हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने एक महत्वपूर्ण खनिज फ्रेमवर्क (Critical Minerals Framework) पर हस्ताक्षर किए हैं। इसका उद्देश्य विशेष रूप से दुर्लभ भू तत्वों के संबंध में चीन के लगभग पूर्ण एकाधिकार से निपटना और महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति में विविधता लाना है।
- इस फ्रेमवर्क में रक्षा विनिर्माण और ऊर्जा सुरक्षा में प्रयुक्त प्रमुख सामग्रियों की आपूर्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अनेक परियोजनाओं के लिए वित्त-पोषण शामिल है।
- यह बाजार में हेरफेर करने वाली चीन की रणनीति से निपटने हेतु महत्वपूर्ण खनिजों के लिए एक न्यूनतम मूल्य सीमा निर्धारित करने हेतु एक तंत्र भी निर्मित करेगा। चीन की ये रणनीतियां वैश्विक प्रतिस्पर्धियों को आर्थिक रूप से अव्यावहारिक बना देती हैं।
महत्वपूर्ण खनिज क्या हैं?
- महत्वपूर्ण खनिज आधुनिक प्रौद्योगिकियों और स्वच्छ ऊर्जा के लिए आवश्यक खनिज हैं, लेकिन सीमित उपलब्धता या कुछ देशों पर निर्भरता के कारण इनकी आपूर्ति का जोखिम अधिक रहता है।
- उदाहरण के लिए- लिथियम, कोबाल्ट, निकल, तांबा, आदि।
- दुर्लभ भू तत्व महत्वपूर्ण खनिजों का एक उपसमूह हैं और ये इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन टर्बाइन, स्मार्टफोन और रक्षा उपकरण जैसी प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक हैं।
महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित चिंताएं
- भौगोलिक संकेन्द्रण: महत्वपूर्ण खनिज उत्पादन और प्रसंस्करण कुछ ही क्षेत्रों में केंद्रित है। इससे वैश्विक आपूर्ति राजनीतिक और आर्थिक जोखिमों से ग्रस्त हो जाती है।
- उदाहरण के लिए- कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य विश्व के 70% कोबाल्ट की आपूर्ति करता है।
- संसाधनों का हथियारीकरण: चीन ने गैलियम और जर्मेनियम जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया है। इससे खनिज व्यापार प्रभावी रूप से एक हथियार बन गया है।
- चीन दुर्लभ भू तत्व क्षेत्रक में भी वर्चस्व रखता है तथा वैश्विक मांग के 85-95% हिस्से की पूर्ति करता है।
महत्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने के लिए भारत की पहलें
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