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एक्सिओम-4 मिशन (AXIOM-4 MISSION) | Current Affairs | Vision IAS
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एक्सिओम-4 मिशन (AXIOM-4 MISSION)

Posted 21 Jul 2025

1 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भेजे गए भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और 3 अन्य अंतरिक्ष यात्री 15 जुलाई 2025 को सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आए।

एक्सिओम-4 (एक्स-4) मिशन के बारे में

  • यह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के लिए नासा का चौथा पूर्ण निजी अंतरिक्ष यात्री मिशन है। यह टेक्सास स्थित स्टार्ट-अप कंपनी एक्सिओम स्पेस (Axiom Space) द्वारा स्पेसएक्स (SpaceX) के साथ साझेदारी में लॉन्च किया गया था।
  • यह 14-दिवसीय मिशन था। इसके तहत फ्लोरिडा स्थित नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से फाल्कन 9 प्रक्षेपण यान द्वारा स्पेसएक्स ड्रैगन अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित किया गया था।
  • फाल्कन 9 दो-चरणीय पुन: उपयोग किया जाने वाला यानी रीयूजेबल प्रक्षेपण यान है। साथ ही, ड्रैगन अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए एक रीयूजेबल क्रू मॉड्यूल है। 
  • अंतरिक्ष यात्री: शुभांशु शुक्ला (भारत), पैगी व्हिटसन (संयुक्त राज्य अमेरिका), स्लावोज़ उज़्नान्स्की (पोलैंड), और टिबोर कापू (हंगरी)।
  • मिशन की प्रमुख विशेषताएं:
    • उद्देश्य: भारत, पोलैंड और हंगरी के लिए मानव अंतरिक्ष उड़ान की "वापसी" को साकार करना।
    • एक्स-4 चालक दल में भारत, पोलैंड और हंगरी के सदस्य शामिल हैं। यह इन देशों का अंतरिक्ष स्टेशन के लिए पहला मिशन है और 40 वर्षों में दूसरा सरकार प्रायोजित मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन है।
    • अनुसंधान: इसमें 31 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले 60 से अधिक वैज्ञानिक अध्ययन शामिल हैं। इनमें सूक्ष्म गुरुत्व संबंधी प्रयोग, मानव शरीर क्रिया विज्ञान संबंधी अनुसंधान, अर्थ ऑब्जर्वेशन इमेजिंग आदि शामिल हैं।
  • इसरो द्वारा निम्नलिखित अनुसंधान कार्य जाएंगे:
    • फसल वृद्धि: भविष्य में अंतरिक्ष में खेती के लिए फसली बीजों की 6 किस्मों पर सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा। 
    • सायनोबैक्टीरिया: अंतरिक्ष-यान की जीवन समर्थन प्रणालियों (life support systems) में उपयोग के लिए इसकी वृद्धि और गतिविधियों का निरीक्षण किया जाएगा।
      • सायनोबैक्टीरिया जलीय बैक्टीरिया हैं, जो प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं।
    • स्पेस माइक्रोएल्गी: अंतरिक्ष और पृथ्वी पर इनकी चयापचय एवं आनुवंशिक गतिविधि की तुलना की जाएगी। साथ ही भोजन, ईंधन या जीवन समर्थन प्रणाली के रूप में इनके संभावित उपयोग की खोज की जाएगी। 
    • मायोजेनेसिस: इसमें अंतरिक्ष की सूक्ष्म गुरुत्वीय दशाओं में मांसपेशी के कमजोर होने का अध्ययन किया जाएगा; कंकालीय मांसपेशी में गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार कारकों की पहचान की जाएगी तथा इलाज के तरीके का पता लगाया जाएगा।
    • टार्डिग्रेड्स: प्रत्येक परिस्थिति के प्रति मजबूत अनुकूलन के पीछे के आणविक तंत्र की पहचान करने के लिए सूक्ष्म गुरुत्व में टार्डिग्रेड्स के जिंदा रहने, दोबारा सक्रिय होने और जनन की जांच की जाएगी। 
    • अन्य: सूक्ष्म गुरुत्व में कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग के भौतिक और संज्ञानात्मक प्रभाव की जांच करना; भारतीय छात्रों के लिए STEM आउटरीच गतिविधियां आदि।

भारत के लिए महत्व

  • गगनयान मिशन का विकास: एक्स-4 चिकित्सा संबंधी प्रशिक्षण, मनोवैज्ञानिक तैयारी और चालक दल-ग्राउंड स्टेशन के मध्य समन्वय के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करेगा।
    • ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला गगनयान मिशन के लिए चुने गए 4 अंतरिक्ष यात्रियों में से एक हैं। 
  • अंतरिक्ष कूटनीति: यह नासा, ESA और निजी कंपनियों के साथ इसरो के वैश्विक सहयोग को दर्शाता है।
  • भारत के अंतरिक्ष पारितंत्र का विकास: यह भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की योजनाओं के अनुरूप भारत के अंतरिक्ष उद्योग के विकास को प्रोत्साहित करेगा।
  • राष्ट्रीय गौरव और प्रेरणा: अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष यात्री भारतीय युवाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित (STEM) में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेंगे।

मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने में भारत के समक्ष गंभीर बाधाएं

