सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारत ने चीन के किंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
अन्य संबंधित तथ्य
- भारत के इनकार के कारण यह बैठक बिना किसी संयुक्त वक्तव्य के ही समाप्त हो गई।
- SCO चार्टर के अनुसार, इस समूह में फैसले वोटिंग से नहीं बल्कि आपसी सहमति से लिए जाते हैं। इसलिए, यदि किसी सदस्य देश ने किसी निर्णय पर आपत्ति नहीं जताई है, तो उस निर्णय को स्वीकृत माना जाता है।
- भारत को SCO में 2005 में ऑब्जर्वर (पर्यवेक्षक) का दर्जा मिला था और 2017 में इसे पूर्ण सदस्यता दी गई थी।
भारत ने संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इनकार क्यों किया?
- आतंकवाद पर दोहरा मापदंड: दस्तावेज में हाल ही में हुए पहलगाम हमले का कोई ज़िक्र नहीं था, जबकि बलूचिस्तान में हुई उग्रवादी गतिविधियों को शामिल किया गया था।
- भारत ने ज़ोर दिया कि SCO को सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों की आलोचना करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।
- मुख्य सिद्धांतों पर कोई समझौता नहीं: भारत हमेशा से मानता आया है कि शांति और आतंकवाद साथ-साथ नहीं रह सकते, और यह सिद्धांत बहुपक्षीय मंचों पर भी किसी भी हाल में बदलने योग्य नहीं है।
SCO फ्रेमवर्क के तहत भारत के लिए रणनीतिक अवसर
- मध्य एशिया से जुड़ाव/ भू-राजनीतिक पहुंच: SCO मंच का इस्तेमाल मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है।
- यह मंच कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति को मजबूत करने में मदद करेगा।
- आर्थिक और ऊर्जा सहयोग: उदाहरण के लिए- 2022 में कजाकिस्तान ने खदानों से यूरेनियम का सबसे बड़ा हिस्सा (विश्व आपूर्ति का 43%) उत्पादित किया था।
- क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देना: उदाहरण के लिए- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC)।
- पाकिस्तान और चीन के साथ संवाद: SCO द्विपक्षीय तनावों के बावजूद संवाद बनाए रखने के लिए एक राजनयिक माध्यम के रूप में कार्य करता है।
SCO को लेकर भारत की चिंताएं
- चीन का बहुपक्षीय प्रभाव: चीन इस समूह को अपने नेतृत्व वाला एक ऐसा बहुपक्षीय मंच बनाना चाहता है जो उसके क्षेत्रीय भू-आर्थिक और रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाए।
- उदाहरण: BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) को क्षेत्र में प्रमुखता दिलाने में मदद करना।
- संगठन के विस्तार को लेकर दुविधा: हाल ही में बेलारूस SCO में शामिल हुआ है। इससे SCO की वैश्विक पहचान तो बढ़ी है, लेकिन इसका क्षेत्रीय फोकस कमजोर हो सकता है।
- SCO की स्थापना केवल मध्य एशिया पर ध्यान केंद्रित करने के लिए हुई थी। ज्यादा विस्तार होने से सदस्य देश अन्य सहयोग मंचों की तलाश कर सकते हैं।
- SCO की प्रभावशीलता: SCO के फैसलों में जरूरी कार्यकारी गारंटी का अभाव है। इसी वजह से यह संगठन, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की तरह, केवल विचार रखने और मतों की घोषणाएं करने का मंच बनकर रह गया है।
- पश्चिम-विरोधी छवि: SCO को कभी-कभी एक पश्चिम-विरोधी समूह के रूप में भी देखा जाता है, खासकर जब चीन, रूस और ईरान के पश्चिम के साथ भू-राजनीतिक तनाव चल रहे हों।
SCO में भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और बहुपक्षीय सहयोग के बीच कैसे संतुलन बनाता है?
- चीनी हितों पर रणनीतिक राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता: 2023 के SCO शिखर सम्मेलन (पाकिस्तान) में भारत ने उस पैराग्राफ पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, जिसमें चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का समर्थन था।
- इससे यह भी पता चलता है कि भारत इस समूह में पाकिस्तान-चीन धुरी एजेंडे से कैसे निपट रहा है।
- सिद्धांतों के साथ चयनात्मक भागीदारी: उदाहरण के लिए- SCO का रीजनल एंटी-टेररिस्ट स्ट्रक्चर (RATS), सदस्य देशों के बीच आतंकवाद विरोधी प्रयासों का समन्वय करता है।
- विकासोन्मुखी मंच को बढ़ावा देना: उदाहरण के लिए- पारंपरिक चिकित्सा और स्टार्ट-अप्स व नवाचार पर सहयोग के लिए SCO का उप‑समूह।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि SCO को एक पश्चिम‑विरोधी मंच के रूप में न देखा जाए।
- रूस के साथ करीबी संबंधों का लाभ उठाना: उदाहरण के लिए- भारत और रूस, SCO के मुख्य एजेंडा पर मिलकर काम करते हैं।

वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था को नया आकार देने में SCO की भूमिका
- SCO का वैश्विक विस्तार: यह यूरेशिया के लगभग 80% भूभाग को कवर करता है और दुनिया की लगभग 42% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।
- बढ़ता आर्थिक प्रभाव: सदस्य देश वैश्विक GDP में लगभग 25% का योगदान करते हैं।
- पश्चिमी वर्चस्व को चुनौती: SCO उन बहुपक्षीय मंचों का एक विकल्प बनकर उभर रहा है, जिन्हें पश्चिमी देशों ने अपने हित साधने के लिए बनाया था।
- सुरक्षा की कमी को पूरा करना: 2021 में नाटो गठबंधन (जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था) के हटने के बाद अफगानिस्तान में जो सुरक्षा शून्यता उत्पन्न हुई है, SCO उस पर काम कर रहा है।
- काबुल के साथ क्षेत्रीय सहयोग बनाए रखने के लिए SCO ने 2005 में अफगानिस्तान संपर्क समूह (ACG) का गठन किया था।
निष्कर्ष
भारत SCO को क्षेत्रीय जुड़ाव के लिए, खासकर मध्य एशिया में एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में देखता है, लेकिन इसके चीन‑केंद्रित झुकाव को लेकर सतर्क रहता है। भारत का संतुलित दृष्टिकोण उसे अपने मूल सिद्धांतों से समझौता किए बिना सार्थक भागीदारी करने की अनुमति देता है।