रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिबद्ध (यानी निर्धारित) व्यय के बढ़ते स्तर राज्यों के वित्तीय दायरे को सीमित कर रहे हैं। इससे विकास-केंद्रित गतिविधियों को शुरू करने की उनकी क्षमता कम हो रही है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- उच्च प्रतिबद्ध व्यय: राज्यों ने 2023-24 में राजस्व प्राप्तियों का 62% वेतन, पेंशन व ब्याज भुगतान और सब्सिडी पर खर्च किया था।
- GST राजस्व हिस्सेदारी में कमी: 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से, जीएसटी के अंतर्गत सम्मिलित करों से प्राप्त कुल राजस्व में गिरावट दर्ज की गई है। इन करों से 2015-16 में जीडीपी के 6.5% के बराबर राजस्व प्राप्त होता था, जो 2023-24 में घटकर जीडीपी का 5.5% रह गया। इससे राज्यों की स्वयं की कर क्षमता कम हो गई।
- 15वें वित्त आयोग ने मध्यम अवधि में GST से राजस्व-जीडीपी अनुपात 7% अनुमानित किया था।
- बिना शर्त वाली (Untied) निधियों के अंतरण में कमी: 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत राज्यों को कुल अंतरण में बिना शर्त वाली निधियों की हिस्सेदारी कम होकर 64% रह गई है। 14वें वित्त आयोग के दौरान यह हिस्सेदारी 68% थी। इससे राज्यों की खर्च करने की प्राथमिकताओं में विकल्प कम हो गए हैं।
- उच्च ऋण बोझ: 2024-25 में राज्यों का बकाया ऋण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 27.5% रहा है। यह राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) लक्ष्य (20%) से बहुत अधिक है। केवल गुजरात, महाराष्ट्र और ओडिशा ही इस लक्ष्य सीमा को पूरा करते हैं।
- बढ़ता ब्याज भुगतान: ब्याज लागत राजस्व वृद्धि को पीछे छोड़ते हुए सालाना 10% (2016-17 से 2024-25) की दर से बढ़ी है।
- महिलाओं के लिए बिना शर्त नकद हस्तांतरण से वित्तीय दबाव: 2025-26 में, महिलाओं को बिना शर्त नकद हस्तांतरण प्रदान करने वाले राज्यों की संख्या बढ़कर 12 हो गई है।
- राज्यों के बीच प्रति व्यक्ति आय के अंतराल में वृद्धि: उच्च आय वाले राज्य प्रति व्यक्ति अधिक राजस्व अर्जित करते हैं और विकास पर अधिक खर्च करते हैं। इसलिए, यह अंतराल देखने को मिलता है।
आगे की राह
|