Select Your Preferred Language

Please choose your language to continue.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN SECURITY COUNCIL: UNSC) | Current Affairs | Vision IAS
Monthly Magazine Logo

Table of Content

संक्षिप्त समाचार

Posted 21 Jul 2025

8 min read

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN SECURITY COUNCIL: UNSC)

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के अस्थायी सदस्य के रूप में 5 देशों का चुनाव किया गया है।

  • ये देश हैं: बहरीन, कोलंबिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, लातविया और लाइबेरिया

UNSC के बारे में

  • स्थापना: इसकी स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के माध्यम से हुई है। यह संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है।
  • उद्देश्य: अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना।
  • सदस्य: 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 अस्थायी सदस्य (इन्फोग्राफिक देखिए)। 

UNSC में सुधार के  प्रस्ताव (2024)

  • प्रस्तावित करने वाले: G4 राष्ट्र – भारत, ब्राज़ील, जर्मनी और जापान। 
  • सुधार की आवश्यकता क्यों है?
    • स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो शक्ति का दुरुपयोग,
    • सभी क्षेत्रों का समान प्रतिनिधित्व नहीं मिला है,
    • UNSC की मौजूदा स्थायी सदस्यता प्रणाली वर्तमान विश्व की वास्तविकताओं को नहीं दर्शाती है।
  • प्रस्तावित सुधारों के प्रमुख प्रावधान:
    • सदस्यता का विस्तार: 11 स्थायी और 14–15 अस्थायी सदस्य,
    • सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व: 6 नए स्थायी सीटें अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन, तथा पश्चिमी यूरोप/अन्य देशों के बीच वितरित की जाएँगी।
    • नए स्थायी सदस्यों को प्रारंभ में वीटो शक्ति नहीं: इस प्रावधान की समीक्षा सुधारों के लागू के 15 वर्ष बाद की जाएगी। 

अन्य संबंधित सुर्खियां 

पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति (CTC) का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। 

तालिबान प्रतिबंध समिति के बारे में

  • उत्पत्ति: इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प 1988 (2011) द्वारा स्थापित किया गया था।
  • मुख्य कार्य:यह अफगानिस्तान की शांति, स्थिरता और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले तालिबान संगठन से जुड़े व्यक्तियों, समूहों, उपक्रमों और संस्थाओं की संपत्ति की ज़ब्ती, उन पर यात्रा प्रतिबंध और हथियार की खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध लगाती है। 

आतंकवाद-रोधी समिति के बारे में

  • उत्पत्ति: इसे 2001 में 9/11 आतंकी हमले के बाद संकल्प 1373 का उपयोग करके अपनाया गया था।
  • सदस्यता: इस समिति में सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्य देश शामिल होते हैं। 
  • मुख्य कार्य: आतंकवाद से निपटने के लिए देशों के प्रयासों की निगरानी करना, यह सुनिश्चित करना कि वे आतंकवाद को वित्तपोषण करने को आपराधिक कृत्य घोषित करें, आतंकवादियों से जुड़े फंड को फ्रीज़ करें, अन्य देशों के साथ खुफिया जानकारी साझा करें, आदि।
  • Tags :
  • UNSC
  • G4
  • UN Reforms

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (UN ECONOMIC AND SOCIAL COUNCIL: ECOSOC)

भारत को 2026-28 कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) का सदस्य चुना गया।

  • ECOSOC की सदस्यता 5 क्षेत्रीय समूहों को समान भौगोलिक प्रतिनिधित्व के आधार पर आवंटित की जाती है। ये क्षेत्रीय समूह हैं- अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, पूर्वी यूरोपीय, लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन, तथा पश्चिमी यूरोपीय एवं अन्य देश।
  • भारत को एशिया-प्रशांत देशों की श्रेणी में लेबनान, तुर्कमेनिस्तान व चीन के साथ चुना गया है। एशिया-प्रशांत देशों को चार सदस्यता आवंटित की गई है।  