  • प्रौद्योगिकीय:
    • जीवन समर्थन प्रणाली: इसके लिए एयर रिजनरेशन, तापमान नियंत्रण, अपशिष्ट पुनर्चक्रण और खाद्य भंडारण सुनिश्चित करना होगा।
    • विकिरण से सुरक्षा: पृथ्वी की निचली कक्षा से परे, ब्रह्मांडीय विकिरण और सौर कण संबंधी घटनाएं स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम उत्पन्न करते हैं।
    • अंतरिक्ष यान का पुनः प्रवेश और तापीय संरक्षण: पृथ्वी के वायुमंडल में वापस प्रवेश करने के दौरान, अंतरिक्ष यान को लगभग 7,000 डिग्री फारेनहाइट तक के तापमान का सामना करना पड़ता है। यह तापमान गैस और हवा में मौजूद कणों के अंतरिक्ष यान की सतह से टकराने के कारण उत्पन्न होता है।
    • प्रक्षेपण वाहन की विश्वसनीयता: मानव को ले जाने वाले रॉकेट्स के नियंत्रित आरोहण, अबोर्ट सिस्टम्स और पुन: प्रयोज्यता सहित कई जटिलताओं से निपटने के लिए सख्त सुरक्षा मानकों को पूरा करना होगा।
  • लॉजिस्टिकल:
    • उच्च लागत: इसके लिए लॉन्च पैड, परीक्षण सुविधाएं, ट्रैकिंग स्टेशन आदि सहित मजबूत संस्थागत और अवसंरचनात्मक क्षमता की आवश्यकता होती है।
    • अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण और चयन: अंतरिक्ष यात्रियों को कठोर शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
      • इसके अतिरिक्त, दीर्घकालिक मिशनों के दौरान अंतरिक्ष में लंबे समय तक  रहने से मनोवैज्ञानिक समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के बारे में

  • यह एक रहने योग्य कृत्रिम उपग्रह है, जो निम्न भू-कक्षा (LEO) (370-460 कि.मी. की ऊंचाई पर) में स्थित है।
  • ISS के प्रमुख साझेदार: यूरोप (ESA), अमेरिका (NASA), जापान (JAXA), कनाडा (CSA) और रूस (Roscosmos)।
  • यह लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से पृथ्वी की परिक्रमा करता है और हर 90 मिनट में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है।
  • यह पृथ्वी की कक्षा में मौजूद सबसे बड़ा कृत्रिम पिंड है। यह अंतरिक्ष में एक प्रयोगशाला के समान है। इसका कक्षीय पथ ऐसा है कि यह पृथ्वी के 90% से अधिक अधिक बसे हुए क्षेत्रों के ऊपर से गुजरता है। 
  • इसका पहला घटक या भाग 1998 में कक्षा में प्रक्षेपित किया गया था। यह कम-से-कम 2030 तक कक्षा में एक कार्यरत प्रयोगशाला एवं एक पोस्ट के रूप में काम करता रहेगा।

गगनयान प्रोग्राम के बारे में 

  • गगनयान प्रोग्राम 'भारत का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान' मिशन है। 
  • उद्देश्य: अंतरिक्ष यात्रियों की एक टीम को तीन दिन के मिशन के लिए पृथ्वी से 400 कि.मी. ऊपर की कक्षा में भेजना और उन्हें सुरक्षित वापस लाना। दीर्घकालिक रूप से भारतीय मानव अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम की आधारशिला स्थापित करना।
  • गगनयान के घटक: 
    • प्रक्षेपण यान मार्क-3 (LVM-3): पूर्व में GSLV MK-III के नाम से ज्ञात यह 3-चरण वाला रॉकेट है:
      • प्रथम चरण: रॉकेट कोर से बंधे दो ठोस ईंधन बूस्टर।
      • दूसरा चरण: दो तरल-ईंधन वाले, क्लस्टर्ड विकास 2 इंजन।
      • तीसरा चरण: CE-20 स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन, जिसमें क्रमशः ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में तरल हाइड्रोजन एवं तरल ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।
    • कक्षीय मॉड्यूल: इसमें क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल शामिल हैं।
  • इस प्रोग्राम का दायरा बढ़ाकर इसमें भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की पहली इकाई का निर्माण भी शामिल कर लिया गया है।

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के बारे में

  • यह वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भारत द्वारा पृथ्वी की सतह से लगभग 400-450 कि.मी. ऊपर स्थापित अंतरिक्ष स्टेशन होगा। इसमें पांच मॉड्यूल होंगे।
  • लक्ष्य: पहला मॉड्यूल (बेस मॉड्यूल) 2028 में प्रक्षेपित किया जाएगा। BAS को 2035 तक संचालन में लाने का लक्ष्य है।

 

निष्कर्ष

भारत के लिए, एक्सिओम-4 मिशन के अंतर्गत सहयोग न केवल उसके प्रस्तावित गगनयान मिशन से पहले तकनीकी समझ को गति देगा, बल्कि भविष्य में लंबी अवधि की अंतरिक्ष यात्राओं के लिए महत्वपूर्ण मानव संसाधन और अवसंरचना का निर्माण भी करेगा।

  • Tags :
  • International Space Station
  • Gaganyaan Mission
  • Space Diplomacy
  • Bharatiya Antariksh Station
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