सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, रूस और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की 25वीं वर्षगांठ मनाई गई है।
अन्य संबंधित तथ्य

- इस घोषणा-पत्र पर वर्ष 2000 में हस्ताक्षर किए गए थे।
- तब से, 22 वार्षिक शिखर सम्मेलनों, नियमित शासनाध्यक्ष-स्तरीय बैठकों, मंत्रिस्तरीय वार्ताओं और विभिन्न क्षेत्रकों के कार्य समूहों ने साझेदारी को संस्थागत रूप दिया है, जिससे निरंतरता और गंभीरता सुनिश्चित हुई है।
- इस घोषणा-पत्र के तहत एक पूर्ण रूप से नया फ्रेमवर्क तैयार किया गया है, जिसने राजनीति, सुरक्षा, आर्थिक, रक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्रकों में द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा दिया है।
भारत-रूस साझेदारी के प्रमुख स्तंभ:
- राजनीतिक और राजनयिक तालमेल: वार्षिक शिखर सम्मेलन इसका एक महत्वपूर्ण घटक है। शिखर सम्मेलनों के अलावा, दोनों देश मंत्रिस्तरीय आदान-प्रदान, 2+2 वार्ताओं और UN, G-20, BRICS, SCO जैसे साझा मंचों के माध्यम से भी घनिष्ठ रूप से समन्वय करते हैं।

- रूस भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन करता है।
- रक्षा और संरक्षा: रूस, भारत का सबसे बड़ा सैन्य उपकरण आपूर्तिकर्ता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-24 के दौरान भारत के कुल रक्षा आयात का 36% हिस्सा रूस से आयात किया गया था। इसमें S-400 एयर डिफेंस सिस्टम, MiG-29K नेवल फाइटर एयरक्राफ्ट,जैसे उपकरण शामिल हैं।
- दोनों देशों के रक्षा संबंध खरीदार-विक्रेता मॉडल से आगे बढ़कर उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के संयुक्त अनुसंधान, विकास और उत्पादन तक पहुंच गए हैं। जैसे- ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों का संयुक्त विकास।
- दोनों देश संयुक्त रूप से सैन्य अभ्यास इंद्र (INDRA) और एवियाइंद्रा' (Aviaindra) आयोजित करते हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- वर्तमान में, रूस भारत को सबसे अधिक कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाला देश बन गया है। यह भारत को रियायती दरों पर तेल निर्यात करता है, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिली है।
- भारत की कुछ सबसे बड़ी सरकारी और निजी कंपनियों ने रूस के सुदूर पूर्व (RFE) क्षेत्र में स्थित तेल क्षेत्रों में निवेश किया है। इसमें ONGC द्वारा तेल और गैस परियोजना में किया गया निवेश भी शामिल है।
- रूस भारत में, परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के विकास में सहयोग कर रहा है। जैसे- कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र, तमिलनाडु।
- व्यापार और अर्थव्यवस्था: दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचकर 68.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
- भारत से निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुओं में औषधियां, कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन, लोहा और इस्पात आदि शामिल हैं।
- रूस और भारत के बीच 90% व्यापार स्थानीय मुद्रा अर्थात रूबल और रुपये में होता है।
- संपर्क: रूस अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), उत्तरी समुद्री मार्ग और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारा जैसी परियोजनाओं के माध्यम से मध्य एशिया और विस्तृत यूरेशिया के साथ भारत के संपर्क को बढ़ा सकता है।
- तकनीकी क्षमता में वृद्धि करना: उदाहरण के लिए- अंतरिक्ष क्षेत्रक में, यह भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान में सहयोग कर रहा है।
- सांस्कृतिक संबंध और लोगों के बीच जुड़ाव: भारतीय सिनेमा ने एक समय सोवियत संघ के दर्शकों को मोहित कर लिया था। रूसी बैले आज भी भारत में प्रशंसनीय है, वहीं योग पूरे रूस में बहुत अधिक लोकप्रिय है। इस प्रकार दोनों देशों के मध्य दीर्घकालिक सद्भावपूर्ण संबंध बने हुए हैं।
भारत-रूस संबंधों के समक्ष उपस्थित चुनौतियां
