RBI ने अपनी अर्ध-वार्षिक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) में भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को रेखांकित किया | Current Affairs | Vision IAS
News Today Logo

    RBI ने अपनी अर्ध-वार्षिक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) में भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को रेखांकित किया

    Posted 01 Jul 2025

    19 min read

    यह रिपोर्ट वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC) की उप-समिति द्वारा तैयार की जाती है। इसमें भारत की वित्तीय प्रणाली की मजबूती तथा इसके समक्ष मौजूद जोखिमों का सामूहिक आकलन प्रस्तुत किया जाता है।

    • वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC) की स्थापना 2010 में हुई थी। इसका अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री होता है। 
      • FSDC के सदस्यों में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA), भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) जैसी सभी मुख्य वित्तीय विनियामक संस्थाओं के प्रमुख शामिल होते हैं।  
    • इस संस्था का मुख्य उद्देश्य वित्तीय स्थिरता बनाए रखना और अलग-अलग विनियामक संस्थाओं के बीच समन्वय सुनिश्चित करना है। 

    RBI रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

    • भारत अभी भी वैश्विक संवृद्धि का संचालक:
      • भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती: 2025–26 में भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6.5% की वृद्धि का अनुमान है। मजबूत घरेलू मांग के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक संकटों से निपटने में मदद मिल रही है। 
      • मजबूत वित्तीय संस्थान: उदाहरण के लिए- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात और निवल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NNPA) अनुपात क्रमशः 2.3% व 0.5% है। ये अनुपात पिछले कई दशकों में सबसे कम हैं। 
        • 2025 तक, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का ‘जोखिम भारित परिसंपत्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (CRAR)’ 17.3% के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।
      • कॉर्पोरेट क्षेत्रक का मजबूत प्रदर्शन: कॉर्पोरेट क्षेत्रक के बड़े कर्जदाता समूह का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात सितंबर, 2023 के 3.8% से घटकर मार्च, 2025 में 1.9% हो गया। 
    • मुद्रास्फीति की स्थिति:
      • घरेलू मुद्रास्फीति: मई, 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति कम होकर 2.8% हो गई, जो पिछले 6 वर्षों का न्यूनतम स्तर है।
      • आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation): धीमी वैश्विक आर्थिक संवृद्धि की वजह से कमोडिटी और तेल की कीमतें कम हो सकती हैं। हालांकि, मध्य पूर्व में तनाव की वजह से इनकी कीमतों में कुछ उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है। 
    • वैश्विक मैक्रोफाइनेंशियल जोखिम:
      • देशों के बीच वैश्विक व्यापार में तनाव, जारी भू-राजनीतिक संघर्ष, बढ़ते वैश्विक सार्वजनिक ऋण और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में संभावित मंदी जैसे कारक उभरती अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित कर सकते हैं।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका की व्यापार और आर्थिक नीतियों में अनिश्चितता के कारण वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। इसके साथ ही, वित्तीय परिस्थितियां भी पहले की तुलना में अधिक कठोर होती जा रही हैं।
      • जलवायु परिवर्तन से जुड़ी परिघटनाओं की वजह से अवसंरचनाओं को नुकसान पहुंच सकता है। इससे व्यावसायिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं।

    वास्तव में, आर्थिक और व्यापार नीतियों की अनिश्चितताएं वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं वित्तीय प्रणाली की मजबूती की परीक्षा ले रही हैं।  

    वित्तीय क्षेत्रक के लिए शुरू की गई महत्वपूर्ण विनियामक पहलें

    वैश्विक पहलें:

    • बैंकिंग क्षेत्रक में: बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति द्वारा बैंकों के लिए बेसल III मानदंडों के प्रभाव का आकलन किया जाता है।
    • वित्तीय बाजार: अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (IOSCO) वैश्विक बाजार नियमों को मजबूत बनाने की दिशा में कार्य करता है।
    • साइबर सुरक्षा: वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) ने FIRE फ्रेमवर्क जारी किया है। यह फ्रेमवर्क व्यवसाय संचालन में और साइबर घटनाओं से निपटने में मदद करता है। इसमें थर्ड पार्टी सेवा-प्रदाताओं से जुड़ी घटनाओं को भी कवर किया जाता है।

    भारतीय पहलें:

    • अन्य देशों के साथ व्यापार के भुगतान में रुपये के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
    • संशोधित चल निधि कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio: LCR) नियमावली जारी की गई है।
    • डिजिटल लेंडिंग पर RBI ने नए दिशा-निर्देश, 2025 जारी किए हैं।
    • Tags :
    • PFRDA
    • IRDAI
    • वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR)
    • वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (FSDC)
    Watch News Today
    Subscribe for Premium Features