विद्यालयों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित पाठ्यक्रम (CURRICULUM ON AI IN SCHOOLS) | Current Affairs | Vision IAS
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विद्यालयों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित पाठ्यक्रम (CURRICULUM ON AI IN SCHOOLS)

23 Dec 2025
1 min

In Summary

  • 2026-27 से शुरू होने वाले कक्षा 3 से विद्यालयों में एआई और सीटी पाठ्यक्रम को लागू किया जाएगा, जो एनईपी 2020 और एनसीएफ एसई 2023 के अनुरूप होगा।
  • शिक्षा में एआई (आरटीआई) कम्प्यूटेशनल थिंकिंग, मूलभूत कौशल, सुलभता, व्यक्तिगत शिक्षा और भविष्य की तैयारी को बढ़ा सकता है, लेकिन इसे 'अशिक्षा' और बुनियादी ढांचे की कमियों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • भारत में एआई कौशल को बढ़ावा देने के लिए SOAR, नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन एआई, स्किल इंडिया डिजिटल हब और YUVA AI फॉर ऑल जैसी पहलें मौजूद हैं।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों?

शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग (DoSE&L) द्वारा शैक्षणिक सत्र 2026-27 से सभी स्कूलों में कक्षा 3 से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और कम्प्यूटेशनल थिंकिंग (CT) पर पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा।

स्कूलों में AI और CT पाठ्यक्रम के बारे में

  • यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के अनुरूप है और स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF-SE) 2023 के व्यापक दायरे के अंतर्गत शामिल है।
  • लक्ष्य: सीखने, सोचने और शिक्षण की अवधारणाओं को सुदृढ़ करना और धीरे-धीरे "सार्वजनिक हित के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता की संकल्पना की ओर विस्तार करना।
  • पाठ्यक्रम विकास: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा AI एवं CT पाठ्यक्रम विकसित करने हेतु एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है।
  • कार्यान्वयन: निष्ठा (NISHTHA) प्लेटफॉर्म के माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षण-अधिगम सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी।

शिक्षा में AI और CT की क्या भूमिका हो सकती है?

  • कम्प्यूटेशनल थिंकिंग (CT) का विकास:  यह एक समस्या-समाधान दृष्टिकोण है, जिसमें किसी जटिल समस्या को समझकर ऐसे संभावित समाधान विकसित किए जाते हैं जिन्हें कंप्यूटर द्वारा निष्पादित किया जा सकता है।
    • इसकी चार प्रमुख विधियां हैं- 
      • डीकंपोजिशन (जटिल समस्या को छोटे भागों में विभाजित करना), 
      • पैटर्न रिकग्निशन (प्रतिरूप की पहचान करना), 
      • एब्स्ट्रैक्शन (महत्वपूर्ण सूचनाओं पर ध्यान केंद्रित करना), और 
      • एल्गोरिदम (समस्या का चरण-दर-चरण समाधान विकसित करना)।
  • आधारभूत कौशलों का विकास: कम आयु में AI का परिचय आलोचनात्मक चिंतन, तार्किक विवेचन तथा नैतिक चेतना के विकास में सहायक होता है। छात्र तकनीक को समझना और उस पर सवाल उठाना सीखते हैं, जिससे ऐसे मेटा-कौशल विकसित होते हैं जो डिजिटल युग में साक्षरता और संख्यात्मकता जितने ही महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।
  • पहुंच और समावेशन को बढ़ावा देना: AI की मदद से अधिगम की प्रणालियों को विविध आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला जा सकता है। यह कार्य विशेष रूप से दिव्यांग और विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के लिए किया जा सकता है।
    • यूनिसेफ (UNICEF) की 'एक्सेसिबल डिजिटल टेक्स्टबुक्स' पहल AI का उपयोग करके अनुकूलन योग्य डिजिटल शैक्षिक उपकरण बनाती है, जो अलग-अलग अधिगम की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
  • बुनियादी साक्षरता और सीखने के परिणामों में सुधार: उदाहरण के लिए, ब्राजील में 'लेट्रस' कार्यक्रम के तहत AI-संचालित फीडबैक तंत्र का उपयोग करके सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को दूर करते हुए साक्षरता परिणामों में सुधार किया जा रहा है।
  • व्यक्तिगत शिक्षण एवं मार्गदर्शन: AI के माध्यम से विद्यार्थियों की क्षमताओं और सीखने की-गति के अनुसार व्यक्तिगत अध्ययन पथ तैयार किए जा सकते हैं, जिससे गहन संलग्नता और प्रभावी अभ्यास संभव हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए, दक्षिण कोरिया का शिक्षा मंत्रालय विद्यार्थियों की दक्षता स्तर के अनुरूप समायोजित AI-संचालित डिजिटल पाठ्यपुस्तकें विकसित कर रहा है, जिससे व्यक्तिगत शिक्षण संभव हो सके और निजी कोचिंग पर निर्भरता कम हो।
  • भविष्य की तैयारी: स्वचालन के कारण उद्योगों में व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं। ऐसे में AI पाठ्यक्रम यह सुनिश्चित करता है कि अगली पीढ़ी तेजी से बदलते रोजगार बाजार के अनुरूप कुशल एवं सक्षम बने।
    • विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, सभी नौकरियों में आवश्यक मुख्य कौशल का लगभग 40% अगले पांच वर्षों में बदल जाएगा।