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) के  बारे में

  • मुख्यालय: न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका)।
  • स्थापना: संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत ECOSOC की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंगों में से एक के रूप में की गई थी।
  • सदस्य संख्या: इसमें कुल 54 सदस्य होते हैं। इनमें से प्रत्येक वर्ष 18 सदस्यों को महासभा द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट होता है। 

ECOSOC के प्रमुख कार्य

  • सतत विकास के तीन आयामों (आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय) को आगे बढ़ाना। 
  • समन्वय: यह परिषद संयुक्त राष्ट्र के निकायों और विशेष एजेंसियों के कार्यों का समन्वय करती है।
  • नीतिगत सिफारिशें: यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और सदस्य देशों को नीतिगत सिफारिशें जारी करती है।
  • Tags :
  • UNECOSOC
  • India and UN
  • India-ECOSOC

भारत-किर्गिस्तान द्विपक्षीय निवेश संधि {India-Kyrgyzstan Bilateral Investment Treaty (BIT)}

जून 2019 में हस्ताक्षरित भारत-किर्गिस्तान द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) 5 जून, 2025 से लागू हो गई है।

  • नई द्विपक्षीय निवेश संधि ने वर्ष 2000 में लागू हुई संधि की जगह ली है। इस तरह यह नई संधि दोनों देशों के बीच निवेश की सुरक्षा की निरंतरता सुनिश्चित करेगी। 

भारत-किर्गिस्तान द्विपक्षीय निवेश संधि के बारे में   

  • यह संधि दोनों देशों के निवेशकों के अधिकारों और दोनों देशों की अपनी-अपनी संप्रभु विनियामक शक्तियों के बीच संतुलन सुनिश्चित करती है। साथ ही, यह मजबूत और पारदर्शी निवेश परिवेश के निर्माण के लिए दोनों देशों की साझा प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है। 
  • द्विपक्षीय निवेश संधि के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
    • परिसंपत्ति की परिभाषा: इसमें उद्यम-आधारित परिभाषा को अपनाया गया है। साथ ही, इसमें किन परिसंपत्तियों को शामिल किया जाएगा और किन्हें बाहर रखा जाएगा, उन्हें भी परिभाषित किया गया है। इसके अलावा, इसमें निवेश की प्रकृति भी स्पष्ट की गई है – जैसे पूंजी प्रतिबद्धता, लाभ की अपेक्षा, जोखिम वहन करना, आदि।  
    • नीतिगत दायरे से बाहर रखना: स्थानीय सरकार, सरकारी खरीद, कराधान, अनिवार्य लाइसेंस आदि को संधि के दायरे से बाहर रखा गया है, ताकि दोनों देशों द्वारा नीति-निर्माण की स्वतंत्रता बनी रहे।   
    • सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र (MFN) खंड को हटा दिया गया है: पहले यह प्रावधान निवेशकों को होस्ट देश की अन्य देशों के साथ संधियों की अनुकूल शर्तें चुनने की अनुमति देता था।
      • इस प्रावधान के हटाए जाने से सभी निवेशकों के साथ समान और व्यवस्थित व्यवहार किया जाएगा।  
    • संधि में सामान्य एवं सुरक्षा अपवाद भी शामिल किए गए हैं: इन अपवादों के ज़रिए संधि में शामिल देशों को नीति निर्माण की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
      • संधि के सामान्य अपवाद के उदाहरण हैं: पर्यावरण की सुरक्षा, जनस्वास्थ्य एवं सेफ्टी सुनिश्चित करना आदि। 
    • संशोधित विवाद समाधान तंत्र: निवेशकों को पहले स्थानीय विवाद निपटान तंत्रों का उपयोग करना होगा। इनसे संतुष्ट नहीं होने पर ही वे अंतर्राष्ट्रीय पंचाट (Arbitration) का रुख कर सकते हैं। इससे वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा मिलेगा। 
  • Tags :
  • BIT

