उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत मांगे गए 16वें राष्ट्रपति परामर्श में अपनी राय दी। खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत विधेयकों पर अनुमति देने में निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल पर कोई समय-सीमा लागू नहीं कर सकता।
- इससे पहले, अप्रैल 2025 में, उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 200 और 201 के तहत विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय की थी।
- अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को विधि या तथ्य से जुड़े व्यापक महत्व का प्रश्न उत्पन्न होने पर उच्चतम न्यायालय से राय लेने की शक्ति देता है।

उच्चतम न्यायालय की राय के अन्य मुख्य बिंदु
- ‘मानित अनुमति' (Deemed Assent) संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है: शीर्ष न्यायालय ने कहा कि न्यायालय यह मानकर नहीं चल सकता कि कोई विधेयक केवल न्यायालय द्वारा तय समय-सीमा के समाप्त होने के कारण ही स्वीकृत मान लिया जाए।
- ऐसा करना राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों का न्यायपालिका द्वारा अतिक्रमण होगा। साथ ही, यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत और संघीय ढांचे के प्रतिकूल है।
- राज्यपाल/राष्ट्रपति विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते: ऐसा करना संघवाद, विधायिका के कार्य और संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है।
- सीमित न्यायिक समीक्षा: यदि राज्यपाल या राष्ट्रपति दुर्भावनापूर्ण तरीके से कार्य करें तो न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
- न्यायिक समीक्षा केवल प्रक्रिया तक सीमित है, न कि निर्णय के सही या गलत के मामले में।
- जब राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है, तब राष्ट्रपति को प्रत्येक मामले में उच्चतम न्यायालय से परामर्श लेने की जरूरत नहीं है। इन मामलों में राष्ट्रपति की व्यक्तिपरक संतुष्टि पर्याप्त है।
उच्चतम न्यायालय के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग ने “कृत्रिम बुद्धिमत्ता और न्यायपालिका पर श्वेत पत्र (White Paper)” जारी किया
यह श्वेत पत्र न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के सुरक्षित उपयोग की समीक्षा करता है; नैतिकता संबंधी प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित करता है; सिफारिशें प्रदान करता है; तथा AI संबंधी उभरते जोखिमों को दर्शाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय केस अध्ययनों का उपयोग करता है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- AI के जोखिम और नैतिकता संबंधी चुनौतियां
- अत्यधिक निर्भरता और मानवीय विवेक का ह्रास: यह न्यायिक विवेक को कमजोर कर सकता है। AI मॉडल्स की अपारदर्शी प्रकृति जवाबदेही को कम कर सकती है।
- मतिभ्रम और मनगढ़ंत कंटेंट: यह झूठी जानकारी या गैर-मौजूद उद्धरण उत्पन्न कर सकता है।
- उदाहरण के लिए: “रॉबर्टो मैटा बनाम एविएंका और कूमर बनाम लिंडेल” जैसे अमेरिकी मामले।
- एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह: उदाहरण के लिए: संयुक्त राज्य अमेरिका का COMPAS टूल, जिसे स्टेट बनाम लूमिस मामले में चुनौती दी गई थी। इस टूल में संभावित नृजातीय पूर्वाग्रह देखा गया था।
- अन्य: डीपफेक और साक्ष्य में हेरफेर; गोपनीयता एवं निजता संबंधी जोखिम; बौद्धिक संपदा संबंधी चिंताएं आदि।

