भारत में राजनीतिक वित्त-पोषण को लेकर चिंताएं विद्यमान हैं | Current Affairs | Vision IAS
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In Summary

  • चुनावी ट्रस्ट की रिपोर्ट से पता चलता है कि सत्ताधारी दलों को राजनीतिक निधि का बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ, जिसमें अज्ञात स्रोतों से महत्वपूर्ण धनराशि शामिल है।
  • राजनीतिक वित्तपोषण को आरपीए अधिनियम, 1951, आईटी अधिनियम, 1961 और कंपनी अधिनियम, 2013 द्वारा विनियमित किया जाता है; ₹2,000 से अधिक के दान का पता लगाया जा सकना चाहिए।
  • आगे बढ़ने के तरीकों में सार्वजनिक वित्त पोषण को बढ़ावा देना, एक राष्ट्रीय चुनाव कोष की स्थापना करना और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए चुनाव प्रचार व्यय को सीमित करना शामिल है।

In Summary

हाल ही में, निर्वाचन आयोग ने 'चुनावी न्यास (Electoral Trusts)' को प्राप्त दान पर वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि सत्ताधारी दलों को राजनीतिक चंदे का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ है।

राजनीतिक वित्तपोषण से जुड़े मुद्दे

  • पारदर्शिता की कमी और अनामता: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार, वित्त वर्ष 2004-05 और 2022-23 के बीच, देश के 6 राष्ट्रीय दलों ने अज्ञात स्रोतों से ₹19,083.08 करोड़ एकत्र किए हैं।
  • असमान अवसर: राजनीतिक दलों के चुनावी खर्च पर कानूनी सीमाओं की अनुपस्थिति है। यह उन दलों के पक्ष में है, जिनके पास व्यापक वित्तीय शक्ति है। इससे कमजोर दलों के लिए बाधाएं पैदा होती हैं।
  • कॉर्पोरेट प्रभाव और गठजोड़: भारत में वर्तमान राजनीतिक वित्त-पोषण काफी हद तक कॉर्पोरेट्स पर निर्भर है। इससे ऐसी नीतियां बनती हैं, जो निजी हितों की सेवा करती हैं।
    • चुनावी बॉण्ड मामले (2024) में उच्चतम न्यायालय ने इस 'क्विड प्रो क्वो' (दान के बदले लाभ) को संस्थागत भ्रष्टाचार का उदाहरण बताया था।

भारत में राजनीतिक वित्त-पोषण तंत्र

  • कानूनी प्रावधान: वित्त-पोषण को मुख्य रूप से लोक-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951; आयकर अधिनियम, 1961 और कंपनी अधिनियम, 2013 द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • व्यक्तिगत दान: राजनीतिक दल सरकारी कंपनियों से दान को छोड़कर स्वैच्छिक दान स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन उन्हें ₹20,000 से अधिक के दान की चुनाव आयोग (ECI) को रिपोर्ट देनी होती है।
    • ₹2,000 से अधिक का दान चेक जैसे ट्रैक करने योग्य माध्यमों से किया जाना अनिवार्य है।
  • चुनावी न्यास: ये राजनीतिक दान के लिए मध्यवर्ती के रूप में कार्य करते हैं।

 

आगे की राह

  • लोक वित्त-पोषण को बढ़ावा देना: इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) के अनुसार सरकार द्वारा वित्त-पोषण राजनीतिक दलों के बीच वित्तीय संसाधनों की असमानता को कम कर सकता है।
  • राष्ट्रीय चुनाव कोष की स्थापना: व्यक्तियों और कंपनियों को अपना दान एक साझा कोष के माध्यम से देना चाहिए, जिसे बाद में निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से राजनीतिक दलों को आवंटित किया जा सके।
  • चुनाव प्रचार व्यय पर सीमा: राजनीतिक दल के चुनाव प्रचार खर्च पर एक सीमा तय की जा सकती है, ताकि दल अत्यधिक चुनावी खर्च की चिंता किए बिना चुनाव लड़ सकें।
    • ध्यातव्य है कि उम्मीदवार के चुनाव प्रचार पर व्यय की सीमा निर्धारित की गई है, लेकिन राजनीतिक दल के स्तर पर यह सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
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राष्ट्रीय चुनाव कोष (National Electoral Fund)

यह एक प्रस्तावित तंत्र है जिसके माध्यम से व्यक्ति और कंपनियाँ अपना दान एक साझा कोष में कर सकती हैं, जिसे बाद में निष्पक्ष रूप से राजनीतिक दलों को आवंटित किया जाएगा, जिसका उद्देश्य पारदर्शिता और समानता बढ़ाना है।

इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998)

यह समिति राजनीतिक वित्तपोषण में सुधार के उपायों पर विचार करने के लिए गठित की गई थी, और इसने सार्वजनिक वित्त-पोषण जैसे विभिन्न प्रस्तावों पर सिफारिशें कीं।

कंपनी अधिनियम, 2013

यह अधिनियम भारत में कंपनियों के गठन, संचालन और विघटन को नियंत्रित करता है, और इसमें कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले योगदान पर नियम और सीमाएं शामिल हैं।

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