आईएनएस कौंडिन्य और टंकाई विधि (INS KAUNDINYA AND TANKAI)
Posted 21 Jul 2025
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सुर्ख़ियों में क्यों?
भारतीय नौसेना द्वारा औपचारिक रूप से प्राचीन टंकाई वाले जहाज को नौसेना में शामिल किया गया। इसका नाम INSV कौंडिन्य रखा गया है, जिसे टंकाई पद्धति का उपयोग करके बनाया गया था।
INS कौंडिन्य के बारे में
यह अजंता की गुफाओं के चित्रों में दर्शाए गए 5वीं शताब्दी के जहाज पर आधारित है।
यह परियोजना संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और मेसर्स होदी इनोवेशन्स के बीच त्रिपक्षीय समझौते के जरिए शुरू की गई थी।
टंकाई विधि के बारे में
यह जहाज निर्माण की 2000 वर्ष पुरानी तकनीक है, जिसे 'टंकाई जहाज निर्माण विधि' के नाम सेजाना जाता है।
इसमें कीलों का उपयोग करने की बजाय लकड़ी के तख्तों को जोड़ने के लिए सिलाई विधि का प्रयोग किया जाता है, जिससे अधिक लचीलापन एवं स्थायित्व मिलता है।
भारत की गौरवशाली समुद्री विरासत
व्यापार और वाणिज्य
मेसोपोटामिया में हड़प्पाकालीन मुहरों की खोज तथा लोथल (2400 ई.पू.) में जहाजों की ड्राई डॉक् और टेराकोटा की आकृतियों की खोज, सिंधु घाटी सभ्यता एवं मेसोपोटामिया के बीच समुद्री व्यापार संबंधों को दर्शाती हैं।
ऋग्वेद में व्यापारियों द्वारा व्यापार और धन की तलाश में समुद्र पार कर विदेशों में जहाज ले जाने का उल्लेख मिलता है।
चोल, चेर व पांड्य शासकों ने रोमन साम्राज्य के साथ समृद्ध समुद्री व्यापारिक संबंध स्थापित किए थे।
विजयनगर और बहमनी साम्राज्य गोवा बंदरगाह का उपयोग करके ईरान एवं इराक से घोड़ों का आयात करते थे।
सांस्कृतिक प्रसार
अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए पश्चिम बंगाल के ताम्रलिप्ति बंदरगाह से सीलोन तक समुद्री यात्रा पर गए थे।
दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों पर समुद्री विजय और उनके साथ व्यापारिक संबंधों के कारण वहां तक भारतीय धर्म, स्थापत्य कला एवं भाषाओं का प्रसार हुआ था। उदाहरण के लिए- जावा में बोरोबुदुर मंदिर, कंबोडिया में अंगकोर वाट मंदिर आदि।
नौसैन्य कौशल और समुद्री ज्ञान
मगध साम्राज्य की नौसेना को पांडुलिपियों में दर्ज विश्व की पहली नौसेना माना जाता है और चाणक्य के अर्थशास्त्र में नौसैनिक युद्ध विभाग का उल्लेख भी मिलता है।
राजेंद्र चोल-I (1014-1044) ने श्रीलंका पर विजय प्राप्त की थी। इसके अलावा, श्री विजय साम्राज्य (शैलेंद्र राजवंश द्वारा शासित) के खिलाफ सफल नौसैनिक अभियानों का नेतृत्व किया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज नेविजयदुर्गऔर सिंधुदुर्ग जैसे तटीय किलों का निर्माण कराया था और नौसेना की ताकत को बढ़ाने के लिए 500 से अधिक जहाजों के बड़े का गठन किया था।
चोल और चेर शासकों को समुद्री यात्राओं के लिए मानसूनी पवनों का ज्ञान था।
समुद्री कूटनीति
श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने गया में बौद्ध मंदिर बनाने की अनुमति के लिए समुद्रगुप्त के पास एक दूत मंडल भेजा था।
शैलेन्द्र शासक नेपालशासकों केदरबार में दूतमंडल भेजा था और नालंदा में एक मठ बनाने की अनुमति मांगी थी।
निष्कर्ष
भारत की समुद्री विरासत को पुनर्जीवित करने का अर्थ केवल अतीत का पुनर्निर्माण करना ही नहीं है, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को एक अग्रणी समुद्री शक्ति के रूप में पुनः स्थापित करना भी है। रणनीतिक पहलों और सांस्कृतिक पहुंच के माध्यम से, भारत अपनी प्राचीन समुद्री पहचान से पुनः जुड़ रहा है।
अजंता की अन्य प्रसिद्ध चित्रकारियां
अलग-अलग बोधिसत्वों के चित्र, जैसे- वज्रपाणि (बुद्ध की शक्ति का प्रतीक), मंजुश्री (बुद्ध की बुद्धिमत्ता का प्रतीक) और पद्मपाणि (बुद्ध की करुणा का प्रतीक)।
एक मरणासन्न राजकुमारी का चित्र।
चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय द्वारा फ़ारसी राजदूत का स्वागत करने का चित्र।
शिबी जातक (राजा शिबी ने कबूतर को बचाने के लिए अपने शरीर से मांस का टुकड़ा अर्पित किया था), मातृपोषकजातक (हाथी द्वारा बचाया गया एक कृतघ्न व्यक्ति उसके रहने के स्थान का खुलासा करता है) का चित्रण आदि।