सुर्खियों में क्यों?
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने संपूर्ण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के चरण-III को लागू किया है। इससे भारत में शहरी वायु प्रदूषण का मुद्दा पुनः चर्चा में आ गया है।
ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के बारे में
- यह दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के औसत स्तर पर आधारित एक आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली है। इसे वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा लागू किया जाता है।
- इसे पहली बार एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ वाद में उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के तहत तैयार किया गया था।

- AQI स्तर के आधार पर इसके चार चरण हैं:
- चरण 1: खराब श्रेणी (AQI 201 से 300);
- चरण 2: बहुत खराब श्रेणी (AQI 301 से 400);
- चरण 3: गंभीर श्रेणी (AQI 401 से 450); तथा
- चरण 4: अति गंभीर श्रेणी (AQI 451 से अधिक)।
भारत में शहरी वायु प्रदूषण के कारण
- मौसम संबंधी कारक:
- विशेषकर दिल्ली जैसे शहरों में शीत ऋतु में तापमान व्युत्क्रमण और निम्न पवन गति जैसी परिस्थितियां प्रदूषकों को भूमि के समीप फंसा देती हैं और उनके प्रसार को रोकती हैं।
- मानसून पूर्व अवधि में थार मरुस्थल और मध्य-पूर्व से धूल का परिवहन उत्तरी भारत के शहरों (जैसे दिल्ली) को प्रभावित करता है।
- शहरी और औद्योगिक कारक: सीमेंट, इस्पात, रिफाइनरी, ईंट-भट्टों जैसे उद्योगों से होने वाला प्रदूषण (जैसे मुंबई के चेंबूर क्षेत्र में स्थित रिफाइनरी और रासायनिक उद्योग), वाहनों से उत्पन्न प्रदूषण (दिल्ली में 2005 के बाद से वाहनों की संख्या दोगुनी हो चुकी है), निर्माण और विध्वंस गतिविधियाँ (जैसे गुरुग्राम की गोल्फ कोर्स रोड के आसपास तेज़ी से हो रहा निर्माण कार्य) आदि।
- शहरी संरचना: ऊंची इमारतों के साथ संकरी सड़कें (स्ट्रीट-कैन्यन प्रभाव) प्रदूषकों को फंसा लेती हैं; अनियोजित शहरी विस्तार के कारण हरित/नीले क्षेत्रों (ग्रीन/ब्लू स्पेस) में कमी आने से प्राकृतिक निस्पंदन की क्षमता घट जाती है आदि।
- सीमा पार प्रदूषण: पड़ोसी राज्यों में मौसमी पराली जलाने के कारण दिल्ली में प्रदूषण; उत्तर भारत से एरोसोल्स के परिवहन के कारण चेन्नई में वायु गुणवत्ता का बिगड़ना आदि।
- अन्य स्रोत: भू-स्तरीय ओजोन (इसका निर्माण तब होता है जब NOx और VOCs तेज धूप में अभिक्रिया करते हैं); त्योहारों के दौरान पटाखों का जलना; खुले में अपशिष्ट जलाना, लैंडफिल स्थलों पर बार-बार आग लगना (जैसे दिल्ली, गाजियाबाद, भलस्वा–गाजीपुर लैंडफिल) आदि।
वायु प्रदूषण का प्रभाव
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: हृदयवाहिका रोग, श्वसन संक्रमण, आँखों में जलन आदि।
- उदाहरण के लिए, वर्ष 2023 में दिल्ली में होने वाली कुल मौतों में से लगभग 15% का संबंध वायु प्रदूषण से पाया गया था (सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर)।
- पर्यावरणीय प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन: ब्लैक कार्बन और भू-स्तरीय ओजोन जैसे प्रदूषक वैश्विक तापन में योगदान करते हैं।
- अम्लीय वर्षा: SO₂ और NOx के उत्सर्जन जलवाष्प के साथ अभिक्रिया कर अम्लों का निर्माण करते हैं। इससे मृदा, फसलों, वनों, स्मारकों और जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों को नुकसान पहुंचता है।
- उदाहरण के लिए, ताजमहल की सतह पर पीलापन और सतही संक्षारण।
