सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल के वर्षों में, पश्चिमी लोकतंत्र से लेकर एशिया के कुछ हिस्सों तक विश्व भर में अप्रवासन विरोधी व्याख्यान, विरोध-प्रदर्शन और नीतियों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
अन्य संबंधित तथ्य
- इसके कुछ हालिया उदाहरण इस प्रकार हैं;
- हाल ही में अमेरिकी प्रशासन द्वारा H1B वीजा शुल्क में की गई वृद्धि,
- जापान की सेंसेइटो पार्टी द्वारा अप्रवासन को 'मूक आक्रमण' बताने वाले अभियान,
- ऑस्ट्रेलिया में "मार्च फॉर ऑस्ट्रेलिया" के बैनर तले भारतीय प्रवासन का विरोध।
- ऐसा मुख्य रूप से लोकलुभावनवाद के उदय के कारण हुआ है, यहां जनता की राय अप्रवासन के प्रति शत्रुता का रूप ले लेती है। इन परिस्थितियों में राजनीतिक प्रतिक्रिया के तहत हमेशा नए अप्रवास पर रोक लगा दी जाती है। सामान्यतः वैध अप्रवास के मार्ग को प्रतिबंधित करके, सीमा सुरक्षा को मजबूत करके, नए आप्रवासियों के अधिकारों को कम करके अप्रवास को कम करने का प्रयास किया जाता है।
अप्रवासन विरोधी भावना में वृद्धि के कारण
- आर्थिक: प्रायः ऐसा माना जाता है कि प्रवासी स्थानीय लोगों की नौकरियां छीन लेते हैं। विशेष रूप से निम्न-कौशल वाले क्षेत्रक में ये वेतन को कम कर देते हैं, इससे लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है।
- उदाहरण के लिए, नौकरी छूटने और वेतन कम होने का डर ब्रिटेन में ब्रेक्जिट के समर्थन का एक बड़ा कारण था।
- सामाजिक और सांस्कृतिक: प्रवासियों को राष्ट्रीय पहचान, भाषा, धर्म और परंपराओं के लिए खतरा माना जाता है। इससे मूल आबादी में अपनी सांस्कृतिक पहचान के संबंध में चिंता बढ़ जाती है, खासकर उन समाजों में जो जनसांख्यिकीय परिवर्तन का सामना कर रहे होते हैं।
- उदाहरण के लिए, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में अप्रवासन विरोधी भावना का बढ़ना।
- राजनीतिक: लोकलुभावन और राष्ट्रवादी नेता चुनाव में समर्थन पाने के लिए लोगों के अप्रवासन से संबंधित डर (बेरोजगारी, अपराध, कल्याणकारी तनाव) का लाभ उठाते हैं।
- उदाहरण के लिए, इटली की प्रधान मंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने तर्क दिया कि देश को प्रवासियों के "हमले" का सामना करना पड़ रहा है।
- सुरक्षा: सरकारें और आम नागरिक प्रवासन का संबंध अवैध घुसपैठ, आतंकवाद या संगठित अपराध से जोड़ते हैं, जिससे इसके प्रति भय एवं विरोध की भावना बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिए, 9/11 के बाद USA में सख्त आव्रजन कानून लागू किया जाना।
- भ्रामक जानकारी: सोशल मीडिया झूठी कहानियों, जैसे कि प्रवासी "नौकरियां छीन रहे हैं" या "अपराध दर बढ़ा रहे हैं" आदि के द्वारा जेनोफोबिया (विदेशी लोगों को न पसंद करने की प्रवृत्ति) को बढ़ाता है। इसके अलावा यह नकारात्मक रूढ़िवादिता को मजबूत करता है, व्यापक स्तर पर डर और नैतिक घबराहट उत्पन्न करता है।
- उदाहरण के लिए, जर्मनी में मीडिया के ज़रिए प्रवासियों से जुड़े अपराधों के बारे में झूठी खबरें फैलने से प्रवासियों के विरुद्ध भावनाएं और तीव्र हो गईं।
आव्रजन विरोधी आंदोलन का प्रभाव
- आर्थिक प्रभाव: सख्त आव्रजन कानून श्रमिक आपूर्ति को कम करते हैं, खासकर उन क्षेत्रकों में जो प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर हैं जैसे कि कृषि, निर्माण। इससे श्रमिक लागत बढ़ जाती है और आर्थिक संवृद्धि दर कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए, ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन को कृषि क्षेत्रक में गिरावट का सामना करना पड़ा।
