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भारतीय मानसिकता का विऔपनिवेशीकरण (DECOLONISING THE INDIAN MIND)

23 Dec 2025
1 min

In Summary

  • प्रधानमंत्री ने मैकाले की विरासत में निहित औपनिवेशिक मानसिकता को त्यागने के लिए 10 साल की प्रतिज्ञा का आग्रह किया, जिसका प्रभाव शिक्षा, कानून और प्रशासन पर पड़ता है।
  • औपनिवेशिक मानसिकता ने हीनता, भाषाई बाधाओं, सांस्कृतिक थोपने और आर्थिक शोषण को बढ़ावा दिया, जिससे नौकरशाही और रंगभेद जैसे सामाजिक मानदंडों पर प्रभाव पड़ा।
  • कानूनों को निरस्त करना, एनईपी 2020, प्रतीकात्मक परिवर्तन और पारंपरिक ज्ञान को पुनर्जीवित करना जैसी पहलों का उद्देश्य औपनिवेशिक अवशेषों को मिटाना है।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों?

प्रधानमंत्री ने औपनिवेशिक मानसिकता को समाप्त करने हेतु 10-वर्षीय राष्ट्रीय संकल्प का आह्वान किया है। यह मानसिकता ब्रिटिश सांसद थॉमस बैबिंगटन मैकाले की विरासत से उपजी है। मैकाले भारत को उसकी संस्कृति और परंपराओं से अलग करने का प्रयास कर रहा था।

भारतीय प्रशासन में मैकाले का योगदान:

  • शिक्षा नीति: मैकाले सार्वजनिक निर्देश समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने 'प्राच्यवादियों' (भारतीय भाषाओं के समर्थक) और 'आंग्लवादियों' (अंग्रेजी शिक्षा के समर्थक) के बीच के गतिरोध को समाप्त किया।
    • मैकाले का विवरण (1835): उनके 'मिनट ऑन एजुकेशन' ने अंग्रेजी को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्थापित किया। पारंपरिक भारतीय शिक्षा के स्थान पर पश्चिमी साहित्य और विज्ञान को प्राथमिकता दी।
    • लक्ष्य: एक ऐसा मध्यवर्ती वर्ग तैयार करना जो "रक्त और रंग में भारतीय हो, लेकिन अपनी पसंद, विचारों, नैतिकता और मानसिकता में अंग्रेज हो।"
    • अधोमुखी निस्पंदन सिद्धांत: उन्होंने जन सामान्य की प्राथमिक शिक्षा के बजाय विशिष्ट अंग्रेजी संस्थानों की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया। उन्हें उम्मीद थी कि ज्ञान शिक्षित उच्च वर्ग से नीचे आम जनता तक पहुंचेगा।
  • विधिक सुधार: 1833 के चार्टर एक्ट के तहत उन्हें गवर्नर-जनरल की परिषद (1834-1838) के प्रथम 'विधि सदस्य' के रूप में नियुक्त किया गया।
    • उन्होंने उन ब्रिटिश निवासियों के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया जो कलकत्ता के सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते थे।
    • प्रथम विधि आयोग (1835) के अध्यक्ष के रूप में भारतीय आपराधिक विधि का संहिताकरण किया। इसके परिणामस्वरूप सिविल प्रक्रिया संहिता (1859)भारतीय दंड संहिता (1860) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC-1861) अस्तित्व में आईं।
  • सिविल सेवा: मैकाले समिति (1854) ने संरक्षण प्रणाली को समाप्त कर योग्यता-आधारित प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की शुरुआत की।
    • उन्होंने सामान्य अकादमिक शिक्षा पर बल दिया एवं ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातकों को प्राथमिकता दी।
    • सामाजिक सुधार: मैकाले ने प्रेस की स्वतंत्रता, दासता के उन्मूलन, मुक्त व्यापार, लोगों की मुक्त आवाजाही और महिलाओं के संपत्ति अधिकारों का समर्थन किया।