- आर्थिक क्षति: वायु प्रदूषण के कारण भारत को 2022 में अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 9.5% के बराबर आर्थिक उत्पादन का नुकसान हुआ (द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज रिपोर्ट, 2025)।
- सामाजिक प्रभाव:
- खराब दृश्यता, स्कूलों और कार्यालयों के बंद होने के कारण जीवन की गुणवत्ता में कमी।
- बच्चों, बुजुर्ग और गरीबों जैसे संवेदनशील वर्गों पर असमान रूप से अधिक प्रभाव।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदम
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): इसका लक्ष्य 2026 तक 131 शहरों में कणिकीय पदार्थों की सांद्रता को 40% तक कम करना है।
- ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP): दिल्ली–राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए लागू किया जाने वाला आपातकालीन उपाय।
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM), 2021: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में वायु गुणवत्ता प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए स्थापित सांविधिक निकाय।
- वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के नियंत्रण हेतु उपाय
- BS-VI ईंधन और वाहन मानकों को अपनाना (2020 से पूरे देश में लागू)।
- 20% इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (E-20) की ओर संक्रमण।
- RFID प्रणाली के माध्यम से टोल संग्रह तथा दिल्ली में प्रवेश करने वाले वाणिज्यिक वाहनों पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क।
- प्रधानमंत्री ई-ड्राइव योजना (PM E-DRIVE) और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम 2024 (EMPS 2024) के तहत विद्युत गतिशीलता को बढ़ावा।
- संपीड़ित बायो-गैस (Compressed Bio-Gas–CBG) पारितंत्र के निर्माण के लिए सतत (SATAT) पहल।
- वायु गुणवत्ता निगरानी एवं डेटा प्रणालियां
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI): 2015 में लॉन्च किया गया (इन्फोग्राफिक देखें)।
- दिल्ली–एनसीआर क्षेत्र में रेड श्रेणी की वायु प्रदूषणकारी उद्योगों में ऑनलाइन सतत उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (Online Continuous Emission Monitoring System - OCEMS) की स्थापना।
- वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली (SAFAR) पोर्टल वायु गुणवत्ता से संबंधित अद्यतन जानकारी प्रदान करता है।
- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) एवं निर्माण कार्य से उत्सर्जित धूल नियंत्रण हेतु किए गए उपाय
- निर्माण एवं विध्वंस (C&D) अपशिष्ट प्रबंधन और धूल नियंत्रण के लिए दिशानिर्देश (2017)।
- लैंडफिल में आग की घटनाओं को रोकने के लिए पुराने जमा अपशिष्ट (Legacy Waste) की बायोमाइनिंग और जैवोपचार।
- दिल्ली और एनसीआर में संचालित सभी ईंट-भट्टों को जिग-जैग तकनीक में परिवर्तित करना।

भारत में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में विद्यमान चुनौतियां
नीति एवं शासन संबंधी चुनौतियां
- सीमा पार प्रदूषण: शहरी प्रदूषण का लगभग 30% हिस्सा शहर की सीमाओं के बाहर से आता है। वहीं, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के अंतर्गत शहर-स्तरीय कार्य-योजनाएं पृथक रूप से (समन्वय के बिना) कार्य करती हैं।
- प्रतिक्रियात्मक उपाय: निरंतर और दीर्घकालिक प्रदूषण नियंत्रण के बजाय GRAP, स्मॉग टावर जैसे संकट-कालीन और अस्थायी उपायों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना।
- खंडित शासन व्यवस्था: अलग-अलग जिम्मेदारियों और बजटीय संसाधनों वाली अनेक एजेंसियों (केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, एनसीआर की कई राज्य सरकारें, CPCB) की भागीदारी।