शिक्षा में AI और CT के कार्यान्वयन की चुनौतियां

  • ज्ञान के अंतर-पीढ़ीगत हस्तांतरण में बाधा: यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि यदि मशीनें त्वरित उत्तर उपलब्ध कराने लगेंगी, तो धीरे-धीरे सीखने की प्रेरणा कम हो सकती है, जिससे पीढ़ियों के बीच ज्ञान के हस्तांतरण की प्रक्रिया कमजोर पद सकती है।
  • शिक्षकों का कौशल उन्नयन: देश में एक करोड़ से अधिक बड़ा शिक्षक-कार्यबल है। इनका प्रौद्योगिकी के साथ अनुभव भिन्न-भिन्न स्तर का है। अतः उनके लिए पुनः-कौशल (रीस्किलिंग) एवं उन्नत-कौशल (अपस्किलिंग) की व्यापक आवश्यकता है। 
  • स्थानीयकरण: अधिकांश AI मॉडल स्थानीय/ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं हैं, जिससे समावेशी क्रियान्वयन बाधित होता है।
  • अवसंरचना: भारत में लगभग 9% स्कूलों में केवल एक शिक्षक है, और कई स्कूलों में बिजली या कंप्यूटर जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
  • पाठ्यक्रम की परिवर्तनशीलता और प्रासंगिकता: तेजी से विकसित होती तकनीक के लिए एक स्थिर पाठ्यक्रम तैयार करना कठिन है।
    • उदाहरण के लिए, "प्रॉम्ट इंजीनियरिंग" जैसे विशिष्ट कौशल कुछ ही वर्षों में अप्रासंगिक या पुराने हो सकते हैं।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: छात्र अपनी बातें AI चैटबॉट्स के साथ साझा कर सकते हैं, जिससे भावनात्मक निर्भरता और निजता से संबंधित चिंताएं पैदा होती हैं।

