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आर्य समाज के 150 वर्ष (150 YEARS OF ARYA SAMAJ)

23 Dec 2025
1 min

In Summary

  • महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 में स्थापित आर्य समाज एक पुनरुत्थानवादी आंदोलन है जो वैदिक धर्म और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देता है, जिसका उद्देश्य दुनिया को श्रेष्ठ बनाना है।
  • प्रमुख योगदानों में 'शुद्धि' जैसे धार्मिक सुधार, अछूतों और महिलाओं की मुक्ति के लिए सामाजिक सुधार, और डीएवी स्कूलों और गुरुकुलों जैसी शैक्षिक पहल शामिल हैं।
  • दयानंद सरस्वती ने 'वेदों की ओर वापसी', सामाजिक समानता, महिलाओं के अधिकारों की वकालत की और हिंदी को एक एकीकृत भाषा के रूप में बढ़ावा दिया, जिससे राष्ट्रीय जागरण पर प्रभाव पड़ा।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, प्रधानमंत्री ने महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती और आर्य समाज के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित 'ज्ञान ज्योति महोत्सव' के हिस्से के रूप में इंटरनेशनल आर्य समिट 2025 को संबोधित किया।

आर्य समाज के बारे में 

  • स्थापना: इसकी स्थापना महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 में बॉम्बे (मुंबई) में की गई थी।
    • 1877 में लाहौर में आर्य समाज की एक शाखा स्थापित की गई।
  • प्रकृति: यह एक पुनरुत्थानवादी आंदोलन था, जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म में धार्मिक और सामाजिक सुधार लाना था। इसका दृढ़ विश्वास था कि सुधार वैदिक धर्म के पुनरुत्थान के माध्यम से ही संभव है।
    • आर्य समाज का लक्ष्य हमेशा रहा है- "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" (अर्थात: इस विश्व को श्रेष्ठ बनाओ)।
  • संगठनात्मक ढांचा: गाँवों, कस्बों और शहरों में स्थित आर्य समाज की प्रत्येक शाखा अपने आप में एक स्वतंत्र इकाई थी।
    • समाज के कार्यों का संचालन एक कार्यकारी समिति द्वारा किया जाता था, जिसमें प्रतिवर्ष गुप्त मतदान द्वारा निर्वाचित सदस्य शामिल होते थे। इन सदस्यों का पुन: निर्वाचन भी संभव था।
  • सदस्यता: इसके लिए समाज के दस मूलभूत सिद्धांतों को स्वीकार करना, समाज के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपनी मासिक या वार्षिक आय का 1% दान करना और इसकी बैठकों में भाग लेना अनिवार्य था।
    • इन बैठकों का संचालन जाति-पाति के भेदभाव के बिना किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता था।
    • आर्य समाज संगठन आज दुनिया के सभी हिस्सों में जीवंत और सक्रिय है। इसकी शाखाएं उत्तरी अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में फैली हुई हैं।

आर्य समाज के प्रमुख योगदान

  • धार्मिक सुधार: इसने एकेश्वरवादी हिंदू व्यवस्था को बढ़ावा दिया और रूढ़िवादी हिंदुत्व की कर्मकांडीय अधिकता और सामाजिक हठधर्मिता को खारिज किया। इसने वैदिक शिक्षाओं पर आधारित एक संगठित हिंदू समाज को प्रोत्साहित किया।
    • उन्होंने "शुद्धि" (शुद्धिकरण समारोह) जैसा अत्यंत अपरंपरागत कदम उठाया। इसमें उन हिंदुओं की सामूहिक घर-वापसी शामिल थी, जिन्होंने इस्लाम, ईसाई या अन्य धर्म अपना लिया था।
    • इसने मालाबार के मोपलाओं को वापस हिंदू धर्म अपनाने में मदद की (1923), और 'कुंभ वेद अभियान' के माध्यम से वैदिक शिक्षाओं को बढ़ावा दिया, जहाँ कुंभ मेलों के दौरान वैदिक ज्ञान का प्रसार किया गया।
  • सामाजिक सुधार: महात्मा गांधी द्वारा अस्पृश्यता का मुद्दा उठाने से बहुत पहले, आर्य समाज ने अछूतों को हिंदू समाज के समान सदस्य के रूप में संगठित करने का प्रयास किया था।
  • महिला सशक्तिकरण: इसने बालिकाओं को बौद्धिक ज्ञान और व्यावहारिक कौशल से लैस करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों का एक नेटवर्क स्थापित किया।
    • उदाहरण: कन्या महाविद्यालय (जालंधर), कन्या पाठशाला (देहरादून), हंसराज महिला महाविद्यालय (जालंधर) आदि।
  • राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान: हालांकि समाज ने हमेशा खुद को एक धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन बताया, लेकिन यह भारत के राष्ट्रीय और राजनीतिक जागरण में अग्रदूत रहा।
    • यह प्रयास हिंदी भाषा, खादी और स्वदेशी के समर्थन और नमक कर के विरोध में देखा जा सकता है।
    • आर्य समाज से प्रेरित प्रमुख नेताओं में लाला लाजपत राय, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, मदन लाल ढींगरा, स्वामी श्रद्धानंद, शचींद्र नाथ सान्याल, भाई परमानंद, विनायक दामोदर सावरकर आदि शामिल थे।
  • शैक्षिक सुधार: इसने गुरुकुलों और DAV (दयानंद एंग्लो-वैदिक) स्कूलों की स्थापना के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान को आधुनिक शैक्षणिक शिक्षा के साथ जोड़ने को बढ़ावा दिया।
  • मानवीय सुधार: समाज ने आजादी से पहले और बाद में संकट के समय राहत कार्य किए, जिसमें बीकानेर अकाल (1895), अवध अकाल (1907-08), और गुजरात भूकंप (2001) आदि शामिल हैं।
  • हिंदी भाषा का प्रचार: आर्य समाज ने 'आर्य दर्पण' (1878), 'आर्य समाचार' (1878), 'भारत सुदशा प्रवर्तक' (1879) और 'देश हितैषी' (1882) जैसे हिंदी समाचार पत्र और पत्रिकाएं आरंभ की।

