भारतीय आयात पर अमेरिकी टैरिफ
राष्ट्रपति द्वारा भारतीय आयातों पर 25% "प्लस पेनल्टी" टैरिफ लगाने की घोषणा अप्रत्याशित नहीं थी। इस घटनाक्रम में कई कारकों का योगदान था:
पृष्ठभूमि और कारण
- राष्ट्रपति ने रूस के साथ भारत के व्यवहार की आलोचना की है, विशेष रूप से ऊर्जा और सैन्य उपकरणों के संबंध में।
- भारत की उच्च टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं के बारे में चिंताएं व्यक्त की गई हैं।
- अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि के हालिया बयानों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत के साथ व्यापार समझौते के लिए “कुछ और बातचीत” की आवश्यकता है।
- भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी किसी छोटे समझौते पर चर्चा नहीं कर रहे हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि 1 अगस्त से पहले व्यापार समझौता होना असंभव है।
वर्तमान स्थिति
भारत-अमेरिका संबंधों की बयानबाजी और गतिशीलता में बदलाव आया है:
- राष्ट्रपति ने पाकिस्तान द्वारा भारत को तेल बेचने की संभावना के बारे में टिप्पणी की तथा भारतीय अर्थव्यवस्था की "मृत" होने की आलोचना की।
- किसी भी पक्ष ने अपनी मूल नीतियों में कोई परिवर्तन नहीं किया है:
- अमेरिका भारत से टैरिफ में कमी और व्यापक बाजार पहुंच की मांग कर रहा है।
- भारत कृषि और डेयरी क्षेत्रों के संरक्षण पर अपना रुख बनाए हुए है।
चुनौतियाँ और निहितार्थ
ये घटनाक्रम द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) की संभावनाओं को जटिल बनाते हैं:
- मिनी-डील के लिए समय-सीमा में परिवर्तन के बावजूद, दोनों सरकारों का लक्ष्य BTA के लिए शरद ऋतु की समय-सीमा को पूरा करना है।
- डोनाल्ड ट्रम्प ने रूस के साथ भारत के संबंधों को अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों से जोड़ा है
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा अपने व्यापारिक साझेदारों के चयन में भारत की संप्रभुता पर बल दिया जाता है।
- अमेरिकी बाजार भारत के लिए महत्वपूर्ण है, जो इसके निर्यात का लगभग 20% है।
- नये टैरिफ और जुर्माने से दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे अन्य एशियाई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में भारत को नुकसान हो सकता है।
- विभिन्न व्यापार संघों ने विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चिंता जताई है।
निष्कर्ष
भारतीय वार्ताकारों के सामने एक ऐसा व्यापार समझौता हासिल करने की चुनौती है जो राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हो तथा साथ ही अमेरिकी टैरिफ द्वारा उत्पन्न नई जटिलताओं का समाधान भी करना हो।