मुख्य सिफारिशें
- AI नैतिकता समितियां बनाना: AI टूल्स की समीक्षा करने और उनके उपयोग संबंधी मानक निर्धारित करने के लिए अदालतों को तकनीकी एवं कानूनी विशेषज्ञों से युक्त सक्षम निकाय स्थापित करने चाहिए।
- सुरक्षित आंतरिक (In-House) AI प्रणालियों को प्राथमिकता देना: आंतरिक उपकरण विकसित करने से गोपनीयता, सुरक्षा और डेटा-प्रकटीकरण संबंधी जोखिम कम होते हैं।
- औपचारिक नैतिक AI नीति अपनाना: एक ऐसा स्पष्ट फ्रेमवर्क विकसित करना चाहिए, जो अधिकृत उपयोगों, जिम्मेदारियों और जवाबदेही तंत्रों को परिभाषित करे।
- अन्य: प्रकटीकरण और ऑडिट ट्रेल्स को अनिवार्य करना चाहिए, व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए आदि।
Article Sources
1 sourceभारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान एवं योजना केंद्र ने ‘भारत में कारागार 2025’ रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में जेल नियमावलियों, रूढ़ियों, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, मजदूरी और तकनीकी सुधारों की समीक्षा की गई है। साथ ही, रिपोर्ट में जेल प्रशासन द्वारा कैदियों के प्रति मानवाधिकार-आधारित दृष्टिकोण रखने का सुझाव भी दिया गया है।
भारतीय जेलों से संबंधित मुख्य चिंताएं
- जेल-प्रशासन: ‘जेल (कारागार)’ भारत के संविधान में सातवीं अनुसूची की सूची- II अर्थात राज्य सूची का विषय है। जाहिर है जेल प्रशासन से जुड़े विषय पर राज्य विधायिका को विधि बनाने का अधिकार है। इसलिए अलग-अलग राज्यों में जेल-प्रशासन का ढांचा अलग-अलग है।
- भारत “कैदियों के साथ व्यवहार के लिए संयुक्त-राष्ट्र मानक न्यूनतम नियमावली” का अनुपालन करता है। इस नियमावली को ‘नेल्सन मंडेला नियमावली’ (The Nelson Mandela Rules) भी कहा जाता है। यह नियमावली जेल संस्थानों को मानवीय दृष्टिकोण से देखने का समर्थन करता है।
- जेलों में क्षमता से अधिक कैदी: भारत में जेल अधिभोग दर (Occupancy Rate) 131.4% है। इसका तात्पर्य है कि भारत की जेलों में आधिकारिक क्षमता से 31.4% अधिक कैदी रह रहे हैं। प्रत्येक 4 में से 3 कैदी विचाराधीन हैं।
- खुली जेलों का कम उपयोग होता है, जिनमें अधिभोग दर 74% है।
- रूढ़िवादी सोच : कई जेल नियमावलियां जेल में सफ़ाई और स्वच्छता से संबंधित कार्यों को ‘तुच्छ’ (menial) या ‘अपमानजनक प्रकृति का कार्य’ मानती हैं। यह सोच समाज में निहित भेदभाव आधारित श्रम-विभाजन को बढ़ावा देती है।
- जाति के आधार पर भेदभाव: कुछ जेल नियमावलियों में जाति के आधार पर जेल में कार्य विभाजन के नियम अभी भी विद्यमान हैं।
- यह प्रावधान सुकन्या शांथा मामले में असंवैधानिक घोषित किया गया है।
- मजदूरी में अंतर: कैदियों को उनके श्रम के बदले मिजोरम में 20 रुपये मिलते हैं तो कर्नाटक में 524 रुपये मिलते हैं। इस तरह मजदूरी में अधिक अंतर मौजूद है।
- मिजोरम में कैदियों को मिलने वाली मजदूरी न्यूनतम मजदूरी से भी बहुत कम है।
- महिला कैदी: जेल नियमावलियों में प्रजनन विकल्प (Reproductive choice) के अधिकारों को स्पष्ट नहीं किया गया है। महिला कैदियों को खाना पकाने जैसे अधिकांश घरेलू कार्यों तक ही सीमित रखा गया है। इससे उन्हें ‘कार्य के समान अवसर’ से वंचित रखा गया है।
- विधिक सहायता अधिक प्रभावी नहीं होना: जेलों में भौतिक और डिजिटल अवसंरचनाओं की कमी है। इस वजह से कैदी, सरकार द्वारा संचालित कई विधिक सहायताओं का समुचित उपयोग नहीं कर पाते हैं।

Article Sources
1 sourceपंचायती राज मंत्रालय ने शिक्षा मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय के सहयोग से MYGS पहल की शुरुआत की।
MYGS के बारे में
- यह 'जनभागीदारी' को मजबूत करने और विद्यार्थियों को प्रतिरूपित ग्राम सभा सत्रों (Simulated Gram Sabha Sessions) में सम्मिलित करके सहभागी स्थानीय शासन को प्रोत्साहित करने वाली एक अग्रणी पहल है।

- यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है और इसे जवाहर नवोदय विद्यालयों (JNVs), एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRSs) और राज्य सरकार के विद्यालयों में लागू किया जाएगा।
- JNVs वे आवासीय विद्यालय हैं जो NEP 1986 के अंतर्गत ग्रामीण बच्चों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना शिक्षा प्रदान करने के लिए स्थापित किए गए थे।
- EMRSs का उद्देश्य उन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति (ST) के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है, जहां 50% से अधिक ST जनसंख्या और कम से कम 20,000 जनजातीय व्यक्ति हों।