भारत में औपनिवेशिक मानसिकता के प्रमुख पहलू

  • हीन भावना उत्पन्न करना: मैकाले की नीति ने भारत के हजारों वर्षों के स्वदेशी विज्ञान, कला और दर्शन को अस्वीकार कर दिया। इससे भारत के लोगों के आत्मविश्वास को गहरा धक्का लगा और भारतीयों में "हीन भावना" उत्पन्न हुई।
  • भाषा: न्यायालयों और विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी के उपयोग को प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता था, यह कभी-कभी गैर-अंग्रेजी भाषी व्यक्तियों के लिए अवसरों को सीमित कर देता था।
    • उदाहरण: पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि "अपने कानूनी अवतार में अंग्रेजी भाषा 99.9% नागरिकों की समझ से बाहर है।"
  • संस्कृति: औपनिवेशिक शासन ने पश्चिमी पहनावे, भोजन, कला, शिष्टाचार और मूल्यों को भारत पर थोपा, प्रायः भारतीय ज्ञान प्रणालियों को निम्न दर्जे का बताया गया।
    • उदाहरण: कॉर्पोरेट क्षेत्र में पश्चिमी ड्रेस कोड को व्यावसायिकता का मानक माना जाता है।
  • कानून और संस्थान: कई औपनिवेशिक कानून, जैसे कि भारतीय दंड संहिता (IPC), वन कानून, राजद्रोह कानून आदि, सेवा के बजाय 'नियंत्रण' स्थापित करने की मानसिकता पर आधारित थे।
  • आर्थिक प्रणाली: विदेशी आर्थिक मॉडल और निजी पूंजी पर अत्यधिक बल देने के कारण जनसंख्या के एक बड़े हिस्से में निर्धनता बढ़ी।
  • ज्ञान प्रणालियां: अनुसंधान और नवाचार के विदेशी तरीकों पर अधिक बल देने के कारण स्वदेशी ज्ञान प्रणालियां लुप्त हो गईं।
    • जैसे: आयुर्वेद और सिद्ध को "अवैज्ञानिक" करार दिया गया, जबकि पश्चिमी चिकित्सा को 'आधिकारिक चिकित्सा' का दर्जा दिया गया।

भारत पर औपनिवेशिक मानसिकता का प्रभाव

  • नौकरशाही का अत्यधिक हस्तक्षेप: भारत में आज भी लाइसेंस–परमिट वाली व्यवस्था देखने को मिलती है। राज्य का नियंत्रण बहुत अधिक है और नियमों में अनावश्यक हस्तक्षेप होता है। पुलिस व्यवस्था भी कई बार जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप करती है। प्रशासन अब भी आदेश और नियंत्रण की विचारधारा पर आधारित है। यह विचारधारा औपनिवेशिक शासन से चली आ रही है, जिसका उद्देश्य लोगों की मदद करना नहीं है, बल्कि उन पर नियंत्रण रखना है।
  • विदेशी प्रमाणीकरण की खोज: शिक्षा जगत, कॉर्पोरेट मानकों और नीति निर्माण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आज भी विदेशी प्रमाणीकरण या मान्यता को अधिक महत्व दिया जाता है।
  • रंगभेद: भारतीय समाज में गोरी त्वचा के प्रति गहरा आकर्षण आज भी कायम है। यह प्रत्यक्ष रूप से औपनिवेशिक काल के नस्लीय पदानुक्रम से जुड़ा हुआ है जहाँ गोरे रंग के लोगों को अधिक सामाजिक मान्यता दी जाती थी।
  • सामाजिक भेदभाव: उदाहरण के लिए, औपनिवेशिक काल में जनगणना के माध्यम से जातिगत रूढ़िवादिता को और मजबूत किया गया। ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज की पहचान को अपनी सुविधा के अनुसार वर्गों में बांट दिया। इससे जातिगत पहचान कठोर हो गई और सामाजिक विभाजन बढ़ा।

औपनिवेशिक मानसिकता से निपटने के लिए सांस्कृतिक आंदोलन

  • आर्य समाज (1875): स्वामी दयानंद सरस्वती ने "वेदों की ओर लौटो" के नारे के साथ इस आंदोलन की शुरुआत की। इसका उद्देश्य हिंदू धर्म को शुद्ध करना और पश्चिमी प्रभावों को दूर करना था।
  • रामकृष्ण मिशन: इसे 1897 में स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित किया था। इसने सभी धर्मों की एकता और सार्वभौमिक भावना पर बल दिया तथा भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं का प्रचार पश्चिमी देशों में किया।
  • स्वदेशी आंदोलन (1905–1908): इसके तहत पश्चिमी वस्तुओं और उनकी संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं के उपभोग के बहिष्कार पर बल दिया गया। साथ ही स्वदेशी वस्त्र, संगीत, कला और रंगमंच को प्रोत्साहित किया गया।
    • महात्मा गांधी ने 'स्वदेशी' को भारत के आर्थिक विकास के एक महत्वपूर्ण उपकरण बताया।
  • बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट: अवनींद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में संचालित, इस आंदोलन ने पश्चिमी 'अकादमिक यथार्थवाद' को अस्वीकार कर मुगल और पहाड़ी कला जैसी पारंपरिक भारतीय कला शैलियों को पुनर्जीवित किया।
  • राष्ट्रवादी इतिहासलेखन: राष्ट्रवादी इतिहासकार वे विद्वान हैं जिन्होंने राष्ट्रीय गौरव पर ध्यान केंद्रित करते हुए इतिहास लिखा। इसमें एम.जी. रानाडे, राधा कुमुद मुखर्जी और आर. सी. मजूमदार जैसे इतिहासकारों के नाम प्रमुख हैं।

