सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र (UN) ने यूएन80 इनिशिएटिव एक्शन प्लान प्रस्तुत किया है। यह संपूर्ण प्रणाली में सुधारों को लागू करने के लिए एक समन्वित रोडमैप है।
यूएन80 इनिशिएटिव एक्शन प्लान के बारे में
- यह एक महत्वाकांक्षी, संपूर्ण प्रणाली सुधार प्रयास है। इसे मार्च 2025 में संयुक्त राष्ट्र (UN) की 80वीं वर्षगांठ मनाने के लिए शुरू किया गया था।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य विशेष रूप से घटते संसाधनों के वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र को अधिक सक्रिय, एकीकृत, कुशल और प्रभावशाली बनाना है।
- इसकी तीन मुख्य कार्य धाराएं हैं:
- संयुक्त राष्ट्र के कार्य करने के तरीकों में दक्षता और सुधारों की पहचान करना;
- सदस्य देशों से प्राप्त अधिदेशों के कार्यान्वयन की समीक्षा करना; तथा
- संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में संभावित संरचनात्मक परिवर्तनों और कार्यक्रमों के पुनर्गठन का परीक्षण करना।
- निर्धारित समय-सीमा: नवंबर 2025 से दिसंबर 2026 तक।
- प्रमुख सुधार क्षेत्र (कार्य पैकेज):
- शांति और सुरक्षा: शांति अभियानों के लिए नए मॉडल्स अपनाना, जो कार्यों को अधिक दक्षता से निर्धारित करेंगे।
- मानवीय प्रतिक्रिया: सरल आपातकालीन योजनाओं और एकीकृत आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए एक "नया मानवतावादी समझौता" संपन्न करना।
- विकास प्रणाली: लागत-प्रभावशीलता के लिए यूएन कंट्री टीम्स (UNCTs) और क्षेत्रीय संरचनाओं का पुनर्गठन करना।
- संस्थागत विलय: अधिक सामंजस्य और बचत के लिए एक जैसा कार्य करने वाली संस्थाओं के संभावित विलय का आकलन करना।
- उदाहरण के लिए: UNDP (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) और UNOPS (संयुक्त राष्ट्र परियोजना सेवा कार्यालय)।
- परिचालनात्मक सक्षमकर्ता (Operational Enablers): साझा डेटा, साझा प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म्स, एकीकृत आपूर्ति श्रृंखलाएं और सरलीकृत प्रशिक्षण प्रणाली।
संयुक्त राष्ट्र सुधारों की आवश्यकता
संरचनात्मक चुनौतियां:
- अप्रासंगिक प्रतिनिधित्व: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की भू-राजनीति को दर्शाती है, न कि 21वीं सदी की वास्तविकताओं को। इसमें भारत जैसे देशों के लिए कोई स्थायी सीट नहीं है, जो संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक है।
- विश्वसनीयता और वैश्विक विश्वास की कमी: लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों पर गतिरोध, मानवाधिकारों का चयनात्मक प्रवर्तन तथा राष्ट्रों के बीच असमान व्यवहार के बोध ने संयुक्त राष्ट्र राष्ट्र की प्राधिकरण क्षमता पर विश्वास को कमजोर किया है।
- उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष जैसे मामलों में वीटो पावर के कारण सुरक्षा परिषद में उत्पन्न गतिरोध।
- शासन संबंधी चुनौतियां:
- नई वैश्विक चुनौतियां: साइबर सुरक्षा, AI संबंधी नैतिकता जैसे नए मुद्दों पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने के लिए संयुक्त राष्ट्र के पास विशेष निकायों और पर्याप्त संसाधनों की कमी है।
- अधिदेशों की अधिकता: 40,000 से अधिक अधिदेश संयुक्त राष्ट्र प्रणाली पर अत्यधिक दबाव डालते हैं। इससे कार्यों का दोहराव होता है और संसाधनों का अकुशल उपयोग होता है।
- संस्थागत चुनौतियां:
- संसाधनों की कमी: वर्ष 2024 की तुलना में वर्ष 2026 में प्रणालीगत संसाधनों के 25% तक कम होने ($66 बिलियन से $50 बिलियन) का अनुमान है।
- संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का लगभग 80% वित्त-पोषण स्वैच्छिक योगदान से आता है।
- पुरानी प्रणालियां: खराब डिजिटल ट्रैकिंग और मैन्युअल प्रक्रियाएं अधिदेश प्रबंधन की गति को धीमा कर देती हैं।
- संस्थागत विखंडन: कई इकाइयां एक ही विषयगत क्षेत्र में कार्य करती हैं। इससे सदस्य देशों और भागीदारों के लिए लेन-देन की लागत बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिए, यूएन वीमेन (UN-Women) और UNFPA (संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष) के कार्यों में ओवरलैपिंग (एक जैसा काम) होना।
- महत्वाकांक्षा और संसाधनों के बीच असंतुलन: सदस्य देश संयुक्त राष्ट्र को उसकी क्षमता या उपलब्ध निधियों से कहीं अधिक कार्य सौंप देते हैं।

निष्कर्ष
यूएन80 के अंतर्गत परिकल्पित सुधार, बहुपक्षीय शासन व्यवस्था का आधुनिकीकरण करके, दक्षता में सुधार करके और लागत कम करके उभरते वैश्विक संकटों के प्रति प्रतिक्रिया देने की संयुक्त राष्ट्र की क्षमता को मजबूत करेंगे। साथ ही, ये सुधार संयुक्त राष्ट्र विकास प्रणाली को भी सुदृढ़ करेंगे। इससे सतत विकास लक्ष्यों को अधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त किया जा सकेगा।