जनवरी 2025 से अमेरिका ने भारत सहित कुछ व्यापार साझेदारों के खिलाफ टैरिफ संबंधी कदम उठाए हैं। अप्रैल 2025 में भारत पर 26% रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा की गई थी, जिसे बाद में रोक दिया गया था।
मौजूदा टैरिफ बढ़ाने के लिए जिम्मेदार कारक
- व्यापार घाटा: अमेरिका का भारत के साथ वस्तुओं का व्यापार घाटा 2024 में 45.7 बिलियन डॉलर था, जो 2023 की तुलना में 5.4% अधिक है।
- भारत की गैर-मौद्रिक व्यापार बाधाएं: भारत की कृषि सब्सिडी और खाद्य सुरक्षा से संबंधित सैनेटरी एंड फाइटोसैनेटरी (SPS) नियमों को अमेरिका ने अपने निर्यात के लिए बाधा माना है।
- भारत की ब्रिक्स (BRICS) सदस्यता: अमेरिका ब्रिक्स को एंटी-डॉलर समूह मानता है।
- भारत-रूस संबंध: अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से रक्षा और ऊर्जा आयात करने के कारण भारत पर अनिर्दिष्ट जुर्माना लगाने की बात कही है।
- अमेरिका के प्रस्तावित ‘रसियन सैंक्शंस एक्ट, 2025’ में उन देशों पर 500% टैरिफ लगाने का प्रावधान किया गया है, जो रूस से तेल या पेट्रोलियम उत्पाद खरीदते हैं।
टैरिफ लागू होने के संभावित प्रभाव
- द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA): अमेरिका इस टैरिफ का उपयोग भारत पर अंतरिम व्यापार समझौते पर वार्ता तीव्र करने का दबाव बनाने के लिए कर सकता है।
- दोनों देशों ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर से अधिक करने और एक बहु-क्षेत्रीय BTA पर वार्ता करने का लक्ष्य रखा है। 2024 में दोनों देशों के बीच 131.8 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था।
- प्रतिस्पर्धा में नुकसान: भारत पर लगाए गए टैरिफ वियतनाम (20%) और इंडोनेशिया (19%) की तुलना में अधिक हैं, जिससे भारत की प्रतिस्पर्धा कमजोर हो सकती है।
- निर्यात पर असर: भारत अमेरिका को गैर-पेटेंट दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है। इन दवाओं की कीमतें बढ़ने से भारतीय फार्मा कंपनियों पर असर पड़ सकता है।
- आपूर्ति श्रृंखला में बाधा: टैरिफ से लागत बढ़ सकती है, शिपमेंट में देरी हो सकती है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है।
निष्कर्ष
भारत का कहना है कि वह एक निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी BTA के लिए प्रतिबद्ध है। भारत अपने किसानों, उद्यमियों तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के कल्याण एवं अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता रहेगा।