हैदराबाद सत्याग्रह (1938-39)

  • परिचय: यह हैदराबाद के निजाम के दमनकारी शासन के खिलाफ आर्य समाज द्वारा शुरू किया गया एक सत्याग्रह था। दरअसल निजाम ने आर्य समाजियों के वैदिक शिक्षाओं के प्रचार अभियान पर रोक लगा दी थी।
  • प्रमुख नेता: महात्मा नारायण स्वामी, चंद किरण शारदा आदि।
  • महत्व: हैदराबाद की मुक्ति और भारत में इसके एकीकरण में इस आंदोलन की भूमिका को सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी स्वीकार किया था।

आर्य समाज की समकालीन प्रासंगिकता

  • अंधविश्वास और अज्ञानतापूर्ण विश्वासों को दूर करना: समाज में कुछ अंधविश्वास इतने लंबे समय से मौजूद हैं कि उन्हें स्वाभाविक मान लिया गया है। उदाहरण के लिए, बुरी नजर से बचने के लिए ताबीज या लॉकेट पहनना। आर्य समाज तार्किक सोच को बढ़ावा देकर इन्हें दूर करने पर जोर देता है।
  • भेदभाव का अंत: जाति आधारित भेदभाव आज भी एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। हालांकि संवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से इसे खत्म करने का प्रयास किया गया है, लेकिन कई हिस्सों में यह सामाजिक रूप से प्रचलित है। आर्य समाज की समानता की शिक्षा यहाँ अत्यंत प्रासंगिक है।
  • सतत विकास: वर्तमान समय के योग और पर्यावरण चेतना के विचार वैदिक आदर्शों और जीवनशैली के स्तंभों पर आधारित है। इन विचारों का समर्थन आर्य समाज ने भी किया था।
    • इस संबंध में भारत का 'मिशन LiFE' और 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' जैसे अभियान इसी वैश्विक सोच का हिस्सा हैं।
  • महिला सशक्तिकरण: भारत के कार्यबल का आधा हिस्सा होने के नाते महिलाओं की विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी, जैसे कि कृषि (ड्रोन दीदी), रक्षा (राफेल लड़ाकू विमान का संचालन), और विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं राजनीति में नेतृत्व आदि।
  • शिक्षा: समाज का विशेष रूप से वंचित वर्ग के लिए शिक्षा पर जोर देना, सभी को गरिमामय जीवन प्रदान करने के लिए अनिवार्य है।
  • मानवीय मूल्यों का संचार: व्यक्तियों में सहानुभूति, करुणा और संवेदनशीलता जैसे प्रेरणादायक गुणों को विकसित करना, जो भाईचारे को मजबूत करते हैं और समाज में शांति को बढ़ावा देते हैं।

आर्य समाज का शैक्षिक कार्यक्रम

  • दयानंद एंग्लो-वैदिक (DAV): पहले DAV स्कूल की स्थापना 1886 में लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में की गई थी।
    • इसका उद्देश्य छात्रों को उनकी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों से अलग किए बिना उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना है।
  • गुरुकुल कांगड़ी: इसकी स्थापना 1902 में स्वामी श्रद्धानंद द्वारा हरिद्वार में की गई थी। परंपरावादियों के नेतृत्व में, इसने पश्चिमी शिक्षा के बजाय वैदिक शिक्षा को प्राथमिकता दी।
    • यह आवासीय विद्यालय के प्राचीन आदर्श पर आधारित था जहाँ शिक्षक और छात्र एक परिवार की तरह रहते थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