संयुक्त राज्य अमेरिका ने गावी, द वैक्सीन अलायंस के वित्त-पोषण पर रोक लगाई (Us Pulls Funding from Gavi, The Vaccine Alliance)

अमेरिका ने गावी (Gavi) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पर यह आरोप लगाया है कि वे टीकों की सुरक्षा पर उठने वाले वैध सवालों एवं असहमति को दबा रहे हैं।

  • इससे पहले अमेरिका लंबे समय से गावी का सबसे बड़ा समर्थक था।

अमेरिका की वैश्विक गठबंधनों से स्वयं को अलग करने की बढ़ती प्रवृत्ति

  • पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका ने कई प्रमुख वैश्विक संगठनों और संस्थानों से स्वयं को अलग कर लिया है। जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका WHO, पेरिस जलवायु समझौते, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) आदि से बाहर हो गया है।
  • एक वैश्विक महाशक्ति होने के नाते, अमेरिका के ऐसे फैसलों का अंतर्राष्ट्रीय गवर्नेंस पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।

अमेरिका द्वारा वैश्विक गठबंधनों से स्वयं को अलग करने की बढ़ती प्रवृत्ति के प्रभाव

  • बहुपक्षवाद/ नियम-आधारित व्यवस्था का कमजोर होना: उदाहरण के लिए- अमेरिका के हटने के बाद इजरायल ने भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से भागीदारी खत्म कर दी है।
  • जलवायु परिवर्तन कार्यवाहियों पर प्रभाव: 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है और संयुक्त राज्य अमेरिका चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक है।
  • स्वास्थ्य के लिए धन की कमी: अमेरिका के बाहर निकलने से संस्थानों में धन की कमी हो सकती है। उदाहरण के लिए- 2024 में अमेरिका ने WHO के कुल फंड का लगभग 15% वित्त-पोषित किया था।
  • अन्य: अमेरिका के हटने से वैश्विक नेतृत्व में खालीपन पैदा होता है, जिसे चीन भर सकता है। इससे भारत की वैश्विक संगठनों में प्रभावशीलता कम हो सकती है।
  • Tags :
  • GAVI
  • Vaccine alliance
  • USA Pulling out of global bodies

इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर मरीन एड्स टू नेविगेशन (International Organization for Marine Aids to Navigation: IALA)

भारत ने IALA के उपाध्यक्ष के रूप मेंफ्रांस के नीस में आयोजित  IALA परिषद के दूसरे सत्र में सक्रिय रूप से भाग लिया।

● भारत दिसंबर 2025 में तीसरी IALA महासभा और 2027 में 21वें IALA सम्मेलन की मेजबानी भी करेगा। दोनों ही मुंबई (महाराष्ट्र) में आयोजित किए जाएंगे।

IALA के बारे में

  • स्थापना: 1957 में IALA की स्थापना इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ मरीन एड्स टू नेविगेशन एंड लाइटहाउस अथॉरिटीज (IALA) के रूप में हुई।
    • 2024 में: यह संस्था आधिकारिक तौर पर एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) से एक अंतर-सरकारी संगठन (IGO) में बदल गई ।
  • उद्देश्य: विश्वभर के नेविगेशन ऑथोरिटीज, विनिर्माताओं, सलाहकारों, वैज्ञानिक संस्थानों और प्रशिक्षण संस्थानों को एक फोरम प्रदान करना ताकि वे अपने अनुभवों और उपलब्धियों का आदान-प्रदान और तुलनात्मक अध्ययन कर सकें।  
  • कार्य:
    • वैश्विक समुद्री नौवहन-प्रणालियों के संचालन का समन्वय करना,
    • समुद्री सुरक्षा पहलों को बढ़ावा देना,
    • सदस्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और उद्योग से जुड़े हितधारकों के साथ सहयोग करके समुद्री सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी नई चुनौतियों का समाधान करना।
  • Tags :
  • IALA

अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संगठन (International Organisation for Mediation: IOMed)

चीन ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन जैसी पारंपरिक संस्थाओं के वैश्विक विकल्प के रूप में औपचारिक रूप से IOMed की स्थापना की।

IOMed के बारे में

  • उद्देश्य: अंतरराष्ट्रीय विवादों के समाधान हेतु मध्यस्थता करना।
  • सदस्य: इंडोनेशिया, पाकिस्तान और बेलारूस सहित 30 से अधिक देशों ने संस्थापक सदस्य के रूप में भाग लिया।
    • अधिकतर संस्थापक सदस्य एशिया, अफ्रीका और कैरेबियन क्षेत्र से हैं, जो इस नई संस्था के गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
  • कार्यक्षेत्र:
    • राष्ट्रों के बीच के विवाद समाधान,
    • किसी राष्ट्र और दूसरे देश के नागरिकों के बीच विवाद का समाधान,
    • अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवाद का समाधान। 
  • Tags :
  • ICJ
  • IOMED

ई-पासपोर्ट (E‑Passport)

भारत के विदेश मंत्रालय ने ई-पासपोर्ट और पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम 2.0 को शुरू किया है।

ई-पासपोर्ट के बारे में

  • ई-पासपोर्ट वास्तव में पेपर और इलेक्ट्रॉनिक पासपोर्ट का मिश्रित रूप है। इसमें एक रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) चिप और एक एंटीना पासपोर्ट के कवर में इनले के रूप में लगाया गया होता है।
  • इसमें पासपोर्ट धारक की व्यक्तिगत जानकारी और बायोमेट्रिक डेटा दर्ज होता है।
    • इसकी सुरक्षा प्रणाली का आधार पब्लिक-की इन्फ्रास्ट्रक्चर (PKI) तकनीक है।
  • ई-पासपोर्ट जाली पासपोर्ट जैसी जालसाजी और धोखाधड़ी गतिविधियों से पासपोर्ट की सुरक्षा करता है और सीमा पर भारत के पासपोर्ट की प्रामाणिकता सुनिश्चित करता है।

 

  • Tags :
  • . E‑Passport

जंगेजुर कॉरिडोर (Zangezur Corridor)

तुर्किये ने आर्मेनिया और अजरबैजान से जंगेज़ुर कॉरिडोर खोलने की दिशा में कदम उठाने का आग्रह किया।

  • आर्मेनिया और अजरबैजान 1917 से नागोर्नो-काराबाख (आर्टाख/Artsakh) क्षेत्र को लेकर संघर्षरत हैं। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय रूप से अज़रबैजान का हिस्सा माना जाता है, लेकिन यहां मुख्यतः आर्मीनियाई नृजातीय समुदाय निवास करते हैं।

जंगेज़ुर कॉरिडोर के बारे में

  • अवस्थिति: यह आर्मेनिया के स्यूनिक प्रांत से होकर गुजरने वाला प्रस्तावित 43 किलोमीटर लंबा परिवहन मार्ग है।
  • उद्देश्य:
    • कैस्पियन सागर में स्थित अजरबैजान के बाकू बंदरगाह को नखचिवन स्वायत्त क्षेत्र से जोड़ना और फिर आगे तुर्किये तक पहुंच बनाना है।  
      • नखचिवन, अज़रबैजान का पश्चिमी एन्क्लेव है और आर्मेनिया इस क्षेत्र को अज़रबैजान से अलग करता है।  
  • भारत की चिंताएँ:
    • यह जंगेज़ुर कॉरिडोर चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा (INSTC) में भारत के निवेश को प्रभावित कर सकता है। 
    • साथ ही यह कॉरिडोर उस क्षेत्र में भारत के प्रभाव को भी कम कर सकता है क्योंकि यह एक प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।
  • Tags :
  • Zangezur Corridor
Download Current Article
Subscribe for Premium Features