औपनिवेशिक प्रभाव को समाप्त करने के लिए की गई पहलें

  • कानूनों को निरस्त करना: सरकार ने औपनिवेशिक काल के 1,500 से अधिक पुराने और अप्रचलित कानूनों को निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही, IPC,  CrPC और साक्ष्य अधिनियम को भारतीय न्याय संहिता (BNS)भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) से बदल दिया गया है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मातृभाषा (भारतीय भाषाओं) में शिक्षण को बढ़ावा देती है।
  • प्रतीकात्मक और नामकरण परिवर्तन: नई दिल्ली में 'राजपथ' का नाम बदलकर "कर्तव्य पथ" किया गया। इसी प्रकार 'रेस कोर्स रोड' का नाम बदलकर 'लोक कल्याण मार्ग' (2016) कर दिया गया।
  • पारंपरिक ज्ञान का पुनरुद्धार और संस्थागतकरण: जामनगर, गुजरात में WHO ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (GCTM) (2022) की स्थापना की गई।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ सहयोग: भारत, विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से दिसंबर 2025 में नई दिल्ली में पारंपरिक चिकित्सा पर दूसरे WHO वैश्विक शिखर सम्मेलन की सह-मेजबानी करने के लिए तैयार है।
  • नौसेना का नया ध्वज: भारतीय नौसेना के एक नए ध्वज का अनावरण किया गया, जिससे 'सेंट जॉर्ज क्रॉस' को हटा दिया गया है।
  • बजटीय परिवर्तन: 2017 में रेल बजट को वार्षिक केंद्रीय बजट में मिला दिया गया, जिससे 92 वर्ष पुरानी ब्रिटिश काल की परंपरा समाप्त हो गई।
  • सांस्कृतिक गौरव की पुष्टि: कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में 'बिप्लोबी भारत गैलरी' का उद्घाटन किया गया, जो स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के योगदान को प्रदर्शित करने के लिए समर्पित है।

आगे की राह

  • प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तुत 'पंच प्राण' का पालन: इसमें एक विकसित भारत का संकल्प; औपनिवेशिक मानसिकता के किसी भी अंश को मिटाना; अपनी विरासत पर गर्व करना; भारत की एकता की शक्ति; और ईमानदारी के साथ नागरिकों के कर्तव्यों को पूरा करना शामिल है।
  • संज्ञानात्मक वि-औपनिवेशीकरण: राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने, स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों का पुनरुद्धार जैसे नीतिगत कदम उठाए जाने चाहिए।
  • व्यवहारगत और आर्थिक परिवर्तन: आत्मनिर्भर नवाचार, संधारणीय जीवन शैली और समुदाय-केंद्रित विकास की ओर बदलाव का समर्थन करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: 'मिशन लाइफ' के माध्यम से पारंपरिक संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • सांस्कृतिक पुनरुद्धार: स्वदेशी त्योहारों और शिल्पों का पुनरुद्धार, जैसे कि 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस'।
  • मुक्तिदायक चिंतन के बहुआयामी रूपों को बढ़ावा देना: 'वैचारिक वि-संपर्क' (Epistemic de-linking) और 'वैचारिक पुनर्निर्माण (Epistemic Reconstruction)' के ऐसे स्वरूप को विकसित करने की जरूरत है जो बहुलतावादी विचार को स्वीकार करके पश्चिमी ज्ञान प्रणालियों के प्रभुत्व को चुनौती दें।
  • उत्तरदायित्व के साथ गौरव और विरासत की पुनर्स्थापना: संवैधानिक मूल्यों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय के अनुरूप अपनी विरासत को पुनर्स्थापित करना चाहिए।

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ज्ञान, शिक्षा और सोच के तरीकों से औपनिवेशिक प्रभावों को हटाना। इसमें स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को बढ़ावा देना और पश्चिमी विचारों के प्रभुत्व को चुनौती देना शामिल है।

पंच प्राण

प्रधानमंत्री द्वारा आह्वान किए गए पाँच संकल्प, जिनमें विकसित भारत का संकल्प, औपनिवेशिक मानसिकता का उन्मूलन, विरासत पर गर्व, भारत की एकता और नागरिकों के कर्तव्यों का पालन शामिल हैं।

सेंट जॉर्ज क्रॉस

एक ऐतिहासिक ध्वज प्रतीक जिसका संबंध ब्रिटिश नौसेना से था। भारतीय नौसेना के नए ध्वज से इसे हटाना औपनिवेशिक प्रतीकों से मुक्ति का प्रतीक है।

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