भारत में वर्तमान पहलें

  • ''स्किलिंग फॉर AI रेडीनेस' (SOAR) पहल: यह पहल कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है। इस पहल के अंतर्गत हजारों CBSE विद्यालयों में कक्षा 6 से 12 तक कृत्रिम बुद्धिमत्ता को एक कौशल विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है।
  • शिक्षा के लिए AI में राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र: केंद्रीय बजट 2025-26 में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में उत्कृष्टता केंद्र की घोषणा की गई है। यह कदम शिक्षा में तकनीक को एकीकृत करने के NEP 2020 के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • स्किल इंडिया मिशन (SIM) में AI और डिजिटल लर्निंग का एकीकरण: भविष्य के लिए तैयार कार्यबल के निर्माण हेतु स्किल इंडिया मिशन के भीतर AI और डिजिटल लर्निंग कार्यक्रमों को शामिल किया गया है।
  • स्किल इंडिया डिजिटल हब (SIDH) प्लेटफॉर्म: यह कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के तहत कौशल विकास के लिए एक व्यापक डिजिटल प्लेटफॉर्म है। यह विभिन्न विशेषज्ञता स्तरों पर AI/ML और डिजिटल तकनीकों में उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रम उपलब्ध कराता है, साथ ही रोजगार और उद्यमिता के अवसर प्रदान कर भारतीय युवाओं को सशक्त बनाता है।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) 4.0: वर्ष 2015 में प्रारंभ की गई यह योजना अल्पकालिक प्रशिक्षण, कौशल उन्नयन तथा पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) पर केंद्रित है। इसमें AI जैसे भविष्यगत कौशलों को प्राथमिकता दी गई है।
  • युवा AI फॉर ऑल: इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा इंडिया AI मिशन के अंतर्गत प्रारंभ किया गया यह अपनी तरह का पहला निःशुल्क पाठ्यक्रम है, इसका उद्देश्य 10 मिलियन नागरिकों को AI के आधारभूत कौशलों से सशक्त बनाना है।

आगे की राह

  • पाठ्यक्रम का फोकस: कृत्रिम बुद्धिमत्ता में शिक्षा को 'द वर्ल्ड अराउंड अस' (TWAU) से संबद्ध एक मूलभूत सार्वभौमिक कौशल के रूप में देखा जाना चाहिए। पाठ्यक्रम व्यापक, समावेशी हो तथा विद्यालयी शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF-SE) 2023 के अनुरूप विकसित किया जाना चाहिए।
  • "अनप्लग्ड" दृष्टिकोण अपनाना: सीमित अवसंरचना वाले क्षेत्रों के लिए पाठ्यक्रम अनुकूलनीय होना चाहिए। इसमें डिजिटल उपकरणों के बजाय भौतिक वस्तुओं का उपयोग करके 'कम्प्यूटेशनल थिंकिंग लॉजिक' (जैसे एल्गोरिदम) सिखाने पर जोर दिया जाना चाहिए।
  • अंतर-विषयक एकीकरण: AI को गणित, विज्ञान आदि विषयों के साथ जोड़ा जा सकता है, जैसा कि उरुग्वे के 'सीबल कम्प्यूटेशनल थिंकिंग एंड इंटेलिजेंस' कार्यक्रम में किया गया है।
  • "AI उद्यमिता" और व्यावहारिक कौशल को बढ़ावा देना: उच्च कक्षाओं (कक्षा 9–12) के विद्यार्थियों के लिए साक्षरता से आगे बढ़कर कार्यबल-तैयारी और उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: पश्चिम अफ्रीका की 'कबाकू अकादमियां' AI के माध्यम से 24×7 मार्गदर्शन और असाइनमेंट पर प्रतिपुष्टि प्रदान करती हैं। इससे युवाओं को स्थानीय स्तर पर प्रासंगिक व्यवसाय विकसित करने में मदद मिलती है।
  • नैतिक और सुरक्षा प्रोटोकॉल स्थापित करना: जब बच्चे AI का उपयोग करते हैं, तो उनकी सुरक्षा आवश्यक रूप से सुनिश्चित की जानी चाहिए। नीति-निर्माताओं को यह तय करना चाहिए कि चैटबॉट के साथ कौन-सी जानकारी साझा की जा सकती है और कौन-सी नहीं।

निष्कर्ष

स्कूली शिक्षा में AI और कम्प्यूटेशनल थिंकिंग को शामिल करना भारत के बच्चों को तकनीक-संचालित लेकिन मानव-केंद्रित भविष्य के लिए तैयार करने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। समय के साथ, यह दृष्टिकोण तकनीकी सक्षमता का लोकतंत्रीकरण करने, भविष्य के कौशल अंतराल को कम करने और युवा शिक्षार्थियों को न केवल AI का उपयोग करने, बल्कि तेजी से बदलती दुनिया में समावेशी विकास और जन कल्याण के लिए इसे आकार देने में सक्षम बनाएगा।

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