सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई के दौरान की थी। इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार की उस अधिसूचना को बरकरार रखा, जिसमें हरित क्षेत्र घोषित स्थलों पर सभी प्रकार के निजी निर्माण कार्यों पर रोक लगाई गई थी।
इस क्षेत्र के समक्ष मौजूद प्रमुख मुद्दे: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
- अवसंरचना का विकास: कनेक्टिविटी और पर्यटन (प्राकृतिक एवं धार्मिक दोनों) के दोहरे लक्ष्यों के चलते चार लेन वाले राजमार्ग, अस्थिर ढलानों पर निजी अवसंरचना जैसी परियोजनाओं का प्रसार हो रहा है।
- जलविद्युत का विस्तार: अनियंत्रित निर्माण कार्यों का जलीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। उदाहरण के लिए- सतलज नदी एक छोटी नदी (Rivulet) में तब्दील हो गई है।
- बढ़ती सुभेद्यता: अनियंत्रित और अविनियमित गतिविधियों ने मिट्टी की संरचना एवं पकड़ को कमजोर कर दिया है। इससे आपदाओं के प्रति सुभेद्यता बढ़ गई है। उदाहरण के लिए- कुल्लू (2025), मंडी (2025), शिमला (2023) आदि।
- हिमनदों का पीछे हटना या पिघलना: लाहौल स्पीति में सबसे बड़े बारा शिगरी ग्लेशियर का आकार लगभग 2-2.5 किलोमीटर तक कम हो गया है।
- कानूनी बाधाएं: अपशिष्ट संग्रहण और प्रबंधन के लिए नगरपालिकाओं को विनियमित करने वाले कानून अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के उद्देश्यों के अनुरूप नहीं हैं।
- प्रशासनिक मुद्दे: राज्य में विविध स्थानों पर पहले स्थापित वन रक्षक चौकियों को हटाने से वृक्षों की अवैध कटाई की समस्या और बढ़ गई है।
इस समस्या के प्रभावी समाधान के तरीके
- उचित निगरानी और सरकारी जवाबदेही: ग्रीन टैक्स फंड (विशेष दर्जा प्राप्त जिलों पर लगाया गया) को असंबंधित उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाने से रोकना।
- अवैध कार्यों को रोकना: खनन और उत्खनन जैसे कार्यों को रोकने के लिए वैकल्पिक आय के स्रोत उपलब्ध कराना। साथ ही, पर्यावरणीय विनियमों को प्रभावी रूप से लागू करना।
- विशेषज्ञों की राय को अपनाना: कोई भी विकासात्मक परियोजना शुरू करने से पहले भूवैज्ञानिकों, पर्यावरण संबंधी विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों की राय ली जानी चाहिए।
- संधारणीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: इसमें स्थानीय अपशिष्ट पृथक्करण, सामुदायिक जागरूकता और विकेन्द्रीकृत प्रसंस्करण जैसे उपाय किए जाने चाहिए।