भारत का विकास-सहयोग मॉडल स्थानीय स्वामित्व को वैश्विक विश्वसनीयता के साथ मिश्रित करने का प्रयास करता है। यह दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए एक नया दृष्टिकोण परिभाषित करता है, जो केवल सहायता पर निर्भरता से आगे बढ़ने पर बल देता है।
भारत के विकास-सहयोग मॉडल की मुख्य विशेषताएं
- मांग-संचालित अप्रोच: इसका अर्थ है कि प्रस्ताव साझेदार सरकारों से उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए- भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष।
- इस कोष की स्थापना 2017 में संयुक्त राष्ट्र दक्षिण-दक्षिण सहयोग कार्यालय (UNOSSC) के तहत की गई थी।
- क्षमता निर्माण पर बल: इसमें स्थानीय कर्मियों को प्रशिक्षित करना; संस्थाओं को मजबूत करना और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना शामिल है।
- उदाहरण के लिए: विदेश मंत्रालय का भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (ITEC) 160 से अधिक देशों के अधिकारियों को प्रशिक्षित कर चुका है।
- सुभेद्य देशों को प्राथमिकता: जैसे- अल्प विकसित देश (LDCs), लघु द्वीपीय विकासशील देश (SIDS)।
- उदाहरण के लिए: भारतीय विकास और आर्थिक सहायता योजना (IDEAS), जो भारतीय आयात-निर्यात बैंक के माध्यम से अफ्रीकी व गैर-अफ्रीकी विकासशील देशों को लाइन ऑफ क्रेडिट प्रदान करती है।
- स्थानीय स्वामित्व और बहुपक्षीय विश्वसनीयता का मिश्रण: संयुक्त राष्ट्र के साथ साझेदारी करके कार्यान्वयन पारदर्शी हो जाता है। इससे पहलों को द्विपक्षीय राजनीति से प्रभावित होने से बचाया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: विदेश मंत्रालय के तहत भारत-संयुक्त राष्ट्र वैश्विक क्षमता निर्माण पहल।
- अन्य विशेषताएं: संप्रभुता का सम्मान करना, लागत प्रभावी समाधान प्रदान करना, बिना शर्तों वाला समर्थन देना आदि।
- उदाहरण के लिए: वैक्सीन मैत्री पहल आदि।
चीन का विकास मॉडल
- आपूर्ति-आधारित यानी लगभग सभी परियोजनाएं चीन द्वारा शुरू की जाती हैं।
- परियोजनाएं रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव से प्रेरित होती हैं (जैसे- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव)।
- आर्थिक रूप से सुभेद्य विकासशील देशों को बड़ी मात्रा में धन उधार देना (ऋण जाल कूटनीति)।
विकास-सहयोग मॉडल को और मजबूत करने के लिए भारत की संभावित पहलें
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