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ग्रामीण भारत: भारत के उपभोक्ता बाजार का नया इंजन (RURAL INDIA: THE NEW ENGINE OF INDIA'S CONSUMER MARKET) | Current Affairs | Vision IAS
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ग्रामीण भारत: भारत के उपभोक्ता बाजार का नया इंजन (RURAL INDIA: THE NEW ENGINE OF INDIA'S CONSUMER MARKET)

Posted 21 Jul 2025

1 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

ग्रामीण उपभोक्ता बाजार में मजबूत संवृद्धि को देखते हुए, केंद्रीय वित्त मंत्री ने फिनटेक कंपनियों से आग्रह किया है कि उन्हें ग्रामीण भारत को केवल सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में नहीं, बल्कि 'नए बाजार सृजित' करने के एक अवसर के रूप में भी देखना चाहिए।

ग्रामीण भारत: भारत के उपभोक्ता बाजार का नया इंजन

  • बढ़ते ग्रामीण बाजार: ग्रामीण उपभोक्ता मांग शहरी मांग की तुलना में तीव्र गति से बढ़ रही है। उदाहरण के लिए- ग्रामीण भारत में फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) क्षेत्र (डाबर आदि) की वृद्धि शहरों की तुलना में तीव्र हुई है।
    • घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2023-24 के अनुसार, 2023-24 में ग्रामीण भारत में अनुमानित औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) 2022-23 की तुलना में 9.2% बढ़ा था। यह शहरी क्षेत्रों के 8.3% की तुलना में अधिक है।
    • यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत मुख्य रूप से घरेलू उपभोग-आधारित  अर्थव्यवस्था है। ध्यातव्य है कि भारत की GDP का लगभग 2/3 हिस्सा घरेलू और सरकारी उपभोग से आता है।
  • ग्रामीण-शहरी उपभोग विषमता में गिरावट: 2022-23 में शहरी और ग्रामीण MPCE का अंतर 71.2% था, जो 2023-24 में घटकर 69.7% रह गया।
  • उपभोग पैटर्न का शहरीकरण: ग्रामीण और अर्ध-शहरी बाजार अब शहरी उपभोग पैटर्न की नकल करने लगे हैं।
    • उदाहरण के लिए- देशभर में औसत मासिक खर्च में गैर-खाद्य मदें प्रमुख हो गई हैं। इन गैर-खाद्य मदों में संचार, शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं आदि पर खर्च शामिल है।

ग्रामीण उपभोक्ता बाजार की संवृद्धि के लिए जिम्मेदार कारक

  • खर्च करने योग्य आय में वृद्धि: खेती के अलावा आय के अन्य स्रोतों में वृद्धि (जैसे- मनरेगा, ग्रामीण उद्यमिता, विप्रेषण आदि) ग्रामीण आय को अधिक लोचशील एवं विवेकपूर्ण बना रही है।
  • ग्रामीण गरीबी में कमी: SBI की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2011-12 में जहां ग्रामीण गरीबी 25.7% थी, वहीं 2023-24 में यह पहली बार घटकर 5% से नीचे आ गई।
  • सरकारी पहलों की भूमिका: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) और प्रधान मंत्री-किसान जैसी लक्षित सरकारी पहलों ने ग्रामीण भारत में तरलता को प्रोत्साहन देकर वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा दिया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोग व्यय में वृद्धि हुई है।
  • अवसंरचना विकास: भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी के विकास ने बाजार तक पहुंच बेहतर की है। इस वजह से डिजिटल भुगतान, ई-कॉमर्स और ऑनलाइन सेवाओं तक पहुंच आसान हुई है।
    • भौतिक कनेक्टिविटी: यह आपूर्ति श्रृंखलाओं और लोगों एवं वस्तुओं की आवाजाही को सुगम बनाने में मदद करती है। उदाहरण के लिए- प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना आदि।
    • डिजिटल कनेक्टिविटी: इसने सूचना तक पहुंच की विषमता को कम किया है। 2015 और 2021 के बीच ग्रामीण इंटरनेट सब्सक्रिप्शन में उल्लेखनीय 200% की वृद्धि देखी गई है, जो शहरी क्षेत्रों (158%) की तुलना में अधिक है। उदाहरण के लिए- भारत नेट पहल।
  • वित्तीय समावेशन: ग्रामीण भारत में वित्तीय सेवाओं का विस्तार उपभोक्ता बाजार के विकास की एक मुख्य वजह रहा है। इससे परिवारों को अधिक खर्च करने की आर्थिक स्वतंत्रता मिली है।
    • उदाहरण के लिए- UPI, पीएम-जन धन योजना (खोले गए खातों में से 67% ग्रामीण या अर्ध-शहरी क्षेत्रों में और 55% महिलाओं के नाम पर हैं) आदि।

