यह रिपोर्ट देश में नौकरियों के सृजन के प्रमुख चालक के रूप में कौशल विकास और लघु उद्यमों की भूमिका को रेखांकित करती है।
रोजगार में प्रमुख रुझान
- रोजगार में वृद्धि मुख्य रूप से स्व-रोजगार में बढ़ोतरी के कारण हुई है, जबकि कम-कौशल वाले रोजगार से उच्च कौशल वाले रोजगार में परिवर्तन धीमा रहा है।
- भारत में स्व-रोजगार का प्रभुत्व आर्थिक आवश्यकता के कारण है न कि उद्यमशीलता की गतिशीलता के कारण। इसके अलावा, अधिकतर लघु उद्यम कम पूंजी, निम्न उत्पादकता और अल्प प्रौद्योगिकी उपयोग के साथ जीवन निर्वाह के स्तर पर परिचालन करते हैं।
- विशेष रूप से सेवाओं में मध्यम-कौशल वाली नौकरियां रोजगार वृद्धि पर हावी हैं, जबकि विनिर्माण में अभी भी कम-कौशल वाले श्रम बल की प्रधानता है।
- भारत की व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (VET) प्रणाली को अभी भी गहन संरचनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- सीटों का पूरी तरह से नहीं भरा जाना;
- अपर्याप्त प्लेसमेंट,
- प्रशिक्षक पदों का रिक्त होना,
- कमजोर उद्योग संपर्क, तथा
- व्यावसायिक शिक्षा को गैर-प्राथमिक विकल्प के रूप में देखने की लगातार बनी हुई धारणा।
सार्थक रोजगार सृजित करने के लिए सिफारिशें
- मांग पक्ष: सुधारों का लक्ष्य घरेलू उपभोग को बढ़ावा देना; उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को श्रम-गहन क्षेत्रकों (जैसे- वस्त्र, फुटवियर आदि) की ओर पुनर्निर्देशित करना; ऋण तक पहुंच में सुधार करना और श्रम संबंधी नियमों को सरल बनाना होना चाहिए।
- ऋण तक पहुंच में 1% की वृद्धि भी हायर किए गए कर्मचारियों की अपेक्षित संख्या में 45% की वृद्धि करती है।
- आपूर्ति पक्ष: प्रारंभिक स्कूली शिक्षा में VET को एकीकृत करना चाहिए; पाठ्यक्रम को उद्योग की मांगों के साथ संरेखित करना चाहिए; सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मजबूत करना चाहिए और ऐसे सार्वजनिक निवेशों को बढ़ाना चाहिए, जो वैश्विक मानकों के अनुरूप हों।
- औपचारिक कौशल विकास में निवेश के माध्यम से कुशल कार्य बल के हिस्से को 12 प्रतिशत अंक तक बढ़ाने से 2030 तक श्रम-गहन क्षेत्रकों में रोज़गार में 13% से अधिक की वृद्धि हो सकती है।