- व्यापार असंतुलन: व्यापार संतुलन रूस के पक्ष में बना हुआ है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का रूस से आयात लगभग 63.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि निर्यात 4.88 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ।
- रुपये के अधिशेष की समस्या: व्यापार असंतुलन की वजह से वित्तीय चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं, क्योंकि भारतीय बैंकों में स्पेशल रुपी वोस्ट्रो अकाउंट्स (SRVAs) में अरबों भारतीय रुपये संचित हो गए हैं।
- रूसी विदेश मंत्री ने इस अधिशेष को एक "समस्या" बताया, क्योंकि रूस पश्चिमी वित्तीय प्रणाली के बाहर अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिए इन निधियों का उपयोग नहीं कर सकता है।
- रक्षा आयात में गिरावट: यह मुख्य रूप से भारत के हथियारों के आयात में आई विविधता के कारण हुआ है। अब भारत इजराइल, फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों से हथियार खरीद रहा है। साथ ही, भारत हथियारों के स्वदेशीकरण के लिए भी प्रयास कर रहा है।
- पृथक भू-राजनीतिक प्राथमिकताएँ:
- भारत-अमेरिका के बीच तालमेल: भारत तेजी से पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के साथ जुड़ाव बढ़ा रहा है। उदाहरण के लिए, क्वाड जैसा सुरक्षा संबंध।
- रूस-चीन के बढ़ते संबंध: 2022 में, रूस और चीन ने "नो लिमिट्स" पार्टनरशिप की घोषणा की। इसके अंतर्गत घनिष्ठ राजनीतिक, सुरक्षात्मक और आर्थिक जुड़ाव की रूपरेखा तैयार की गई है।
- पाकिस्तान के साथ रूस के बेहतर होते संबंध: उदाहरण के लिए, पाकिस्तान और रूस के बीच हालिया सहयोग में संयुक्त आतंकवाद विरोधी अभ्यास और नौसैनिक अभ्यास जैसी रक्षा पहल शामिल हैं।
- अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध: S-400 सौदे के बाद से भारत ने रूस के साथ कोई बड़ा सैन्य समझौता नहीं किया है, ताकि अमेरिका द्वारा अपने प्रतिद्वंदियों का विरोध हेतु बनाए गए दंडात्मक अधिनियम (CAATSA), 2017 के तहत लगाए जाने वाले प्रतिबंध से बचा जा सके।
- CAATSA तीन देशों, नामतः रूस, ईरान और उत्तर कोरिया के साथ सौदा करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है।
भारत रूस और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को कैसे संतुलित कर रहा है?
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आगे की राह
- आपसी विश्वास बढ़ाना: रूस-चीन और भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच दोनों देशों को आपसी विश्वास को मजबूत करने की आवश्यकता है।
- टियर II कूटनीति को मजबूत करना: नई पीढ़ी और शैक्षणिक समुदाय के साथ भी संपर्क मजबूत करना और रूस में भारतीय पत्रकारों को भेजना।
- व्यापार में विविधता लाना: भारत-रूस व्यापार में तेल से आगे बढ़कर सूचना प्रौद्योगिकी, कपड़ा, कृषि जैसे पारंपरिक क्षेत्रक के उत्पादों को भी शामिल करना चाहिए। इससे रूस में भारत का निर्यात बढ़ेगा।
- संयुक्त अनुसंधान और सह-विकास को बढ़ावा देना: ब्रह्मोस मिसाइल और AK-203 राइफल्स जैसी पिछली सफलताओं के आधार पर, भविष्य में अगली पीढ़ी की रक्षा टेक्नोलॉजी पर केंद्रित सहयोग बढ़ाना चाहिए।
- यूरेशियाई आर्थिक संघ (EAEU) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देना: रूस EAEU का एक अहम सदस्य है।
- परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना: रूस, भारत को स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) विकसित करने में मदद कर सकता है।
- अन्य: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), साइबर सुरक्षा जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
भारत-रूस संबंधों का भविष्य दोनों देशों की अपनी साझेदारी को उभरती हुई वैश्विक वास्तविकताओं के अनुसार ढालने की क्षमता पर निर्भर करता है। अतः रक्षा और ऊर्जा जैसे क्षेत्रकों से आगे बढ़कर तकनीकी, नवाचार और लोगों के बीच संबंधों तक साझेदारी का विस्तार करना चाहिए।