सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारत के प्रधान मंत्री ने "दलहन आत्मनिर्भरता मिशन" की शुरुआत की है।
दलहन आत्मनिर्भरता मिशन की प्रमुख विशेषताएं:

- उद्देश्य: दिसंबर 2027 तक घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना, आयात निर्भरता को कम करना और दलहन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
- अवधि: 6 वर्ष (2025-26 से 2030-31)।
- वित्तीय परिव्यय: 11,440 करोड़ रुपये।
- मंत्रालय: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार।
- लक्षित फसलें: तूर/ अरहर; उड़द, काला चना और मसूर (लाल मसूर)।
- क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण: प्रत्येक क्लस्टर की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप उपाय किए जाएंगे।
- लाभ: गारंटीकृत खरीद, गुणवत्तापूर्ण बीज वितरण और मजबूत मूल्य श्रृंखला आधारित समर्थन से 2 करोड़ किसानों को लाभ होगा।
- अन्य वांछित लाभ:
- जलवायु-अनुकूल और मृदा स्वास्थ्य के अनुकूल पद्धतियों को बढ़ावा देना।
- रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित करना।
- अंतर फसली कृषि और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना।
- परिचालन रणनीति
- बीज विकास एवं वितरण: 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीजों का उत्पादन और वितरण करना, तथा किसानों को 88 लाख बीज किट निःशुल्क उपलब्ध कराना।
- उच्च उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी और जलवायु-अनुकूल दलहन किस्मों के विकास एवं प्रसार पर बल दिया गया है।
- सुनिश्चित खरीद: चार वर्षों तक तूर, उड़द और मसूर की 100% खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर की जाएगी।
- राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India: NAFED) और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (National Cooperative Consumers' Federation of India Ltd.: NCCF) प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) की मूल्य समर्थन योजना (PSS) के अंतर्गत भागीदार राज्यों के किसानों से खरीद की जाएगी।
- बीज विकास एवं वितरण: 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीजों का उत्पादन और वितरण करना, तथा किसानों को 88 लाख बीज किट निःशुल्क उपलब्ध कराना।
- राज्यों की भूमिका: प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए राज्य पांच वर्षीय रोलिंग बीज उत्पादन योजनाएं तैयार करेंगे, जिसमें ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) द्वारा ब्रीडर बीज उत्पादन की निगरानी की जाएगी। साथ ही, साथी (SATHI) पोर्टल के माध्यम से गुणवत्ता आश्वासन बनाए रखा जाएगा।
- साथी/ SATHI (बीज प्रमाणीकरण, पता लगाने की क्षमता और समग्र सूची/ Seed Authentication, Traceability & Holistic Inventory) कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय तथा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) के सहयोग से विकसित एक उपयोगकर्ता-उन्मुख केंद्रीकृत पोर्टल है।
- फसल कटाई उपरांत मूल्य श्रृंखला: पूरे देश में 1,000 प्रसंस्करण और पैकेजिंग इकाइयों की स्थापना की जाएगी, जिन्हें प्रति इकाई ₹25 लाख तक की सब्सिडी प्रदान कर समर्थन दिया जाएगा।
भारत में दलहन उत्पादन की स्थिति
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दलहन में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता
- अपर्याप्त घरेलू उत्पादन: घरेलू उत्पादन मांग के अनुरूप नहीं बढ़ पाया है, जिसके कारण दालों के आयात में 15–20% की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2023–24 में भारत ने 47.38 लाख टन दालों का आयात किया, जबकि 5.94 लाख टन का निर्यात किया।
- कुपोषण का समाधान करना: भारतीय आहार में कुल प्रोटीन सेवन का लगभग 20-25% हिस्सा दलहन से आता है। हालांकि, भारतीय आहार में दालों की प्रति व्यक्ति खपत अनुशंसित 85 ग्राम प्रतिदिन से कम है।
- मांग में अनुमानित वृद्धि: कुल मांग बढ़कर 2030 तक 46.33 मिलियन टन (MT) और 2047 तक 50.26 MT होने का अनुमान है।
- पर्यावरणीय और मृदा स्वास्थ्य के लाभ: दलहन वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करने की क्षमता रखती हैं, जिससे मृदा की उर्वरता बढ़ती है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है।
- मूल्य एवं बाजार स्थिरीकरण: वैश्विक व्यापार और घरेलू उत्पादन में अस्थिरता के कारण दालों के मूल्य में उतार-चढ़ाव बना रहता है, जिससे मुद्रास्फीति लक्ष्यों को प्राप्त करने में चुनौती आती है।
दलहन उत्पादन को प्रोत्साहित करने की अन्य पहलें
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निष्कर्ष
"दलहन आत्मनिर्भरता मिशन" एक आत्मनिर्भर, संधारणीय और सशक्त दलहन क्षेत्रक का आधार तैयार करता है। प्रौद्योगिकी, नवाचार और किसान सशक्तिकरण को संयोजित करके, यह पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा देगा और आयात निर्भरता कम करेगा। इस प्रकार, यह भारत को वास्तविक कृषि और आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करेगा।