सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान सरकार के विदेश मंत्री भारत के विदेश मंत्री के साथ द्विपक्षीय वार्ता करने के लिए नई दिल्ली आए।

अन्य संबंधित तथ्य
- यह यात्रा अफगानिस्तान के विदेश मंत्री को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा भारत की यात्रा के लिए दी गई एक विशेष यात्रा छूट के बाद हुआ है।
- अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा अफ़गानिस्तान पर अधिकार किए जाने के बाद यह भारत की पहली मंत्री-स्तरीय यात्रा है।
यात्रा के प्रमुख परिणाम
- राजनयिक संबंध: भारत ने काबुल में अपने भारतीय तकनीकी मिशन की स्थिति को पुनः स्थापित करते हुए उसे अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास का दर्जा दे दिया है।
- संपर्क: भारत-अफगानिस्तान एयर फ्रेट कॉरिडोर की शुरुआत की गई है।
- अवसंरचना और ऊर्जा: दोनों पक्षों ने हेरात में भारत-अफगानिस्तान मैत्री बांध (सलमा बांध) के लिए भारत के समर्थन की सराहना की है। इसके अलावा, भारत अफगानिस्तान में जल-विद्युत परियोजनाओं पर सहयोग करने के लिए सहमत हुआ।
भारत अफ़गानिस्तान में पुनः दिलचस्पी क्यों दिखा रहा है?
- रणनीतिक हितों की रक्षा करना:
- आतंकवाद का विरोध करना: भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि अफगानिस्तान एक बार फिर से आतंकवाद की जनन-स्थली न बन जाए, जिससे उसकी सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो। जैसे कि अल-कायदा, इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रोविंस (IS-KP), लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन की मौजूदगी एक गंभीर खतरा बनी हुई है।
- काबुल की सुरक्षा प्रतिबद्धताएं: उदाहरण के लिए, अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने यह विश्वास दिलाया है कि अफगानिस्तान की भूमि का उपयोग भारत के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा।
- भू-राजनीतिक संतुलन और प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों का प्रबंधन
- पाकिस्तान का प्रभाव कम करना: भारत का उद्देश्य पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बिगड़ते रिश्तों का लाभ उठाकर पाकिस्तान के प्रभाव को कम करना है, जिससे भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यावहारिक सहयोग के लिए संभावनाएं बन सकें।
- चीन के रणनीतिक विस्तार पर रोक लगाना: भारत का उद्देश्य अपने रणनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, खासकर चीन को, तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद अफगानिस्तान के आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य पर हावी होने से रोकना भी है।
- रणनीतिक निवेशों की सुरक्षा: भारत ने अफगानिस्तान के अलग-अलग प्रांतों में 500 से अधिक परियोजनाओं में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश किया है, जिसमें विद्युत, जल, सड़कें, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि और क्षमता निर्माण शामिल हैं।
वैश्विक और क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य
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भारत के लिए चुनौतियां: एक जटिल राजनीतिक परिदृश्य में आगे बढ़ना
- औपचारिक मान्यता का अभाव: भारत ने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, जिससे कूटनीतिक और संस्थागत सहयोग का दायरा सीमित हो गया है।
- कूटनीतिक दुविधाएँ: इसके अतिरिक्त, यदि भारत केवल पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए एक दमनकारी शासन के साथ हाथ मिलाता है, तो वह अपनी नैतिक विश्वसनीयता खो देगा।
- सामरिक हितों और मानवीय चिंताओं के बीच संतुलन स्थापित करना: भारत का धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र तालिबान के धर्मतांत्रिक शासन से बिल्कुल अलग है। तालिबान द्वारा महिलाओं और धार्मिक स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंधों से मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में चिंताएं उत्पन्न होती हैं।
निष्कर्ष
तालिबान के साथ भारत का नया जुड़ाव पहले की वैचारिक द्वंद्व के बजाय रणनीतिक हितों को प्राथमिकता देकर एक व्यावहारिक बदलाव को दर्शाता है। यह नया दृष्टिकोण आतंकवाद से भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखने और रणनीतिक शत्रुओं के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बहुत आवश्यक है। यह इस बात पर बल देता है कि एक जटिल सहभागी के साथ जुड़ने का अर्थ उसका समर्थन करना नहीं है बल्कि दूरी बनाए रखने के बजाय वार्ता करने का एक व्यावहारिक विकल्प है।