ग्रामीण उपभोग में वर्तमान वृद्धि से जुड़ी चिंताएं

  • गांवों के बीच असमानता: ग्रामीण आय में वृद्धि समान रूप से नहीं हो रही है। ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानता बनी हुई है और एक नया "समृद्ध ग्रामीण वर्ग" उभर रहा है, जो विलासिता की वस्तुओं पर अधिक खर्च कर रहा है।
    • उदाहरण के लिए- ग्रामीण उपभोक्ताओं के शीर्ष 5% लोग सबसे गरीब लोगों द्वारा औसतन उपभोग की जाने वाली वस्तुओं पर छह गुना से अधिक खर्च कर रहे हैं।
  • अवसंरचना की कमी: आज भी ग्रामीण भारत लास्ट माइल कनेक्टिविटी की कमी, लॉजिस्टिक्स संबंधी समस्याओं, खंडित आपूर्ति श्रृंखलाओं और असमान इंटरनेट पहुंच जैसे मुद्दों से जूझ रहा है।
    • अपर्याप्त कोल्ड चेन और भंडारण: इसकी वजह से जल्दी खराब होने वाले सामान या दवाओं के लिए सुरक्षित डिलीवरी सुनिश्चित नहीं हो पाती।
  • डिजिटल डिवाइड: ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता कम है, भाषा संबंधी समस्याएं मौजूद हैं, विश्वास की कमी और साइबर सुरक्षा को लेकर डर बना रहता है। ये सब ई-कॉमर्स और डिजिटल भुगतान के व्यापक उपयोग में बाधा पैदा करते हैं।
  • जलवायु संबंधी सुभेद्यता: चरम मौसमी घटनाएं ग्रामीण आय में गिरावट का कारण बन सकती हैं। इससे ग्रामीण उपभोग पर नकारात्मक असर पड़ने का खतरा लगातार बना रहता है। उदाहरण के लिए- अनियमित मानसून कृषि और उससे जुड़ी आय को प्रभावित करता है।

क्या करने की आवश्यकता है?

  • सरकार द्वारा:
    • गांवों के बीच आय से जुड़ी असमानता को कम करने के लिए सरकार को आकांक्षी जिलों में लक्षित निवेश के माध्यम से फोकस करना चाहिए।
    • ग्रामीण कौशल विकास (जैसे- पी.एम. कौशल विकास योजना) और उद्यमिता (जैसे- दीन दयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) से जुड़ी योजनाओं के अभिसरण पर फोकस करना चाहिए। ऐसा मुख्यतः महिलाओं एवं युवाओं पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए करना चाहिए।
    • मल्टी-मॉडल ग्रामीण अवसंरचना जैसे- सड़कें, इंटरनेट, वेयरहाउसिंग आदि सुविधाएं स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।
  • निजी क्षेत्रक द्वारा:
    • कंपनियों को अपनी विपणन प्रथाओं और उत्पादों को ग्रामीण संस्कृति एवं भाषाई विविधता के अनुकूल बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
    • ग्रामीण सूक्ष्म-उद्यमिता को बढ़ावा देना। उदाहरण के लिए- HUL के 'प्रोजेक्ट शक्ति' में 1.6 लाख महिला उद्यमी शामिल हैं।
    • ग्रामीण उपभोक्ताओं से जुड़ने के लिए IVR, स्थानीय AI चैटबॉट्स या व्हाट्सएप कॉमर्स जैसी कम लागत वाली तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए।

निष्कर्ष

ग्रामीण भारत को अब केवल सामाजिक उत्तरदायित्व के संकीर्ण दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए। अब यह भारत की उपभोक्ता-आधारित विकास गति का प्रमुख इंजन बनने की दिशा में अग्रसर है। हालांकि, इसे बनाए रखने और इसकी संवृद्धि के लिए अभी भी निरंतर अवसंरचना में निवेश, डिजिटल और वित्तीय साक्षरता बढ़ाने, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में विश्वास सृजित करने तथा समावेशी आय वृद्धि को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

  • Tags :
  • Household Consumption Expenditure Survey
  • Direct Benefit Transfers
  • BharatNet Initiative
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