- कमजोर प्रवर्तन: लगातार पराली जलाना; अनियंत्रित निर्माण गतिविधियां; पुराने और प्रदूषणकारी औद्योगिक बॉयलर आदि।
प्रदूषक | WHO दिशानिर्देश (2021) | भारत (NAAQS) |
PM2.5 | 5 µg/m³ | 40 µg/m³ |
PM10 | 15 µg/m³ | 60 µg/m³ |
NO2 | 10 µg/m³ | 40 µg/m³ |
- निगरानी एवं डेटा संबंधी सीमाएं
- विरल निगरानी नेटवर्क: कई छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में PM2.5/PM10 की निगरानी व्यवस्था का अभाव है।
- शिथिल राष्ट्रीय मानक: भारत के वायु प्रदूषण मानक, WHO द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों की तुलना में कम कठोर हैं।
- अन्य चुनौतियां:
- चीन (जैसे शेनझेन) की भांति पूर्णतः इलेक्ट्रिक बस सेवा की तुलना में सार्वजनिक परिवहन में ई.वी. का धीमा प्रसार।
- बढ़ती ऊर्जा मांग के कारण कोयला-आधारित ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भरता।
- PM2.5/PM10 के संपर्क से होने वाले दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों के प्रति जन उदासीनता और सीमित जागरूकता।
- छोटे ईंट-भट्टों और रंगाई इकाइयों जैसे MSMEs के पास प्रदूषण-नियंत्रण उपकरण लगाने के लिए पर्याप्त धन की कमी होती है।
आगे की राह
- पराली दहन को कम करने हेतु संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशें:
- किसानों द्वारा पराली बेचने पर सुनिश्चित आय देने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी मूल्य प्रणाली लागू करना।
- बेहतर नियोजन के लिए फसल क्षेत्रफल का रियल-टाइम मानचित्रण और फसल परिपक्वता का पूर्वानुमान, ताकि जिलेवार फसल उत्पादन का आकलन किया जा सके।
- कृषि अवशेषों को जैव-ऊर्जा उत्पादन में एकीकृत करने हेतु एकीकृत राष्ट्रीय नीति।
- शासन एवं संस्थागत उपाय
- कानूनी एवं संस्थागत ढाँचे को सुदृढ़ करना: NCAP को सांविधिक आधार देना और प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को कड़े प्रवर्तन हेतु सशक्त बनाना।
- अंतर-राज्यीय एवं क्षेत्रीय समन्वय: पराली दहन, परिवहन और औद्योगिक उत्सर्जन पर समन्वित कार्रवाई के लिए एयरशेड-आधारित योजना अपनाना।
- अंतर्राष्ट्रीय सीमा-पार प्रदूषण ढांचों के मॉडल पर क्षेत्रीय स्वच्छ-वायु परिषदों की स्थापना करना।
- दीर्घकालिक योजना: GRAP जैसे उपायों को वर्षभर लागू रहने वाली, शहर-विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं में परिवर्तित करना।
- आर्थिक एवं वित्तीय उपाय
- प्रौद्योगिकी-आधारित वायु गुणवत्ता प्रबंधन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता या मशीन लर्निंग आधारित पूर्वानुमान प्रणालियों को अपनाना, ताकि प्रदूषण में संभावित वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया जा सके और वास्तविक समय में स्रोतों की पहचान कर प्रतिक्रियात्मक के बजाय निवारक कार्रवाई की जा सके।
- स्थिर एवं पर्याप्त वित्तपोषण सुनिश्चित करना: पूर्वानुमेय बजटीय आवंटन बढ़ाना और ग्रीन बॉन्ड तथा प्रदूषण कर जैसे नवाचारी वित्तीय साधनों को अपनाना।
- स्वच्छ प्रौद्योगिकी निवेशों को जोखिम-मुक्त करना: नवीकरणीय ऊर्जा और ई.वी. क्षेत्रों में जोखिम-साझेदारी को समर्थन देना तथा निवेश जोखिम घटाने के लिए डिस्कॉम (DISCOM) वित्त में सुधार करना।
सर्वोत्तम प्रथाएं
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निष्कर्ष
भारत की स्वच्छ वायु की यात्रा के लिए अल्पकालिक समाधानों से आगे बढ़कर दीर्घकालिक, प्रौद्योगिकी-आधारित और सुव्यवस्थित समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है। सभी के लिए संधारणीय और स्वस्थ वायु सुनिश्चित करने हेतु बहु-क्षेत्रीय तथा डेटा-आधारित दृष्टिकोण अनिवार्य है।