स्टारलिंक परियोजना स्पेसएक्स द्वारा निम्न-भू कक्षा में स्थापित उपग्रह समूह (Satellite Constellation) सिस्टम है। इसका उद्देश्य वैश्विक इंटरनेट कवरेज प्रदान करना है।
सैटेलाइट इंटरनेट या उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाओं के बारे में
- परिभाषा: सैटेलाइट इंटरनेट या सैटेलाइट ब्रॉडबैंड पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले संचार उपग्रहों के माध्यम से प्रदान किया जाने वाला एक वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन है।

- महत्व
- डिजिटल विभाजन को कम करना: यह दूरस्थ क्षेत्रों सहित हर जगह इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करता है।
- आपदा प्रबंधन को बढ़ावा: आपदा-प्रवण या भौगोलिक दृष्टि से दुर्गम क्षेत्रों (जैसे, सियाचिन, पूर्वोत्तर भारत आदि) में संचार हेतु सहायता प्रदान करता है।
- उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए समर्थन: यह ग्रामीण भारत में स्मार्ट कृषि, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT), टेलीमेडिसिन और दूरस्थ शिक्षा को अपनाने में सुविधा प्रदान करता है।
- सैन्य एवं राष्ट्रीय सुरक्षा में उपयोग: अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों (जैसे- सियाचिन ग्लेशियर) में बेहतर इंटरनेट सुविधा के लिए भारतीय सेना द्वारा पहले से ही इसका उपयोग किया जा रहा है।
- चुनौतियां
- अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए उच्च लागत: पारंपरिक ब्रॉडबैंड इंटरनेट की तुलना में यह बहुत अधिक महंगा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी व्यवहार्यता सीमित हो जाती है।
- मांग-आपूर्ति असंतुलन: शहरी क्षेत्रों में पहले से ही सस्ते व तेज ब्रॉडबैंड विकल्प मौजूद हैं।
- अवसंरचना संबंधी एवं तकनीकी बाधाएं: इसमें उपग्रह एवं टर्मिनल की अधिक लागत; लेटेंसी एवं बैंडविड्थ संबंधी चिंताएं आदि शामिल हैं।
- अन्य: डेटा सुरक्षा संबंधी चिंताएं, विनियामक बाधाएं, राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मुद्दे आदि मौजूद हैं।
आगे की राह:
- उपग्रह आधारित इंटरनेट का उपयोग एक सहायक समाधान के रूप में करना: इसका उपयोग मुख्य रूप से ग्रामीण, दूरस्थ और आपदाओं के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में किया जा सकता है।
- हाइब्रिड मॉडल: दक्षता को अधिकतम करने के लिए उपग्रह और स्थलीय नेटवर्क को मिलाकर हाइब्रिड मॉडल का उपयोग किया जा सकता है।
- आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने पर ध्यान देना: इसमें हार्डवेयर लागत कम करना, स्थानीय आधार पर मूल्य निर्धारण करना और भारतीय दूरसंचार कंपनियों के साथ सहयोग करना शामिल है।