सुर्ख़ियों में क्यों?
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने देश में सड़क अवसंरचना के विकास के लिए परिसंपत्तियों की मुद्रीकरण के माध्यम से उसका मूल्य प्राप्त करने और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की रणनीति तैयार की है।
अन्य संबंधित तथ्य:
- यह रणनीति पूंजी जुटाने हेतु एक व्यवस्थित फ्रेमवर्क है, जिसमें टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (ToT), इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (InvITs) और सिक्योरिटाइजेशन जैसे मॉडल्स को शामिल किया गया है।
- इन माध्यमों से NHAI ने राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के तहत अब तक राष्ट्रीय राजमार्गों के 6,100 किलोमीटर से अधिक हिस्से के लिए 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि जुटाई है।
परिसंपत्ति मुद्रीकरण क्या है?
- यह पूरी तरह उपयोग नहीं की गई सार्वजनिक (सरकारी) परिसंपत्तियों के आर्थिक मूल्य की प्राप्ति के द्वारा राजस्व स्रोत उत्पन्न करने की नई या वैकल्पिक प्रक्रिया है। इसे 'पूंजी पुनर्चक्रण' यानी कैपिटल रीसाइक्लिंग भी कहा जाता है। यह जरूरी नहीं है कि इस प्रक्रिया से परिसंपत्ति का विनिवेश हो।
परिसंपत्ति मुद्रीकरण की आवश्यकता क्यों है?
- निवेश की कमी को पूरा करना: अवसंरचना विकास के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है। सीमित राजकोषीय संसाधन होने के कारण, मुद्रीकरण वास्तव में गैर-कर राजस्व स्रोत जुटाने में मदद करती है।
- सार्वजनिक क्षेत्र की अक्षमताओं को दूर करना: निजी क्षेत्र की भागीदारी से प्रबंधकीय और परिचालन दक्षता में सुधार होता है।
- ब्राउनफील्ड परिसंपत्तियों से मूल्य प्राप्त करना: ये पहले से विकसित परिसंपत्तियां होती हैं जिनमें स्थिर राजस्व उत्पन्न होता है। यह विशेषता निवेशकों को आकर्षित करती हैं।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना: उच्च गुणवत्ता वाली अवसंरचना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, लॉजिस्टिक्स और विशाल वैश्विक बाजार के रूप में विदेशी निवेश आकर्षित करती है। यह वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ भारत के एकीकरण को भी बढ़ावा देती है।

भारत में परिसंपत्ति मुद्रीकरण के प्रमुख मॉडल्स
- टोल, ऑपरेट और ट्रांसफर (ToT): इस मॉडल में परिसंपत्ति का प्रबंधन व टोल संग्रह का अधिकार देकर निजी निवेश आकर्षित किया जाता है। निजी निवेशक यानी कन्सेशनेर शुरुआत में सरकार को एकमुश्त राशि देता है और परियोजना के संचालन एवं रखरखाव की जिम्मेदारी लेता है।
- डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट-ट्रांसफर (DBFOT): इसमें कन्सेशनेर परियोजना का डिज़ाइन, निर्माण, वित्त-पोषण और संचालन करता है तथा तय समय के बाद उस परियोजना को सरकार को सौंप देता है।
- इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (InvITs): यह एक सामूहिक निवेश विकल्प है जो यूनिट्स जारी करके निवेशकों से धन जुटाता है। यह उन्हें स्थिर एवं पूर्वानुमानित निरंतर नकदी, विविध स्रोतों से आय और कर छूट प्रदान करता है। इसे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा विनियमित किया जाता है।
- रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (REITs): यह म्यूचुअल फंड के समान सामूहिक निवेश के स्रोत हैं। हालांकि REITs जुटाए गए धन को रियल एस्टेट में निवेश करते हैं।
- परियोजना आधारित वित्तपोषण: इसमें टोल प्लाजा जैसी परियोजनाओं से प्राप्त उपयोगकर्ता शुल्क को गिरवी रखकर दीर्घकालिक ऋण लिया जाता है।
- दीर्घकालिक पट्टा: इसमें पट्टेदार को निश्चित समय के लिए परिसंपत्ति उपयोग का अधिकार दिया जाता है, जिसके बदले में वह एक बार में या कई चरणों में भुगतान करता है।
- मुद्रीकरण के लिए परिसंपत्तियां: इनमें खनन परिसंपत्तियां, रियल एस्टेट लेनदेन, और रेलवे स्टेशन पुनर्विकास, हवाई अड्डा जैसी परियोजनाएं शामिल होती हैं।
भारत में परिसंपत्ति मुद्रीकरण हेतु प्रमुख पहलें
- राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetization Pipeline: NMP): इस योजना के तहत 2022 से 2025 तक के चार वर्षों में सार्वजनिक अवसंरचना परिसंपत्तियों को लीज पर देकर लगभग 6 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है।
- राष्ट्रीय भूमि मुद्रीकरण निगम (National Land Monetization Corporation: NLMC): यह शत-प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी है। इसका गठन केंद्र सरकार के सार्वजनिक उद्यमों (CPSEs) की गैर-प्रमुख (नॉन-कोर) परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करने के लिए किया गया है। इसका प्रशासनिक नियंत्रण भारत सरकार के सार्वजनिक उद्यम विभाग (DPE) के अधीन है।
- परिसंपत्ति मुद्रीकरण डैशबोर्ड: यह एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो मुद्रीकरण की प्रगति पर नज़र रखता है और निवेशकों को परिसंपत्ति के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
भारत में परिसंपत्ति मुद्रीकरण: बाधाएं बनाम रणनीतिक उपाय
विषय (क्षेत्र) | परिसंपत्ति मुद्रीकरण में बाधाएं | आवश्यक रणनीतिक हस्तक्षेप |
पारदर्शिता और शासन |
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क्षेत्रक विशेष की समस्याएं |
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परिसंपत्ति के मूल्य का पता लगाना और प्रतिस्पर्धी बोली |
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राज्य-स्तरीय तत्परता |
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उपभोक्ता एवं जनहित |
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कई संस्थाओं के शामिल होने से समस्या |
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विनियामकीय व्यवस्था में अनिश्चितता
| • कुछ क्षेत्रकों (जैसे दूरसंचार) में मुद्रीकरण और विनिवेश के बीच अंतर करने में अस्पष्टता बनी रहती है।
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राजकोषीय प्रबंधन में उपयोग और जन-विश्वास |
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निगरानी और प्रदर्शन की ट्रैकिंग |
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निष्कर्ष
परिसंपत्ति मुद्रीकरण रणनीति केवल एक वित्तीय कदम नहीं है, बल्कि यह आर्थिक विकास और सतत विकास के व्यापक लक्ष्यों के साथ जुड़ा एक परिवर्तनकारी पद्धति है। यह सरकार की कम उपयोग की गई परिसंपत्तियों के मूल्य को सामने लाकर, नई परियोजनाओं में पुनर्निवेश की सुविधा प्रदान करती है। इसके माध्यम से एक सशक्त और मजबूत अवसंरचना नेटवर्क तैयार किया जा सकता है, जो आने वाले वर्षों में भारत की विकास यात्रा को समर्थन प्रदान करेगा।