- जनसांख्यिकीय प्रभाव: आव्रजन विरोधी नीतियां विकसित देशों में वृद्ध होती आबादी के संकट को और गंभीर बना सकती हैं, इससे कार्यशील आयु के करदाताओं की संख्या कम हो जाएगी और निर्भरता अनुपात बढ़ जाएगा।
- उदाहरण के लिए, जापान और यूरोपियन यूनियन में बुजर्गों की बढ़ती आबादी के कारण श्रमिकों की कमी हो गई है।
- सामाजिक-सांस्कृतिक: सख्त आव्रजन कानून संभावित रूप से बहुसांस्कृतिक आदान-प्रदान को कम कर सकते हैं और सामाजिक सामंजस्य को बाधित कर सकते हैं, जिससे आगे चलकर ध्रुवीकरण और जेनोफोबिया में वृद्धि हो सकती है।
- नवाचार में कमी: कौशल युक्त प्रवासियों पर रोक लगाने से नवाचार, शोध क्षमता और स्टार्ट-अप्स में कमी आती है।
- उदाहरण के लिए, नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के अनुसार, देश के 1 बिलियन डॉलर मूल्य के 55% स्टार्ट-अप्स में कम-से-कम एक संस्थापक प्रवासी था।
- राजनीतिक प्रभाव: सख्त नीतियों के कारण पड़ोसी या मूल देशों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं, क्योंकि लोगों को देश से निकाला जा सकता है या भेदभावपूर्ण वीज़ा नियम लागू किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के लिए उनकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना भी हो सकती है।
अवैध अप्रवासन को रोकने के लिए उठाए गए कदम
|
भारत को क्या प्रतिक्रिया देनी चाहिए?
- मेज़बान देशों के साथ कूटनीतिक वार्ता: विदेशों में भारतीय मजदूरों और छात्रों के लिए उचित व्यवहार एवं कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मेज़बान देशों, जैसे- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के साथ द्विपक्षीय वार्ता और समझौते करने चाहिए।
- प्रवासी कूटनीति का लाभ उठाना: विश्व भर में भारतीयों के बारे में नकारात्मक विचारों को दूर करने तथा उनके सकारात्मक योगदान को दर्शाने के लिए दूतावासों और सांस्कृतिक मिशनों के माध्यम से अग्रसक्रिय रूप से प्रवासियों के साथ संपर्क स्थापित किया जाना चाहिए।
- स्थानीय स्तर पर अवसरों में वृद्धि करना: भारत में सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य-सेवा, विनिर्माण, आदि क्षेत्रकों में उच्च-गुणवत्ता वाली नौकरियों के अधिक अवसर सृजित करने चाहिए। इससे अप्रवास को बढ़ावा देने वाले कारणों को कम करने में मदद मिल सकती है।
- इस संबंध में, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और स्टार्ट-अप इंडिया जैसी पहलों को संयुक्त एवं प्रभावी तरीके से लागू करना चाहिए। इससे कौशल युक्त युवाओं को देश में ही कार्य करने के लिए रोकने और विदेशी रोज़गार पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है।
- भ्रामक जानकारी और जेनोफोबिया का प्रतिकार: भारत सरकार और अन्य गैर-सरकारी संस्थाएं, प्रवासियों के विरुद्ध भ्रामक जानकारी के प्रसार को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल मंचों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं।
निष्कर्ष
संपूर्ण विश्व में अप्रवासन-विरोधी भावना का बढ़ना, गहन आर्थिक चिंताओं, सांस्कृतिक असुरक्षाओं और राजनीतिक लोकलुभावनवाद को दर्शाता है। भारत के लिए, जिसका प्रवासी समुदाय विश्व के सबसे बड़े प्रवासी समुदायों में से एक है, विदेशों में अपने नागरिकों की रक्षा करना और साथ ही, देश में समावेशी एवं उत्तरदायी आव्रजन नीतियों को बढ़ावा देना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। कूटनीति, साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण और मानवाधिकारों के सम्मान पर आधारित एक संतुलित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि अप्रवासन पारस्परिक रूप से जुड़े हुए विश्व में विवाद के बजाय शक्ति का स्रोत बना रहे।