चाहिए।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहभागिता: द्विपक्षीय संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों के माध्यम से रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ, 7वें अंतर-सरकारी परामर्श के दौरान घोषित अवसंरचना निवेश को समयबद्ध तरीके से क्रियान्वित करना आवश्यक है।
    • हरित एवं सतत विकास साझेदारी जैसी पहलों के माध्यम से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, ग्रीन हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा जैसी परियोजनाओं के साथ स्वच्छ तकनीक और संधारणीय विकास में सहयोग बढ़ाना चाहिए।
    • आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना: सेमीकंडक्टर, ऑटोमोबाइल पार्ट्स और औषधियों के उत्पादन पर चीन के वर्चस्व को कम करने में जर्मनी और भारत, दोनों देश भागीदार बन सकते हैं। साथ ही जर्मनी, भारत की 'मेक इन इंडिया' पहल का भी समर्थन कर सकता है।
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