सुर्खियों में क्यों?
हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत के औषधि सुरक्षा नियमों में व्याप्त कमियों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। WHO द्वारा यह चिंता देश में संदूषित कफ सिरप के कारण हुई लगभग 20 बच्चों की मौत के बाद व्यक्त की गई है।

अन्य संबंधित तथ्य
- भारत के औषधि नियामक द्वारा तीन संदूषित कफ सिरप की पहचान की गई है। इनमें कोल्ड्रिफ (श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स), रेस्पिफ्रेश (रेडनेक्स फार्मास्यूटिकल्स) और रीलाइफ (शेप फार्मा) शामिल हैं।
भारत में औषधीय उत्पादों का विनियमन:
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945: इनके माध्यम से भारत में औषधियों एवं सौंदर्य प्रसाधनों के आयात, विनिर्माण, वितरण और बिक्री को विनियमित किया जाता है। ये सुनिश्चित करते हैं कि औषधियां गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता के आवश्यक मानकों को पूरा करें।
- राज्य औषधि नियामक प्राधिकरण: इन्हें लाइसेंस प्रदान करने, निरीक्षण करने और राज्य स्तर पर औषधि कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित कराने का अधिकार प्राप्त है।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अधीन कार्यरत केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization : CDSCO) भारत का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (NRA) है।
- CDSCO औषधियों के अनुमोदन, औषधियों के प्रयोग से पूर्व होने वाले परीक्षणों (क्लीनिकल ट्रायल) के संचालन, औषधियों के मानक निर्धारित करने और देश में आयातित की जाने वाली औषधियों की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिए उत्तरदायी है। ये कार्य औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के अंतर्गत CDSCO को सौंपे गए हैं।
- राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA): यह औषध (मूल्य नियंत्रण) संबंधी आदेश के प्रावधानों को लागू करता है।
- उत्तम विनिर्माण पद्धतियां (GMP): औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों की अनुसूची 'M' के तहत उत्तम विनिर्माण पद्धतियों को निर्धारित किया गया है। इन पद्धतियों का निर्धारण WHO के दिशानिर्देशों के अनुरूप किया जाता है।
भारत में नकली औषधियों से संबंधित प्रमुख चुनौतियां:
- विनियामकीय कमियां: CDSCO और राज्य स्तर के प्राधिकरणों द्वारा किया जाने वाला निरीक्षण असंगत एवं विभिन्न स्तरों पर बिखरा हुआ है। इसके कारण दवा कंपनियों के कार्यों की निगरानी प्रभावी रूप से नहीं हो पाती है।
- विषाक्त संदूषण या निम्न गुणवत्ता वाली दवाइयां: उदाहरण के लिए, जांच में पाया गया कि कुछ कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) जैसे विषाक्त पदार्थ मौजूद थे। यह आमतौर पर औद्योगिक विलायकों (सॉल्वेंट्स) में पाया जाने वाला एक विषाक्त पदार्थ है।
- खराब गुणवत्ता का नियंत्रण: विनिर्माण पद्धतियों में व्याप्त कमियों, अपर्याप्त प्रयोगशाला परीक्षण और उत्तम विनिर्माण पद्धतियों का अनुपालन नहीं किए जाने के कारण असुरक्षित दवाएं बाजार में पहुंच जाती हैं।
- आपूर्ति श्रृंखला और भंडारण संबंधी समस्याएं: अनुचित भंडारण परिस्थितियों और खराब शीत भंडारण श्रृंखला (कोल्ड चेन) प्रबंधन के कारण दवाएं खराब हो सकती हैं, जिससे वे असुरक्षित हो जाती हैं।
- दवाओं को बाजार से वापस लिए जाने से संबंधित अनिवार्य कानून का अभाव: भारत में निम्न स्तरीय दवाओं को बाजार से वापस लिए जाने से संबंधित एक बाध्यकारी राष्ट्रीय कानून का अभाव है। इस उपाय पर 1976 से चर्चा की जा रही है, लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया।
- ऑनलाइन नकली दवाओं का बढ़ता खतरा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 10 में से 1 दवा निम्न गुणवत्ता वाली या नकली होती है। साथ ही, यह भी देखा गया है कि अनधिकृत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इनके प्रसार का प्रमुख माध्यम बनते जा रहे हैं।
सिफारिशें
रसायन एवं उर्वरक संबंधी स्थायी समिति (2024-25) ने नकली एवं मिलावटी दवाओं से निपटने के लिए प्रवर्तन, नियामकीय निगरानी और जन जागरूकता को मजबूत करने हेतु तत्काल तथा ठोस उपायों की आवश्यकता पर बल दिया है।
- कानूनों का प्रभावी प्रवर्तन: औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और औषधि नियम, 1945 को संपूर्ण देश में कठोरता से लागू किया जाना चाहिए, ताकि नकली एवं मिलावटी दवाओं की समस्या को समाप्त किया जा सके।
- त्वरित कानूनी कार्रवाई और कठोर दंड व्यवस्था: त्वरित कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए, कठोर दंड लगाया जाना चाहिए और नियमों का पालन नहीं करने वाले विनिर्माताओं पर रोक लगाई जानी चाहिए।
- मजबूत निगरानी और निरीक्षण: विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में, कठोर निगरानी, समयबद्ध निरीक्षण और पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- वितरण संबंधी उत्तम व्यवस्थाओं (GDP) से संबंधित कानूनी रूप से बाध्यकारी दिशानिर्देश: आपूर्ति श्रृंखला में गुणवत्ता मानकों को मजबूत करने के लिए CDSCO के वितरण संबंधी उत्तम व्यवस्थाओं से संबंधित दिशानिर्देशों को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाना चाहिए।
- एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय: नकली दवाएं बनाने वाले नेटवर्क को समाप्त करने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों और नियामक संस्थाओं के बीच समन्वय को मजबूत किया जाना चाहिए।
- उत्तम विनिर्माण पद्धतियों (GMP) का प्रवर्तन: उत्तम विनिर्माण पद्धतियों को शीघ्रता से लागू किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय जागरूकता अभियान: नकली दवाओं की पहचान करने एवं उल्लंघन की रिपोर्ट करने के बारे में उपभोक्ताओं और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को शिक्षित करने हेतु एक राष्ट्रीय जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।