निष्कर्ष

आर्य समाज के कालातीत सिद्धांत और बदलते समय के साथ खुद को ढालने की इसकी क्षमता, समानता, शिक्षा और तार्किक चिंतन पर इसके जोर के साथ मिलकर समकालीन समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप है। यह इसे भारत के सामाजिक-धार्मिक परिदृश्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनाता है।

महर्षि दयानंद सरस्वती (मूल शंकर) के बारे में 

  • जन्म: 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के काठियावाड़ के मोरबी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।
  • प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: 5 वर्ष की आयु में शिक्षा शुरू की, 8 वर्ष की आयु में उपनयन संस्कार (जनेऊ) हुआ। चौदह वर्ष की आयु से उनका धार्मिक बौद्धिक रूपांतरण आरंभ हुआ।  उन्होंने संस्कृत में वैदिक शिक्षा प्राप्त की।
  • संन्यास: 21 वर्ष की आयु में वे गृहत्याग कर साधु बने। इसके उपरांत लगभग पंद्रह वर्षों तक भ्रमण करते हुए अनेक साधुओं और पंडितों से संपर्क में रहे।
  • मृत्यु: 30 अक्टूबर, 1883, अजमेर (राजपूताना)।
  • गुरु: स्वामी विरजानंद सरस्वती, जिन्होंने उन्हें हिंदू धर्म को सभी बुराइयों से मुक्त करने का उत्तरदायित्व सौंपा।

प्रमुख योगदान

  • राष्ट्रीय आंदोलन: उन्हें 1875 में सबसे पहले "स्वराज्य" शब्द का उपयोग करने का श्रेय दिया जाता है।
  • वेदों में विश्वास: उनका नारा "वेदों की ओर लौटो" वेदों को उनकी विचारधारा के सबसे महत्वपूर्ण घटक के रूप में स्थापित करता है।
  • सामाजिक सुधार: सामाजिक बुराइयों, अंधविश्वासों और पाखंड के विरोध में उन्होंने 1867 के हरिद्वार कुंभ मेले में "पाखंड खंडिनी पताका" फहराई।
    • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उन्हें 'आधुनिक भारत का निर्माता' कहा।
  • महिला अधिकार: उन्होंने स्त्री-पुरुष समानता का समर्थन किया, महिलाओं को वेद पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाया।
    • उन्होंने निर्धारित किया कि लड़कियों की शादी 16 वर्ष और लड़कों की 25 वर्ष की आयु से पहले नहीं होनी चाहिए।
  • धार्मिक सुधार: उनकी प्रसिद्ध कृति 'सत्यार्थ प्रकाश' ने धार्मिक पुनरुत्थान का आह्वान किया और सरल अनुष्ठानों एवं वैदिक मंत्रों के जाप के साथ एक परम ईश्वर की पूजा करने का समर्थन किया।
  • गौ संरक्षण: उन्होंने गोहत्या का सक्रिय विरोध किया और गाय की पूजा को वैदिक संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा माना।
    • 1881 में उन्होंने 'गोकरुणानिधि' नामक ग्रंथ प्रकाशित किया जिसमें गोहत्या की निंदा की गई थी और 1882 में पंजाब में पहली 'गौरक्षिणी सभा' की स्थापना की।
  • हिंदी भाषा का प्रचार: संस्कृत में निपुण होने और मातृभाषा गुजराती होने के बावजूद, उनका मानना था कि देवनागरी लिपि में हिंदी भारत की एकता की भाषा है।
    • उनका ग्रंथ 'सत्यार्थ प्रकाश' हिंदी में लिखा गया था।
  • शिक्षा: अपनी पुस्तक 'सत्यार्थ प्रकाश' में उन्होंने शिक्षा के दर्शन से शुरुआत की, जिसमें बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित करने के माता-पिता के कर्तव्य पर जोर दिया गया है।
    • उन्होंने 5 वर्ष की आयु से ही संस्कृत, हिंदी और एक विदेशी भाषा सीखने का प्रस्ताव दिया।

 

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गौ संरक्षण

आर्य समाज और महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा गोहत्या का सक्रिय विरोध और गाय की पूजा को वैदिक संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा मानना। 1882 में पंजाब में पहली 'गौरक्षिणी सभा' की स्थापना इसका एक उदाहरण है।

सत्यार्थ प्रकाश

महर्षि दयानंद सरस्वती की एक महत्वपूर्ण कृति, जिसने धार्मिक पुनरुत्थान का आह्वान किया। इसमें सरल अनुष्ठानों और वैदिक मंत्रों के जाप के साथ एक परम ईश्वर की पूजा का समर्थन किया गया है और यह शिक्षा, सामाजिक सुधारों और धार्मिक सिद्धांतों पर भी प्रकाश डालता है।

वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड

एक महत्वाकांक्षी वैश्विक पहल जिसका उद्देश्य दुनिया भर में नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करना है। यह वैश्विक सहयोग और टिकाऊ विकास के विचार को बढ़ावा देता है, जो आर्य समाज की 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' (विश्व को श्रेष्ठ बनाओ) की भावना से मेल खाता है।

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